झारखंड की सियासत ऐसे मोड़ से गुजर रही है, जिसमें कब क्या होगा कहना मुश्किल है। वैसे तो मौजूदा परिस्थिति में झारखंड की सियासत सोरेन परिवार से दूर नहीं हुई है। सत्ता के केंद्र में सोरेन परिवार ही है। लेकिन सत्ता के केंद्र में रहते हुए सोरेन परिवार जिस भंवर में फंसा है, उससे उनका गठबंधन निराश दिख रहा है। हालात यहां तक हो गए हैं कि सोरेन परिवार के सत्ता से बाहर जाने की भी आशंका है। ऐसे में गठबंधन के जेहन सोरेन परिवार के विकल्प की भी तलाश शुरू हो चुकी है।
22 को इलेक्शन कमीशन में सुनवाई
सोरेन परिवार के लिए 22 अगस्त का दिन सबसे महत्वपूर्ण है। कारण कि इसी दिन चुनाव आयोग में सीएम हेमंत सोरेन और उनके भाई बसंत सोरेन की सदस्यता को लेकर सुनवाई होनी है। आरोप है कि दोनों ने अपने चुनावी शपथपत्र में जानकारी छुपाई है। संभावना है कि उसी दिन फैसला भी आ जाए। फैसला अगर सीएम के खिलाफ होता है, तो राजनीतिक मुसीबत बढ़ेगी।
शिबू सोरेन भी मुश्किल में
हेमंत सोरेन पर तो चुनाव आयोग में 22 को फैसला आएगा। लेकिन उनके पिता और झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो शिबू सोरेन भी मुश्किल में हैं। कारण कि उन्हें भारत के लोकपाल ने आय से अधिक संपत्ति की शिकायत से जुड़े मामले में 25 अगस्त को पेश होने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति अभिलाषा कुमारी (न्यायिक सदस्य) और महेंद्र सिंह और इंद्रजीत पी. गौतम की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है।
सोरेन परिवार फंसा तो नेता कौन?
पूरी चर्चा अभी इस बारे में शुरू हो चुकी है कि सोरेन परिवार अगर कानूनी पचड़े में फंसता है तो नेता कौन होगा। संख्याबल के हिसाब से अधिक UPA के पास कोई संकट नहीं है। क्योंकि भाजपा के 26 ही विधायक हैं। आजसू के 2 और 2 निर्दलीयों को मिलाकर भी भाजपा 30 तक पहुंचती है। जबकि सरकार बनाने के लिए 41 चाहिए यानि 11 विधायक कम पड़ रहे हैं। यह इतना आसान भी नहीं होगा। लेकिन यूपीए अगर सोरेन परिवार की गैरमौजूदगी में सर्वमान्य विकल्प नहीं खड़ा कर पाया तो बिखराव रोके रहना, पार्टियों के लिए मुश्किल होगा।