[Team insider] आदिवासी वोटों की भाजपा की घेरेबंदी की रणनीति को देखते हुए झामुमो में बेचैनी है। राजनीतिक उठापटक, सीबीआई, ईडी के दबाव और राज्यसभा सीट पर चल रही खींचतान के बीच झामुमो को फिर आदिवासी कार्ड को लेकर रेस हो गया है। उसका यही हथियार है जिसका भाजपा को अभी तक काट नहीं मिल पाया है। तनाव भरे हालात के बीच झामुमो विधायक दल की बैठक में तय किया गया कि सरना धर्म कोड को लेकर पार्टी का शिष्टमंडल जून माह में राष्ट्रपति से मिलेगा। संसद से इसे पास कराने पर दबाव बनायेगा।
पांच जून को रांची में विशाल आदिवासी रैली करने का निर्णय
दरअसल भाजपा आदिवासी वोटों की घेराबंदी फिर से तेज कर दी है। पांच जून को रांची में विशाल आदिवासी रैली करने का निर्णय किया है जिसमें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा शामिल होने वाले हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल इसी 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस पद के लिए भी भाजपा आदिवासी कार्ड खेलने के मूड में है। इसके लिए झारखंड से केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा और झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के नामों की भी गंभीर चर्चा है। द्रौपदी मुर्मू को देश की पहली महिला राज्यपाल होने का भी श्रेय है। झारखंड में पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले पहले राज्यपाल का श्रेय भी द्रौपदी मुर्मू को है।
सत्ता की सीढ़ी आदिवासी वोटों से होकर गुजरती है
जहां तक झारखंड की बात है यहां सत्ता की सीढ़ी आदिवासी वोटों से होकर गुजरती है। 26-28 प्रतिशत आदिवासी जनसंख्या है। और 81 सदस्यीय विधानसभा में 28 सीटें जनजाति के लिए सुरक्षित हैं। 2014 के विधानसभा चुनाव में इनमें 11 सीटें हासिल कर भाजपा सत्ता में आई थी जबकि 2019 में जनजातीय सीटों में मात्र दो सीटों पर ही भाजपा सिमट गई। वैसे देश में 543 संसदीय सीटों में 47 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। हाल में आदिवासी वोटों पर भाजपा की गहरी नजर रही। इसी कारण भाजपा ने भगवान बिरसा मुंडा को हाईजैक करने की कोशिश की। बिरसा जयंती को पूरे देश में मनाने का निर्णय किया गया। और यह फैसला भाजपा राष्ट्रीय जनजाति मोर्चा की कार्यसमिति की रांची में बैठक में लिया गया था। जिसे केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी थी।
आदिवासी परिवारों को अरवा चावल देकर आमंत्रित किया जा रहा है
अब भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा ने पांच जून को रांची में ”बिरसा मुंडा विश्वास रैली सह जतरा” के रूप में आदिवासियों की विशाल रैली करने का फैसला किया है। रैली के बहाने आदिवासियों पैठ बढ़ाने के लिए प्रदेश भर के आदिवासी नेताओं ने ग्रामीण इलाकों का दौरा करना शुरू कर दिया है। गांव-गांव जाकर आदिवासी परिवारों को अरवा चावल देकर आमंत्रित किया जा रहा है।
यहां बता दें कि झारखंड में सत्ता पर काबिज झामुमो की आदिवासी वोटों को लेकर ही पहचान रही है।
हेमन्त सोरेन अपनी छोड़ी गई दुमका सीट पर उप चुनाव जिसमें उनके छोटे भाई बसंत सोरेन लड़ रहे थे, चुनाव प्रचार के दौरान विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर जनगणना कालम में आदिवासी समाज के लिए अलग धर्म कोड का प्रस्तव पारित करने का वादा किया था। वादे के आलोक में नवंबर 2020 में विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर हेमन्त सोरेन ने इसे सदन से सर्वसम्मत पास कराया था। बल्कि इसे कैश कराते रहे। नीति आयोग की बैठक से लेकर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के फोरम पर भी उन्होंने इसे उठाया। दरअसल यह आदिवासियों की अस्मिता, पहचान का सवाल है। उनकी भावना से जुड़ा है।
आरएसएस आदिवासियों को हिंदू मानती है
आरएसएस आदिवासियों को हिंदू मानती है। संघ के प्रमुख दो मौकों पर रांची में इसकी वकालत कर चुके हैं। इसके बावजूद उसकी विचार धारा से अलग होकर भाजपा विधायकों को सरना धर्म कोड के प्रस्ताव का समर्थन करना पड़ा। उसके पहले इस मांग को लेकर सड़कों पर आदिवासी समाज के लोगों ने लगातार आंदोलन किया था। चर्च का भी इस आंदोलन में साथ रहा। ईसाई धर्म गुरुओं ने भी शिष्टमंडल के रूप में मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को ज्ञापन देकर इसकी मांग की थी। आदिवासियों के प्रभाव वाले दूसरे प्रदेशों में भी हेमन्त इस आंदोलन को फैलाने में लगे रहे। हेमन्त की इस चाल का भाजपा को अभी तक काट नहीं मिल पाया है। मगर आदिवासी वोटों के मोह के लिए भाजपा अलग-अलग तरीके से कार्ड खेलती रही।
दरअसल प्रारंभिक जनगणा के समय से आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड का प्रावधान था मगर 1961 के बाद से इस कॉलम को हटा दिया गया। और आरएसएस नहीं चाहती कि आदिवासियों को अलग धर्म कोड देकर देश में हिंदू आबादी को घटा दिया जाये। मौजूदा राजनीतिक उठा-पटक के बीच झामुमो ने फिर से सरना धर्म कोड के आंदोलन को हवा देने की तैयारी तेज कर दी है। आने वाले दिनों में इसका असर दिखेगा।