रांची: भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने झामुमो के प्रेस वार्ता पर पलटवार किया। कहा कि सर्वप्रथम झारखंड की जनता को झामुमो को बकाया राशि का वर्ष वार ब्यौरा जारी करना चाहिए। यह बताना चाहिए कि जिस समय शिबू सोरेन कोयला मंत्री थे उस समय अगर कोयला की रॉयल्टी का कोई बकाया राशि बचा था तो उन्होंने कितना पैसा झारखंड को दिलवाया। प्रतुल ने हेमंत सरकार के गठबंधन दलों से यह भी जानना चाहा कि 10 वर्ष तक यूपीए सरकार जब शासन कर रही थी तो उस समय का कितना बकाया था और उस बकाया राशि में कितने का झारखंड को भुगतान हुआ?
प्रतुल ने कहा कि अब झारखंड मुक्ति मोर्चा ने चुनाव पूर्व जिन योजनाओं की घोषणा की है उसके लिए शायद ढाई लाख करोड रुपए से भी ज्यादा की जरूरत हो। आंतरिक स्रोत से पैसा हो नहीं पा रहा जिसका सबसे बड़ा उदाहरण मईया सम्मान राशि की 2500 की किस्त अभी तक नहीं जारी होना है। तो अब झामुमो जनता से सहानुभूति बटोरने के लिए बहाने बना रही हैं।
प्रतुल ने कहा कि झारखंड बीजेपी झारखंडियों के हित के लिए जो भी उचित कदम हो वह उठाने को तैयार है। केंद्र और राज्य की सहमिति से जो भी सही बकाया राशि सामने आएगी ,उसका भुगतान करने के लिए झारखंड बीजेपी भी सकारात्मक कदम उठाएगी।लेकिन सरकार को फर्जी नॉरेटिव और आंकड़ों की बाजीगरी का खेल बंद करना चाहिए। सरकार को सबसे पहले यह सार्वजनिक करना चाहिए कि यह जो 1,36,000 करोड़ का दावा कर रही है वह किस वर्ष में किस विभाग से संबंधित है ।पूरा विस्तृत ब्यौरा देना चाहिए।राज्य सरकार के सिर्फ कहने से की कोयला का बकाया, समता जजमेंट का बकाया और भूमि अधिग्रहण का बकाया है से बात नहीं बनेगी।इनको एक-एक चीजों का सिलसिलावर तरीके से विस्तृत विवरण देना चाहिए।
कर और रॉयल्टी के बीच का अंतर भी समझ नहीं आता
प्रतुल ने कहा की कर और रॉयल्टी के भी अंतर को झारखंड मुक्ति मोर्चा समझने की कोशिश करें।सांसद पप्पू यादव के पत्र में कोयले पर लगे कर का बकाया राशि का उल्लेख था जबकि राज्यों को कोयला की रॉयल्टी मिलती है,कर नहीं। लेकिन बड़ी-बड़ी घोषणाओं कर फस गई झारखंड मुक्ति मोर्चा अब जनता के सामने सिर्फ बहाने खोज रही है।
वन नेशन वन इलेक्शन के मुद्दे पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का दोहरा मापदंड
प्रतुल ने कहा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा बाबा साहब अंबेडकर के द्वारा संविधान में दिए गए राज्यों और लोकसभा के चुनाव एक साथ करने के कांसेप्ट का विरोध कर उनका अपमान कर रही है। 1951 से 1967 तक निर्बाध रूप से चुनाव होता रहा। लेकिन जब कांग्रेस की राज्यों में सरकारी जाने लगी तो धारा 356 का दुरुपयोग शुरू हो गया। प्रतुल ने कहा कि सबसे बड़ा प्रश्न तो यह है कि जब पूर्व राष्ट्रपति कोविंद कमेटी ने झारखंड मुक्ति मोर्चा से वन नेशन वन इलेक्शन पर उनकी राय जानना चाहिए थी तो झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कोई जवाब नहीं दिया था। आज यह इसका विरोध कर रहे हैं ।यही राजनीतिक दोहरा मापदंड होता है