पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने गायघाट रिमांड होम (Gaighat Remand Home) में अनैतिक कृत्यों के आरोपों पर स्वत: संज्ञान लिया है। इस मामले में प्राथमिकी दर्ज नहीं करने के लिए अधिकारियों की खिंचाई की है। पटना हाईकोर्ट ने समाज कल्याण विभाग (Social Welfare Department) के अपर मुख्य सचिव से अपने स्तर पर मामले की जांच कर कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने को कहा गया है।
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आश्रय गृह के एक कैदी द्वारा आरोप
हालांकि उसके बाद समाज कल्याण विभाग के निदेशक ने जांच की है और आफ्टर केयर होम के सीसीटीवी फुटेज के आधार पर ही यह निष्कर्ष निकला है कि तथाकथित पीड़िता द्वारा लगाया गया आरोप निराधार है और असत्य है। हाईकोर्ट ने संज्ञान लेते हुए कहा कि ऐसा नहीं लगता है कि पीड़ित लड़की से कोई पूछताछ की गई थी और इस तरह की राय सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखकर ही निकली गई है। वर्तमान में गायघाट रिमांड होम का जिम्मा बाल संरक्षण अधिकारी (सीपीओ) वंदना गुप्ता द्वारा संचालित है, जिन्हें गृह अधीक्षक के रूप में नामित किया गया है।
अगले सोमवार सुनवाई
पटना उच्च न्यायालय ने बुधवार को बिहार के समाज कल्याण विभाग से राज्य की राजधानी के गायघाट में एक आश्रय गृह के एक कैदी द्वारा लगाए गए आरोपों के संबंध में जवाब मांगा है। आरोप में अगले दावा किया था कि उसे और अन्य को अनैतिक कृत्यों के लिए खुद को प्रस्तुत करने के लिए मजबूर किया गया था। मामले में अगली सुनवाई मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और एस कुमार की खंडपीठ अगले सोमवार को निर्धारित किया गया है।
मुजफ्फरपुर आश्रय गृह मामला
कुछ साल पहले बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के आश्रय गृह में ऐसा हीं मामला सामने आया था जिससे कि पूरा देश हिल गया था. जिसमें एक एनजीओ द्वारा संचालित सुविधा में 2018 और 2019 के बीच महीनों तक 34 से अधिक नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया था। जिससे कि व्यापक जनाक्रोश पैदा हुआ था। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले को दिल्ली की एक अदालत में स्थानांतरित कर दिया। जिसमें अदालत ने 11 फरवरी, 2020 को अपना फैसला सुनाया और एनजीओ के मालिक ब्रजेश ठाकुर और 10 अन्य को उम्रकैद की सजा सुनाई।