[Team insider] 25 फरवरी से लेकर 25 मार्च तक चलने वाला झारखंड विधानसभा बजट सत्र के चौथे दिन सदन में वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए 1 लाख 1 हजार 101 करोड़ रुपये का बजट पेश किया। जहां महागठबंधन की सरकार में शामिल कांग्रेस ने बजट को सराहा वहीं राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा ने बजट को पूरानी बोतल में नयी शराब वाला बताया।
विकासोन्मुख के लिए मील का पत्थर साबित होगा: राजेश ठाकुर
झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमिटी के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने कहा कि गरीब किसान, नौजवान, महिलाओं एवं आम जनता को केन्द्र बिन्दु मानकर बजट पेश किया गया, जो विकासोन्मुख के लिए मील का पत्थर साबित होगा। वैश्विक महामारी कोरोना से उबरने के बाद झारखंड की जनता से किये गये चुनाव के पूर्व वायदों को गति देने की दिशा में यह बजट कारगर साबित होने वाला है। उक्त बातें झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमिटी के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने प्रतिक्रिया स्वरूप कही।
बजट में सभी का रखा गया है ख्याल
वहीं ठाकुर ने कहा कि इस बजट में सभी का ख्याल रखा गया है। चाहे वृद्धजन हो, गृहणियां हो, विद्यार्थी हो, बेटियां हो, व्यवसायी जगत हो, किसान हो, सरकारी कर्मचारी हो, या राज्य के नवजवान हो सभी का खास ख्याल रहते हुए तथा आमजनता के जीवन यापन के बेहतर सुविधाओं के साथ-साथ रोजगार सृजन के मद्देनजर औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने लिए कार्यक्रमों और योजनाओं के प्रावधान के लिए आदरणीय वित्त मंत्री और राज्य के युवा एवं दूरदर्शी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को हार्दिक बधाई है।
बजट खाली डिब्बा खाली बोतल जैसा : दीपक प्रकाश
प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने भाजपा प्रदेश कार्यालय में बजट को खाली डिब्बा खाली बोतल बताया। उन्होंने कहा कि यह बजट पुरानी बोतल में नई शराब डाल दी गई। बोतल भी नई शराबी भी नई। बजट में कोई भी परिवर्तन नहीं की गई है। बजट दिशाविहीन, दृष्टिहीन और नितिविहीन है। इसका मूल कारण है कि नेतृत्व के पास माद्दा नहीं है। राज्य सरकार की विकास करने की उनके प्राथमिकता नहीं है।
सरकाकर एक वर्ष तक विधवा विलाप करती रही
वहीं उन्होंने कहा कि पिछले बजट को अवलोकन करते हैं तो हम देखते हैं कि मात्र बजट 91 हजार करोड़ का था, उसमें भी राज्य सरकार मात्र 40% ही खर्च कर पाई। राज्य सरकार कोरोना काल में एक वर्ष तक विधवा विलाप करती रही। सरकार रोती रही कि मेरे पास पैसे नहीं है, जिसे झारखंड की जनता ने देखा है। मात्र 40% ही खर्च पर पूरी तरह डीसफाइनेंसियल मैनेजमेंट है। इस सरकार में इसलिए मैं बार-बार कहता हूं कि इनकम एक्सपेंडिचर दो चित्र होते हैं लेकिन लेकिन सरकार के पास इनकम भी खड़ा करने का कोई आधार स्तंभ भी नहीं है।