पारसनाथ पहाड़ी को लेकर उपजे विवाद के बीच आदिवासी समाज ने उस पर अपना दावा ठोका और उसे अपना भी धार्मिक स्थल मरांग बुरुंग घोषित करने की मांग की। वहीं जेएमएम विधायक लोबिन हेंब्रम ने कहा कि आनन-फानन में बिना किसी स्थानीय लोगों से विचार-विमर्श कर, मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार को पत्र लिखा। उन्होंने कहा कि सदियों से वहां आदिवासी अपनी प्रथा से पूजा करते आ रहे हैं और रहते आ रहे हैं।
केंद्र सरकार ने जो घोषणा किया और जो मुख्यमंत्री ने लिखा उसमें हमारा अधिकार कहां रहा। मेरा भी अधिकार रहना चाहिए और हम शुरू से रहते आए हैं और रहेंगे। स्कूल के बच्चे लोग को रोके नहीं। वहां लकड़ी लाने वाले को कोई रोके नहीं। सरकार घुटने टेक दिया अब कहां जाऊं। 10 किलोमीटर में जैनियों ने बलि देने से मना कर दिया शुरू से यह पहाड़ी आदिवासियों का रहा है, और आदिवासियों में हर पर्व त्यौहार में बलि देने की प्रथा है। आदिवासियों ने हमेशा जैनियों की मदद की है।
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आदिवासियों का भी मरांग बुरुंग धर्मस्थल घोषित हो
पारसनाथ की पहाड़ी सिर्फ जैनियों का धर्म तीर्थ स्थल घोषित ना हो आदिवासियों का भी मरांग बुरुंग धर्मस्थल घोषित हो, इसीलिए सारे लोग मिलकर यह झारखंड बचाओ मोर्चा की तरफ से अल्टीमेटम दे रहे हैं। 25 जनवरी तक हम मुख्यमंत्री को अल्टीमेटम देते हैं। अगर हमारी मांग पूरी नहीं हुई तो 30 जनवरी को उलीहातू में उपवास किया जाएगा। 2 जनवरी को भोगनाडीह में उपवास होगा। इससे पूर्व हम 10 जनवरी को पारसनाथ में आदिवासी समुदाय का महाजुटान होगा। पारसनाथ हमेशा से आदिवासियों का मरांग बुरु धर्मस्थल रहा है। 1956 के गैजेट के अनुसार पारसनाथ का नाम मरंगबुरू भी होना चाहिए। उस पहाड़ी के चारों ओर मूल आदिवासियों का घर है। हम केंद्र सरकार को भी सचेत करना चाहेंगे जिस तरह से जैनियों ने अपना आंदोलन किया। उससे भी बड़ा आंदोलन हम करेंगे।