[Team insider] झारखंड में पुलिस व सुरक्षा बलों के दमनकारी रवैये व मानवाधिकार उल्लंघन, अवैध खनन के मामलों के विरोध में झारखंड जनाधिकार महासभा के आव्हान पर जन संगठनों ने राजभवन के समक्ष धरना दिया। वक्ताओं ने कहा कि हेमन्त सरकार भी पूर्व की रघुवर सरकार के रास्ते चल रही है। राज्य भर के अनेक जन संगठनों के लोगों ने धरना में हिस्सा लिया। धरने की शुरुआत करते हुए संचालन कर रहे अम्बिका यादव और अलोका कुजूर ने धरने की पृष्टभूमि रखी। कहा, रघुवर दास सरकार की जन-विरोधी नीतियों व गतिविधियों के विरुद्ध वर्तमान राज्य सरकार को स्पष्ट जनादेश मिला था।
अनेक गावों में पत्थर का चल रहा है अवैध खनन
वर्तमान सरकार भाजपा सरकार से कई मामलों में बेहतर तो है, लेकिन अभी भी आदिवासी-मूलवासियों, खास कर के वंचितों, के विरुद्ध विभिन्न तरीकों से प्रशासनिक और पुलिसिया दमन हो रहा है। लगातार आदिवासी-मूलवासियों पर यूएपीए व राजद्रोह की धाराओं के तहत व माओवाद के फ़र्ज़ी मामले दर्ज हो रहे हैं। पत्थलगड़ी आन्दोलन में पिछली सरकार द्वारा आदिवासियों पर लगाए गए मामलों की वापसी वर्तमान राज्य सरकार की घोषणा के दो साल बाद भी नहीं हुई है। अनेक गावों में पत्थर का अवैध खनन चल रहा है एवं शिकायत के बावज़ूद प्रशासन द्वारा कार्यवाई नहीं की जा रही है।
प्राकृतिक संसाधन ख़तरे में हैं
कई लोगों ने पलामू ज़िले के पांडु प्रखंड में धजवा पहाड़ में हो रहे अवैध खनन पर बात रखी। धजवा पहाड़ बचाओं संघर्ष समिति के अरविंद पाल ने कहा कि अवैध खनन के विरुद्ध पलामू में 87 दिनों से धरना कर रहे है। पर प्रशासन धरने पर बैठे लोगों की बात नहीं सुन रहा। जब तक इस खनन के लिए बनी फ़र्ज़ी लीज़ ख़ारिज नहीं होती, तब तक लोग आंदोलन करते रहेंगे। सर्व हरा जन संघर्ष मोर्चा की पुष्पा भोगता ने कहा कि हमारे प्राकृतिक संसाधन ख़तरे में हैं। इन संसाधनो को अवैध रूप से बेचा जा रहा है। समाजवादी जन परिषद के भारत भूषण चौधरी ने कहा कि धजवा पहाड़ का मसला राज्य सरकार की परीक्षा है कि सरकार प्राकृतिक संसाधन की खुली लूट को रोकती है या नहीं और दोषी कंपनी व पदाधिकारियों पर कार्रवाई करती है या नहीं।
मानवाधिकार उल्लंघनों के मामलों को साझा किया
धरने में अनेक लोगों ने अपने क्षेत्र के मानवाधिकार उल्लंघनों के मामलों को साझा किया। गोमिया (बोकारो) के सुनील मांझी ने बताया कि उनके पिता संजय मांझी के विरुद्ध एक पूर्व के माओवादी घटना के फ़र्ज़ी आरोप पर कुर्की जब्ती का नोटिस निर्गत हुआ जबकि न वे फ़रार थे और न ही उनका माओवादी पार्टी या 2014 की घटना से कोई सम्बन्ध है। वहां ऐसे अनेक मामले हैं। लातेहार के लाल मोहन खेरवार ने बताया कि 12 जून 2021 को पिरी गांव (गारू) के निर्दोष 24 वर्षीय आदिवासी ब्रम्हदेव सिंह की सुरक्षा बलों द्वारा फायरिंग में गोली लगने से मृत्यु हो गयी थी। आज तक न दोषी सुरक्षा बलों पर प्राथमिकी दर्ज हुई, न पीड़ितों को मुआवज़ा मिला और न दोषियों पर कार्रवाई हुई।
निर्दोष ग्रामीणों के विरुद्ध की गयी हिंसा
पश्चिमी सिंहभूम से आए नारायण कांडेयांग और अजीत कांडेयांग ने कोल्हान में मानवअधिकार उल्लंघनों के कई मामलों को रखा। 15 जून 2020 को सीआरपीएफ के जवानों ने नक्सल सर्च अभियान के दौरान चिरियाबेड़ा ग्राम (अंजेडबेड़ा राजस्व गांव, खूंटपानी प्रखंड, पश्चिमी सिंहभूम) के आदिवासियों को डंडों, बैटन, राइफल के बट और बूटों से बेरहमी से पीटा गया। आज तक न दोषी सीआरपीएफ के विरुद्ध कार्रवाई हुई और न पीड़ितों को मुआवज़ा मिला। हाल में 23 जनवरी 2022 को पुलिस द्वारा चाईबासा शहर में निर्दोष ग्रामीणों के विरुद्ध हिंसा की गयी।
कई महिलाओं को अभी भी करनी पड़ती है बंधुआ मज़दूरी
आदिवासी विमेंस नेटवर्एक की एलीना होरो ने कहा कि अभी भी झारखंड की कई महिलाओं को बंधुआ मज़दूरी करनी पड़ती है और उनके साथ यौन शोषण भी होता है। अक्टूबर 2019 में दुमका की दो आदिवासी महिलाओं का बेंगलुरु के कारखाने में शोषण हुआ था लेकिन मामले में दो साल बाद चार्जशीट दायर हुआ और अभी तक ट्रायल शुरू नहीं हुआ है।
अवैध खनन के विरुद्ध लोग संघर्षरत
गांव गणराज्य के कुमार चंद मार्डी ने कहा कि झारखंड में लगातार किसी ना किसी मुद्दे पर संघर्ष हो रहा है। पूर्वी सिंहभूम के नाचोसाई में अवैध खनन के विरुद्ध लोग संघर्षरत हैं। राज्य सरकार ने अभी तक पेसा कानून की नियमावली नहीं बनायीं है जिसके कारण इस कानून को लागू नहीं किया जा रहा। इसलिए आज राज्यपाल के समक्ष इन मांगों को दोहराने आए हैं। हूल झारखंड क्रांति के बिरसा हेम्ब्रम ने कहा कि राज्य सरकार अभी तक वन अधिकारी कानून को सही से लागू नहीं कर रही है और जंगल में बसे लोगों पर दमन जारी है।
सुरक्षा के नाम पर हो रही है असुरक्षा
सामाजिक कार्यकर्ता व अर्थशास्त्री ज़्याँ द्रेज़ ने कहा कि आज अलग अलग जगहों से लोग आए हैं, झारखंड सरकार को यह कहने कि वह मानवाधिकार के प्रति अपनी प्रतिबधता दिखाए। विद्यालयों से सीआरपीएफ कैम्प हटाए जाए और पत्थलगड़ी में लोगों पर लगाए गए मुक़दमे वापस लिए जाएं। सुरक्षा के नाम पर असुरक्षा हो रही है, न्याय के नाम पर लोगों के साथ अन्याय हो रहा है। प्रफुल लिंडा ने कहा कि दुःख की बात है कि पूर्व की सरकार की तरह अभी भी भी राज्य में यूएपीए के मामले दर्ज किए जा रहे हैं और निर्दोष ग्रामीण ऐसे मामलों से जूझ रहे हैं। पीयूसीएल के किसलय ने कहा कि अगर वर्दी पहने वाले पुलिस और सुरक्षा बल के लोग लोगों का मानवाधिकार उल्लंघन करते हैं, तो ये बहुत चिंताजनक है।
सरकार भी भाषा आन्दोलन में झारखंडी भावना को नहीं समझ रही है
भाषा आंदोलन में सक्रिय दीपक रंजीत ने कहा कि लोगों ने रघुवर सरकार को 2019 में सत्ता से तो हटाया, पर झामुमो के नेतृत्व में बनी झारखंडी सरकार भी भाषा आन्दोलन में झारखंडी भावना को नहीं समझ रही है। एआईपीएफ के नदीम खान ने कहा वर्तमान सरकार के कार्यकाल में भी अनेक भीड़ द्वारा हिंसा के मामले हुए हैं। इस सरकार को याद दिलाने की ज़रूरत है कि पिछले सरकार के ऐसे जन विरोधी रवैये के कारण ही उसे बाहर किया गया था। धरने का समापन करते हुए मंथन ने कहा कि झारखंड जनाधिकार महासभा नियमित रूप से राज्य सरकार को उसके अपूर्ण वादों के बारे में याद दिला रही है। उन्होंने यह भी कहा कि झारखंड में राज्यपाल राज्य सरकार के काम की निगरानी नहीं कर रहे, जो उनकी ज़िम्मेदारी है।
राज्यपाल के नाम सौंपा गया ज्ञापन
धरना को घरेलु कामगार यूनियन की पूनम होरो, जोहार के गुरुचरण बागे, सीपीआई के लियो टोपनो, आज़ाद समाज पार्टी के सुरेन्द्र राम, सीपीआई (माले) के सरफ़राज़ अहमद, एसयूसीआइ (कम्युनिस्ट) के मिंटू पासवान, भारत जन आन्दोलन के जुनस लकड़ा आदि ने संबोधित किया।
अंत में राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपा गया जिसमें मानवाधिकार उल्लंघनों के कुछ मामलो की सूचि सौंपी गई। उन मामलों में उचित कार्रवाई कर पीड़ितों को न्याय और मुआवज़ा एवं दोषी पुलिस व सुरक्षाबलों के विरुद्ध न्यायसंगत कार्रवाई सुनिश्चित करने की मांग की गई। कहा गया कि नक्सल विरोधी अभियानों की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा लोगों को परेशान न किया जाए। लोगों पर फ़र्ज़ी आरोपों पर मामला दर्ज करना पुर्णतः बंद हो। सभी पत्थलगड़ी मामलों की अविलम्ब वापसी की जाए। गोमिया प्रखंड (बोकारो) में माओवाद के फ़र्ज़ी आरोपों पर फंसाए गए आदिवासी-मूलवासियों के मामलों के निष्पक्ष जांच के लिए न्यायिक जांच का गठन हो।
विद्यालयों से पुलिस कैंप को हटाया जाए और कहीं भी कैंप स्थापित करने से पहले ग्राम सभा व पंचायत से सहमति ली जाए। राज्य में यूएपीए व राजद्रोह धारा के इस्तेमाल पर पूर्ण रोक लगे। धजवा पहाड़ (पांडू, पलामू) में हो रहा अवैध खनन बंद हो, कंपनी, लीज़धारक व दोषी पदाधिकारी के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई हो, ग्रामीणों के विरुद्ध दर्ज मामले को निरस्त किया जाए एवं उन्हें पर्याप्त मुआवज़ा मिले।
वनाधिकार कानून को पूर्ण रूप से लागू किया जाए
निर्जीव पड़े हुए राज्य मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग को पुनर्जीवित किया जाए और इस आयोग की कार्यप्रणाली जनता के लिए सुलभ हो। महिलाओं के लिए एक सिंगल विन्डो शिकायत निवारण प्रणाली बनाई जाए जिससे महिलाएं किसी भी प्रकार के शोषण की स्थिति में न्यूनतम दस्तावेजों के साथ शिकायत दर्ज कर सकें। पांचवी अनुसूची प्रावधानों व पेसा को पूर्ण रूप से लागू किया जाए। वनाधिकार कानून को पूर्ण रूप से लागू किया जाए। पांचवी अनुसूची क्षेत्र के थानों, सुरक्षा बलों व स्थानीय प्रशासन के निर्णायक पदों पर प्राथमिकता स्थानीय, मुख्यतः आदिवासियों, को दी जाए। स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों को आदिवासी भाषा, रीति-रिवाज, संस्कृति और उनके जीवन-मूल्यों के बारे में प्रशिक्षित किया जाए और संवेदनशील बनाया जाए।
कई संगठनों ने लिया भाग
धरना में आदीवासी अधिकार मंच, आदीवासी मूलवासी अधिकार मंच बोकारो, आदीवासी यंगस्टर्स यूनिटी कोलहान चाईबासा, एएपीएफ झारखंड, अखिल झारखंड खरवार आदीवासी विकास परिषद झारखंड, एडब्ल्यूएन, आज़ाद समाज पार्टी, बग़ईचा नामकुम, भारत जन आंदोलन, बिहार प्रगतिशील मज़दूर यूनियन, भाकपा माले, धजवा बचाव संघर्ष समिती, घरेलु कामगार यूनियन, हुल झारखंड क्रांति दल, इज़्ज़त से जीने का अधिकार अभियान, जन संग्राम मोर्चा, झारखंड जनाधिकार महासभा, झारखंड जनतांत्रिक महासभा, झारखंड किसान परिषद, जोहार पश्चिम सिंहभूम चाईबासा, खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच पश्चिम सिंहभूम, मूलनिवासी संघ, पीयूसीएल रांची, समाजवादी जन परिषद, सर्वघरा जैन संघर्ष मोर्चा, एससी एसटी ऐंड माइनॉरिटी एकता मंच पलामू, एसयूसीआइ (कम्यूनिस्ट), डब्ल्यू एसएस, और यूथ सेल टी आर टी सी के लोग शामिल थे।