रांची: 38 साल का लम्बा इंतजार तीन बार अदालत का निर्देश, बावजूद इसके परिणाम में मिला सिर्फ आश्वासन। ये कहानी उन रैयतों की है जिनसे वर्ष 1986-87 में स्वर्णरेखा परियोजना के तहत उनकी भूमि का अधिग्रहण ये कह कर किया गया कि सरकार की पुनर्वास नीति के तहत रैयतों के परिवार के सदस्यों को नौकरी दी जाएगी। परंतु आज 38 साल बीत जाने के बाद भी उन्हें कोई नौकरी नही दी गयी। 38 साल वो समय होता है जब लोग अपनी नौकरी से सेवा निवृत हो जातें है परंतु झारखंड के इन रैयतों को इतने वर्ष में नौकरी की बजाए केवल आश्वासन ही मिला।
इसे लेकर गुरूवार को हाईकोर्ट ने कड़ा रूख अपनाते हुए अदालत ने पेयजल स्वच्छता विभाग के सचिव, स्वर्णरेखा परियोजना के पुनर्वास भूमि अधिग्रहण के निदेशक और प्रशासक को शुक्रवार को अदालत में उपस्थित होकर जवाब देने का निर्देश दिया है। वहीं इस मामले में अदालत को प्रार्थियों की ओर से बताया गया कि वर्ष 1986-87 में स्वर्णरेखा परियोजना के तहत उनकी जमीन का अधिग्रहण किया गया था। सरकार की पुनर्वास नीति के तहत रैयतों के परिवार के सदस्यों को नौकरी दी जानी थी, परंतु अबतक सरकार की ओर से केवल आश्वासन ही मिला है। बता दें इसे लेकर प्रार्थियों ने वर्ष 1991 में अपने हक के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन तीन बार हाईकोर्ट के निर्देशों के बावजूद उन्हें नौकरी नहीं दी गई। इस मामले को अदालत ने बेहद गंभीर बताया है। 38 साल एक लम्बी अवधी है इस अवधी में बहुत कुछ बदल जाता है इस अवधी में एक सरकारी मुलाजिम सेवा निवृत हो जाता है वहीं प्रर्थियों को अबतक सरकार से नौकरी तक नहीं मिली। इसे लेकर अदालत ने नाराजगी जताते हुए अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा है। अदालत ने कहा कि यह हैरान करने वाली बात है कि 38 साल बाद भी रैयतों को न्याय नहीं मिला है।