झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित जैनियों के धार्मिक स्थल ‘सम्मेद शिखरजी’ से संबंधित पारसनाथ पहाड़ी पर सभी प्रकार की पर्यटन गतिविधियों पर केंद्र सरकार ने रोक लगा दी। लेकिन अब वहां एक नया विवाद खड़ा हो गया है। दरअसल अब संथाल आदिवासी ने इस इलाके पर अपना दावा कर रहा है। और अब संथाल आदिवासी भी मैदान में उतर गये हैं। उन्होंने इस इलाके को मुक्त करने की मांग की है।
पारसनाथ पहाड़ी को ‘मरांग बुरु’ करार दिया है
संथाल जनजाति देश के सबसे बड़े अनुसूचित जनजाति समुदाय में से एक है, जिसकी झारखंड, बिहार, ओडिशा, असम और पश्चिम बंगाल में अच्छी खासी आबादी है और ये प्रकृति पूजक हैं। ये संथाल जनजाति के नेतृत्व वाले राज्य के आदिवासी समुदाय ने पारसनाथ पहाड़ी को ‘मरांग बुरु’ (पहाड़ी देवता या शक्ति का सर्वोच्च स्रोत) करार दिया है और उनकी मांगों पर ध्यान न देने पर विद्रोह की चेतावनी दी है। उन्होंने कहा अगर नौ व 10 जनवरी तक झारखंडियों के पक्ष में वार्ता नहीं हुई तो 15 जनवरी को पारसनाथ को घेर लिया जाएगा। हर हाल में 15 जनवरी को मकर- संक्रांति मेला यहां लगेगा। लाखों लोग यहां आएंगे। जो भी उसे रोकने का कोशिश करेगा, इस अहिंसा की भूमि में उसे बख्शा नहीं जाएगा।
वैसे केंद्र सरकार ने झारखंड के गिरिडीह जिले में जैन तीर्थ स्थल‘सम्मेद शिखरजी पर्वत’क्षेत्र में पर्यटन और इको पर्यटन से जुड़ी सभी गतिविधियों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। साथ ही राज्य सरकार से इसका क्रियान्वयन सुनिश्चित करने को कहा है।
पारसनाथ मारंग गुरु बचाओ आंदोलन का ऐलान
वहीं कई संथाल समुदाय के समर्थन में अब अन्य आदिवासी समुदाय सामने आ रहे। पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने पारसनाथ मारंग गुरु बचाओ आंदोलन का ऐलान किया। 17 जनवरी से आंदोलन शुरू करने का ऐलान किया है। 17 जनवरी को पांच प्रदेशों के 50 जिलों में धरना प्रदर्शन की तैयारी है। आंदोलन के तहत भारत बंद का ऐलान होगा।
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1956 के राजपत्र का दिया हवाला
अंतरराष्ट्रीय संथाल परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष नरेश कुमार मुर्मू ने दावा किया, ‘अगर सरकार मरांग बुरु को जैनियों के चंगुल से मुक्त करने में विफल रही तो पांच राज्यों में विद्रोह होगा.’नरेश कुमार मुर्मू ने कहा कि हम चाहते हैं कि सरकार दस्तावेजीकरण के आधार पर कदम उठाए. (वर्ष) 1956 के राजपत्र में इसे ‘मरांग बुरु’ के रूप में उल्लेख किया गया है. जैन समुदाय अतीत में पारसनाथ के लिए कानूनी लड़ाई हार गया था.