माइनिंग लीज को लेकर विधानसभा में अपनी सदस्यता के संकट का सामना कर रहे हेमन्त सोरेन लगातार वोट को प्रभावित करने वाले फैसले कर रहे हैं। बुधवार को कैबिनेट की बैठक में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण और 1932 के खतियानी को स्थानीय मानने का बहु प्रतीक्षित फैसला कर दिया। स्थानीयता नीति झारखंड के लिए पुराना मगर विवादास्पद मुद्दा रहा है। 1932 के खतियान को मंजूरी यानी 1932 के या इसके पूर्व के खतियान में जिनके पूर्वजों के नाम होंगे उन्हें ही स्थानीय माना जायेगा। इसके लागू होने से आदिवासी मूलवासी लोगों को नौकरियों आदि में बड़ा फायदा मिलेगा। हालांकि तकनीकी तौर पर इसके लागू होने में संकट है।
1932 का खतियान इतना आसान भी नहीं
निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 प्रतिशत स्थानीय लोगों को नौकरी के आरक्षण का प्रावधान सरकार ने कर दिया है। इसके लिए झारखंड राज्य निजी क्षेत्र स्थानीय उम्मीदवार रोजगार विधेयक 2021 को विधानसभा से पास कराकर कानूनी जामा पहनाया जा चुका है। इसी साल 29 जुलई को इससे संबंधित नियमावली को भी मंजूरी दी जा चुकी है। 1932 के खतियान लागू होने पर इस पर सीधा असर पड़ेगा। मगर 1932 का खतियान इतना आसान भी नहीं है। हेमन्त सरकार ने सत्ता में आते ही जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग सरना आदिवासी धर्म कोड को लेकर विधानसभा से सर्वसम्मत प्रस्ताव पास कर केंद्र को भेज दिया।
मगर देश में आदिवासियों के विभिन्न जमात होने के कारण सरना के नाम पर अलग धर्म कोड पर संकट है। इसी आधार पर 2015 में जनगणना महानिबंधक ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। मगर यह आदिवासियों की पहचान, उनकी अस्मिता से जुड़ा मामला होने के कारण यह राजनीति मुद्दा बना हुआ है।
हेमन्त सोरेन लगातार नीतिगत कर रहे हैं फैसले
हेमन्त सोरेन नीति आयोग की बैठक से लेकर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के फोरम तक इसे उठा चुके हैं। आदिवासियों के दिल में जगह बनाने के लिए आये दिन केंद्र पर हमला करने का यह हथियार बना रहता है। अपनी विधायकी पर संकट को देखते हुए हेमन्त सोरेन लगातार नीतिगत फैसले कर रहे हैं। उनके हाल के फैसलों से लगता है कि एक प्रकार से चुनाव में जाने की पूरी तैयारी लगभग कर ली है। 1932 के खतियान के साथ तकनीकी संकट को हेमन्त भी अच्छी तरह से समझते हैं। इसलिए पिछले दिनों विधानसभा में कहा था कि व्यावहारिक तौर पर इतना आसान नहीं है, आग लग जायेगी।
झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने भी 1932 के खतियान को लागू करने का फैसला किया था तब इसी मुद्दे पर उनकी सरकार चली गई। इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई तो हाई कोर्ट ने भी खारिज करते हुए संवैधानिक प्रावधानों के हिसाब से नीति बनाने का निर्देश दिया था। 2014 में भाजपा के रघुवर दास मुख्यमंत्री बनते ही इसमें हाथ डाला और 1985 को कटऑफ डेट बना दिया यानी उस समय तक यहां आकर बसने वालों को स्थानीय की मान्यता दी। विधानसभा चुनाव के दौरान भी यह मुद्दा रहा।
भाजपा इसे अदालत में चुनौती देने की तैयारी में जुट गई है
हेमन्त कहते रहे कि नये सिरे से इसे परिभाषित करेंगे। अब हेमन्त ने के फैसले के बाद भाजपा इसे अदालत में चुनौती देने की तैयारी में जुट गई है। अड़चनें और भी हैं गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने टि्वट किया ‘धनबाद 1956 में बिहार में मिला। 1932 के खतियान के अनुसार झारखंड के मंत्री चम्पई सोरेन, बन्न जी, मिथिलेश जी, हफीजुल जी, आलमगीर जी, जोबा जी कोई भी सरकार में रहने लायक नहीं हैं। सरायकेला, मधुपुर 1956 में हमारे पास आया। इसके पहले यह ओडिशा, बंगाल का हिस्सा था। पकुड़ का सर्वे नहीं हुआ। शहर में रहने वाला कोई खतियानी नहीं है’।
कोल्हान के 45 लाख लोगों को रिफ्यूजी कर दिया गया है घोषित
पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा कहते हैं कि जल्दबाजी में इसे लागू किया गया है। इस आधार पर तो कोल्हान के करीब 45 लाख लोगों को रिफ्यूजी घोषित कर दिया गया है। सिंहभूम से कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा न भी 1965-66 के कोल्हान के सर्वे को आधार बनाकर नीति बनाने की मांग की है। भीतर से असंतोष कांग्रेस के भी कई नेताओं में है। नतीजा जो भी अये हेमन्त के पास यह कहने को रहेगा कि उसने आदिवासियों, मूल वासियों के लिए अपने स्तर से बड़ा काम किया। इसी बहाने उन्होंने आजसू का एजेंडा झटक लिया तो पार्टी के वरिष्ठ विधायक लोबिन हेम्ब्रम के आंदोलन और असंतोष पर पानी डाल दिया। लोबिन 1932 के खतियान को लेकर अपनी ही सरकार पर हमलावर थे और लगातार आंदोलन कर रहे थे।