रांची: झारखंड का चुनाव सम्पन्न हो चुका है अब बेसब्री से झारखंड की जनता को नतीजों की प्रतीक्षा है। 23 नवंबर को सुबह सात बजे से वोटों की गिनती आरंभ हो जाएगी। इसके बाद तय हो जाएगा कि झारखंड में तीर धनुष चलेगा या कमल खिलेगा। हालांकि रूझानों पर नजर डालें तो कई तरह के समीकरण निकल कर सामने आ रहें है। कई सर्वे झारखंड की जनता के मन को टटोलने के लिए किए गये हैं लेकिन से आंकलन कितने सही हो सकेंगे ये तो समय बताएगा। बहरहाल, यदी हम एक्जिट पोल की बात करें तो मैट्रिज के एक्जिट पोल के आंकड़ों के मुताबिक, इस बार झारखंड में भाजपा एनडीए की सरकार बन सकती है।
बता दें Matrize Exit Poll के आंकड़ों में झारखंड की 81 सीटों में से एनडीए को 46 और INDIA गठबंधन को 29 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है। वहीं अन्य के खाते में 6 सीटें जा सकती हैं। वहीं एक्सिस माय इंडिया इंडिया गठबंधन को 53 और एनडीए 25 सीटें दी गयी है। अन्य को 3 सीट दी गयी है। उत्तरी छोटा नागपुर की 25 सीटों में NDA को 11, INDIA को 12 वहीं JLKM को 2 सीटें मिलने का अनुमान है। हालांकि एक्जिट पोल को लेकर हाल ही में चुनाव आयोग ने कहा था कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को एग्जिट पोल के कारण पैदा होने वाली उम्मीदों के बारे में आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है। बता दें हाल ही में हरियाणा चुनाव में अधिकांश एग्जिट पोल में कांग्रेस की जीत की भविष्यवाणी गलत साबित हो गई थी। इसके बाद कई दलों ने मतगणना प्रक्रिया पर संदेह जताया था। इस मसले पर मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार का बयान सामने आया था।
वहीं झारखंड के चुनाव को लेकर भी कई एक्जिट पोल दावा कर रहें कि अमुक पार्टी की सरकार आ रही है। लेकिन चनाव और मतदान को लेकर सबसे पहले ये समझाना आवश्यक है कि नेता की पहुंच जनता तक कितनी है। दूसरी बात भारत में पारंपरिक मतदाताओं की भी प्रभाव रहता है। ये पारंपरिक मतदाता अपने समुदाय जाति और व्यक्तिगत सबंधों पर आश्रित होते है। इनके सिकड़ी को भेदना किसी भी दल के लिए आसान नहीं होता। जाति के नाम पर वोट की राजनीति लोकतंत्र के लिए बेशक सही नहीं पर ये सच है कि आज भी जातिगत वोट चुनाव में निर्णायक होते हैं। रूझानों में दूसरी जो अहम बात है वो ये है कि आपका गठबंधन और प्रत्याशी कौन हैं। इस बार के चुनाव में सत्ता पक्ष के गठबंधन में कोई परिवर्तन नहीं हुआ लेकिन 2019 के चुनाव की अपेक्षा इस बार एनडीए में बहुत ही बड़ा उलटफेर हुआ। 2019 के चुनाव को देखें तो आजसू स्वतंत्र रूप से 53 सीटों पर अपने उम्मीदवार दे दिए थे वहीं इस चुनाव में आजसू को दो सीटें मिली साथ ही आजसू का वोट प्रतिशत 8.10 प्रतिशत रहा। देखा जाए तो ये कदम हितकर नहीं था परंतु 2019 के आम चुनाव से पहले सरयू राय और रघुवर दास का विवाद भी चुनाव को प्रभावित करने से पीछे नहीं रहा बता दें जमशेदपुर पूर्वी सीट पर सरयू राय का टिकट कटने से नाराज सरयू ने निर्दलीय रघुवर के ख्रिलाफ चुनाव लड़कर उन्हे शिकस्त दी थी। बीजेपी की आतरिक कलह भी एक कारण था 2019 में हार का मुंह दिखानेवाला। इसके अलावा जदयू भी झारखंड बीजेपी का हिस्सा नही था। 2019 के चुनाव में झारखंड विकास मोर्चा बाबूलाल मरांडी की राजनीतिक पार्टी भी मैदान में थी। और जेवीएम ने सभी 81 विधानसभा सीटों से अपने प्रत्याशी खड़े किए। इससें हुआ ये कि पारंपरिक वोटर और बीजेपी के समर्थक जनता विकल्पों में उलझ गयी। उन्के सामने गठबंधन के अलावा बीजेपी के तीन विकल्प सामने थे जिससे वोटों का बंटवार हो गया। 25 सीटों पर बीजेपी सिमट गयी 2 पर आजसू। वहीं महागठबंधन के सभी वोट पारम्परिक रूप से उनके खाते में चले आए।
2024 में मामला बिलकुल अलग है। इस बार एनडीए के गठबंधन में कोई दरार नहीं। कुरमी वोट परम्परागत रूप से आजसू के खाते में जाते दिख रहें हैं। हिन्दुत्ववादी मतदाता भी बीजेपी के पक्ष में आ रहें हैं। इसके अलावा समसायिक मुद्दे और संवेदनशील मामलों को हवा देकर वोटरों के रूख को बीजेपी एनडीए के पक्ष में मोड़ने का कार्य कहीं न कही राजग को लाभ दे रहा। परंतु इन सबसे इत्तर हाल में बांग्लादेश में तख्तापलट, हिंदू हिंसा और झारखंड में कुछ ऐसे कांड जिसने रूह को कंपा दिए उनको देख कर भी वोटरों ने मतदान किया है। रूबिका पहाड़न, दुर्जापूजा विसर्जन विवाद सरस्वती पूजा विसर्जन विवाद और लोगों पर हमला इस जेसे छोटे छोटे कारणों ने भी जनता के मन को झाकझोरा है। संथाल परगना में बढ़ती मुस्लिम आबादी और आदिवासियों के आस्तित्व पर चोट ने अचानक इस चुनाव का रूख ही बदल दिया है। इसका एक महान कारण शिवराज सिंह चौहान और हिमंता बिस्वा सरमा की सुनियोजित कैंपेनिंग है। बीजेपी के बड़े नेताओं का आना और झारखंड की जनता के हूदय को टटोलना सीधे तौर पर मतदान प्रतिशत में इजाफा कर गया। पीएम मोदी फैक्टर से इन्कार नहीं किया जा सकता। पीएम की रैली और उसमें आए लोगों की जयकारें ने स्पष्ट किया है कि झारखंड की वो जनता जो भगवा को नही पहचानती थी अब केसरिया में ढल रही थी। योगी आदित्यनाथ के भाषण में बैठी भीड़ ने भी एक मूक संदेश दिया है। ऐसे में उन इलाको में भी कमल खिल सकते हैं जहां आज तक सरकार की पानी नहीं पहुंच पाई।
इधर ईंडी गठबंधन पर नजर डालें तो खनन घोटाला, जमीन घोटाला, मनरेगा घोटाला इत्यादि ने हेमंत सरकार की छवि को खराब करने में उत्कृष्ट भूमिका निभाई परंतु चुनाव से तीन माह पूर्व मईंया सम्मान योजना ने इस नुकसान की भरपाई भी कर दी। चम्पई सोरेन के विदा होते ही एक के बाद एक कैबिनेट की बैठक और जन उपयोगी प्रस्तावों का पारित होना सरकार के प्रति लोगों को कृतज्ञ बनाने से पीछे नही रहा। इस पूरे चुनाव कैंपेनिंग में इंडी गठबंधन में जो सबसे चमकदार सितारा रही वो थी कल्पना सोरेन। जी हां कल्पना ने अकेले जो मेहनत की वो काबिले तारीफ है। परंतु इंडी गठबंधन में सीट विवाद राजद माले की फ्रेंडली फाईट कहीं न कहीं 2019 के बीजेपी आजसू की कहानी दोहराने सरीखा है। बहरहाल इन सबसे अलग झारखंड में नए नवेले पार्टी जेएलकेएम को भी नकार नहीं सकते। ओबीसी वोट के सशक्त दावेदार जयराम की पाटी भी है। इसमे कोई आश्चर्य होने जैसा नहीं है कि जयराम ने दोनों ही पाटियों के वोटरों को प्रभावित किया है। झारखंड में सारे आंकड़े पुराने समीकरणों को मिला जुला कर देखें तो एनडीए की सरकार बनती नजर आ रही है। आनेवाली 23 तारीख को नतीजे भी आ जाएंगे।