RANCHI : ईडी की पूछताछ में हाइकोर्ट के एडवोकेट हिमांशु कुमार मेहता ने जयंत कर्नाड को उसके मालिकाना हक से संबंधित दस्तावेज देने और जमीन बिकने के बाद उससे पैसा लेने की बाद स्वीकार कर ली है। सेना के कब्जेवाली जमीन की खरीद-बिक्री की जांच के दौरान जयंत कर्नाड द्वारा दिये गये बयान के बाद इडी ने हिमांशु कुमार को समन जारी किया था। बुधवार को दिन में इडी के रांची कार्यालय में हाजिर हुए थे। लंबी पूछताछ के बाद देर रात इडी ने उन्हें घर जाने की अनुमति दे दी। साथ ही बाद में भी जांच के दौरान बुलाये जाने पर हाजिर होने का निर्देश दिया।
मुवक्किल से लिए 1.20 करोड़
हिमांशु कुमार के इडी कार्यालय पहुंचने के बाद उनसे पूछताछ शुरू हुई। इडी ने जयंत कर्नाड के बयान के आलोक में उनसे पूछताछ शुरू की। उन्होंने यह स्वीकार किया कि हाइकोर्ट में दायर रिट याचिका में वही कर्नाड के एडवोकेट थे। उन्होंने जयंत कर्नाड को उसके मालिकाना हक से संबंधित दस्तावेज (प्रोबेट) देने की बात स्वीकार की। साथ ही यह भी स्वीकार किया कि जमीन बिकने के बाद उन्होंने अपने लिए अपने मुवक्किल से 1.20 करोड़ रुपये लिये। साथ ही नौ लाख रुपये अपने सहयोगी वकीलों के लिए भी लिया। उनके जूनियर वकीलों ने भी समय- समय पमर मुकदमे में पैरवी की थी। पूछताछ के दौरान वह इस बात का संतोषप्रद जवाब नहीं दे सके कि जयंत की पुश्तैनी संपत्ति की जानकारी उनके पास कहां से आयी और मालिकाना हक से संबंधित दस्तावेज उन्हें कैसे मिले थे।
जयंत कर्नाड से ईडी ने पहले की थी पूछताछ
सेना के कब्जेवाली जमीन की खरीद-बिक्री की जांच के दौरान इडी ने जयंत कर्नाड को समन कर बुलाया था। इडी ने जयंत से जमीन के मालिकाना हक से संबंधित दस्तावेज मांगे थे, लेकिन वह जमीन का सेल डीड, लगान रसीद सहित किसी भी तरह का दस्तावेज नहीं दे सके। जमीन के मालिकाना हक से जुड़े एक सवाल के जवाब में उन्होंने इडी को यह बताया था कि इस मामले में हिमांशु कुमार मेहता नामक एक एडवोकेट ने उनसे संपर्क किया था। एडवोकेट ने यह कहा था कि वह सेना के कब्जेवाली जमीन पर उन्हें मालिकाना हक दिलवा सकते हैं। इसके बाद वह इस जमीन को सेना के कब्जे से मुक्त भी करा सकते हैं। जमीन पर से सेना का कब्जा हटने के बाद वह उसे बेचने की भी व्यवस्था करेंगे। जयंत द्वारा सहमति दिये जाने के बाद इस मामले में याचिका दायर कर पहले उसे किराया वसूलने का हकदार बनाया गया। इडी ने जांच में पाया कि हाइकोर्ट में सुनवाई के दौरान तथ्यों को सही तरीके से पेश नहीं किया गया। न्यायालय के आदेश पर जमीन का किराया वसूलने का अधिकार मिलने के बाद जयंत ने किराया वसूला।