[Team Insider] झारखण्ड सरकार मरीजों के लिए फ्री 108 एम्बुलेंस सेवा देने का दावा कर रही है। लेकिन बीमार को ले जाने वाली एम्बुलेंस ही बीमार पड़ जाए और एम्बुलेंस की ही तबियत धक्का मार मार कर ठीक करनी पड़े। तो इसे क्या कहेंगे।
बीमार को ले जाने वाली एंबुलेंस खुद बीमार
दरअसल झारखंड सरकार ने एंबुलेंस सेवा को सुदृढ़ करने के लिए नई डिजिटल पद्धति से तो जोड़ दिया है।लेकिन राजधानी रांची के लापुंग प्रखंड के ककरिया उपस्वास्थ्य केंद्र के एम्बुलेंस सेवा की तस्वीर सामने आई,तो सरकार के सारे दावे फेल नजर आने लगे है। क्योंकि बीमार को ले जाने वाली एंबुलेंस की स्थिति इतनी जर्जर हो गयी है कि उसे चलाने के लिए स्वास्थ्य कर्मी और मरीज के परिजनों को ही धक्का देना पड़ रहा है।
धक्का देखकर स्टार्ट होती है एंबुलेंस
लापुंग प्रखंड़ आदिवासी बहुल और पिछड़े क्षेत्र में आता है। जंहा के लिए 108 एंबुलेंस सेवा लोगों के लिए जीवनदान साबित हो सकती है।लेकिन एम्बुलेंस को प्रत्येक दिन धक्का देकर स्टार्ट करना पड़ता है। वही एंबुलेंस के अंदर की सभी स्वास्थ्य इक्विपमेंट्स भी खराब हो चुके हैं।आलम यह है कि एंबुलेंस में मरीजों को बैठने में भी डर लगने लगा है। एंबुलेंस का दरवाजा भी ठीक से नहीं खुलता है,ना ही पायदान की स्थिति अच्छी है। वही एंबुलेंस के बॉडी में कई जगह छेद हो चुके है। ऐसे में एंबुलेंस को चलाना मतलब दुर्घटना को निमंत्रण देना है।
एंबुलेंस में मरीज को हो सकता है जान का खतरा
लापुु़ंग से राजधानी रांची की दूरी लगभग 60 किलोमीटर है और यहां से मरीजों को इलाज के लिए जंगलों से होते हुए रांची आना पड़ता है।अगर एंबुलेंस रास्ते में खराब हो जाए। तो मरीज की जान भी जा सकती है।