[Team insider] पश्चिम के देशों में योग और क्रिया योग को आम लोगों के बीच पहुंचाने वाले परमहंस योगानन्द जी ने आज ही के दिन आज से सत्तर साल पहले, 1952 में महासमाधि (एक महान योगी का ईश्वर के साथ एकात्मता की स्थिति में शरीर से अंतिम सचेतन प्रस्थान) में प्रवेश किया था।
मृत्यु के बीस दिन बाद भी कोई विकृति देख को नहीं मिली थी
महासमाधि लेने के बाद उनके पार्थिव शरीर में अनेक दिन बाद भी कोई विकृति देखने को नहीं मिली थी, जिससे फारेस्ट लान मेमोरियल(जहां उनका पार्थिव शरीर रखा गया था) के अधिकारी चकित थे। उन्होंने लिखा है- “परमहंस योगानन्दजी के पार्थिव शरीर में किसी भी प्रकार के विकार का लक्षण दिखाई न पड़ना हमारे लिए एक अत्यंत असाधारण और अपूर्व अनुभव है।… उनकी मृत्यु के बीस दिन बाद भी उनके शरीर में किसी भी प्रकार की विक्रिया नहीं दिखाई पड़ी। न तो त्वचा के रंग में किसी प्रकार के परिवर्तन के संकेत थे और न शरीर तंतुओं में शुष्कता ही आई प्रतीत होती थी।”
रांची योगदा सत्संग उनकी प्रारंभिक कर्मभूमि थी
रांची रेलवे स्टेशन के करीब लगभग तीन एकड़ में कायम योगदा सत्संग उनकी प्रारंभिक कर्मभूमि थी। 1917 उन्होंने यहां इसकी स्थापना की थी। आज भी यह देशी-विदेशी उनके अनुयायियों के लिए आस्था और ध्यान का बड़ा केंद्र है। आज सोमवार को योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इण्डिया (वाईएसएस) ने विशेष ऑनलाइन कार्यक्रमों के माध्यम से इस स्मरणोत्सव को मनाया, जिसमें अपने घरों से 4,000 से भी अधिक लोग सम्मिलित हुए।
हिंदी और अंग्रेज़ी में सत्संग सत्रों को संचालित किया
वरिष्ठ वाईएसएस संन्यासियों, स्वामी वासुदेवानन्द गिरि और स्वामी ललितानन्द गिरि ने इस अवसर पर वाईएसएस ऑनलाइन ध्यान केंद्र पर हिंदी और अंग्रेज़ी में विशेष ध्यान एवं सत्संग सत्रों को संचालित किया। इन सत्रों में प्रार्थना, प्रेरक वचन, भक्तिपूर्ण गायन और मौन ध्यान शामिल थे, और इनका समापन परमहंस योगानन्दजी द्वारा सिखाई गई आरोग्यकारी प्रविधि के अभ्यास के साथ हुआ। “पश्चिम में योग के जनक” के रूप में सुविख्यात, योगानन्दजी ने अपने आध्यात्मिक गौरवग्रंथ योगी कथामृत और अन्य कई लेखों के माध्यम से लाखों पश्चिमी लोगों को आत्मा से संबंधित भारत के कालातीत विज्ञान से परिचित कराया।
भारत के प्रति प्रेम की ओर ध्यान आकर्षित किया
अपने सत्संग में स्वामी वासुदेवानन्दजी ने इन महान् गुरु के भारत के प्रति प्रेम की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने बताया, “पृथ्वी पर हमारे गुरुदेव के अंतिम शब्द ईश्वर और भारत के विषय में थे जिसमें उन्होंने अपनी कविता, ‘मेरा भारत’ से कुछ पंक्तियां बोलीं: “जहां गंगा, वन, हिमालय की कन्दरायें, और जनमानस रहे मग्न ईश चिंतन में अनन्य, कर स्पर्श उस माटी को तन से, हुआ मैं परम-धन्य।”
श्री दयामाताजी की स्मृतियां साझा की
परमहंसजी को पहले से ही पता था कि वे कुछ ही दिनों में शरीर छोड़ने वाले हैं। स्वामी ललितानन्दजी ने श्री दयामाताजी (योगानन्दजी की एक अंतरंग एवं उन्नत शिष्या, जो बाद में वाईएसएस की तीसरी अध्यक्षा बनीं) की स्मृतियां साझा कीं, जिसमें उन्होंने इस घटना का उल्लेख किया – संसार से अपने प्रस्थान से कुछ समय पहले, परमहंसजी ने दया माताजी को बताया था कि वे “शीघ्र ही अपना शरीर छोड़ देंगे।” तब हतप्रभ होकर दया माताजी ने उनसे पूछा था: “गुरुजी, हम आपके बिना इस कार्य को कैसे करेंगे?”
प्रेम और भक्ति को नवीनीकृत करने के लिए प्रोत्साहित किया
महान् गुरु की प्रतिक्रिया थी: “यह याद रखना, मेरे जाने के बाद केवल प्रेम ही मेरा स्थान ले सकता है। रात और दिन ईश्वर के प्रेम में निमग्न रहो, और वह प्रेम सब को दो।” श्री दयामाताजी ने आगे लिखा, “इसी प्रेम की कमी के कारण, संसार दुखों से भर गया है।” स्वामी ललितानन्दजी ने यह वृत्तान्त सुनाते हुए इस ऑनलाइन कार्यक्रम में प्रतिभागियों को अपने दैनिक ध्यान के दौरान ईश्वर और गुरु के प्रति अपने प्रेम और भक्ति को नवीनीकृत करने के लिए प्रोत्साहित किया।
परमहंस योगानन्द की क्रियायोग शिक्षाएं योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (वाईएसएस/एसआरएफ़) की मुद्रित पाठमालाओं के माध्यम से उपलब्ध हैं। योगानन्दजी द्वारा स्थापित इन दोनों संस्थाओं के भारत और विश्वभर में 800 से भी अधिक आश्रम, केंद्र और मंडलियाँ शामिल हैं।
गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि का महासमाधि दिवस 9 मार्च को
यह भी अजीब संयोग है कि योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया (वाईएसएस)/सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप (एसआरएफ) के संस्थापक परमहंस योगानन्दजी का महासमाधि दिवस 7 मार्च को और उनके गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि का महासमाधि दिवस 9 मार्च को पड़ता। अपने जन्म के 129 वर्ष बाद भी आज श्री श्री परमहंस योगानन्दजी की गणना हमारे समय की परम विशिष्ट आध्यात्मिक विभूतियों में होती है। उनके बारे में कांचीपुरम के शंकराचार्य श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती ने लिखा है- “इस संसार में योगानन्दजी की उपस्थिति अंधकार के बीच चमकने वाले प्रकाश पुंज की तरह थी। ऐसी महान आत्मा का इस पृथ्वी पर आगमन विरले ही कभी होता है, जब मानव समाज में वास्तविक आवश्यकता हो।”
पहले 1977 में और दूसरी बार 7 मार्च 2017 को डाक टिकट जारी
योगानन्दजी और उनकी संस्था योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया के सम्मान में भारत सरकार ने सबसे पहले सन 1977 में और दूसरी बार 7 मार्च 2017 को डाक टिकट जारी किए। योगानन्दजी के जीवन और उनकी शिक्षाओं का प्रभाव निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। पश्चिमी देशों में उन्हें “फादर ऑफ योगा” कहा जाता है। वे कहते थे कि आध्यात्मिक संस्थान मधु के छत्ते हैं और ईश्वरानुभूति मधु है। उनके प्रयासों और कार्यों से आज क्रियायोग पूरे संसार में फैल चुका है और उसका विस्तार लगातार हो रहा है। योगानन्दजी ने 1952 में महासमाधि ली थी।
किसी भी समाज-समुदाय का आदर की दृष्टि से देखता था
योगानन्दजी के गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वर के बारे में अमेरिका के प्रसिद्ध लेखक डब्लू.वाई. इवांस-वेंट्ज ने लिखा है-“श्रीयुक्तेश्वरजी का स्वभाव कोमल और वाणी मृदु थी। उनकी उपस्थिति सुखद थी और अपने शिष्यों द्वारा अनायास आदर- प्रदान के वस्तुत: वे योग्य थे। जो कोई भी श्रीयुक्तेश्वरजी से परिचित था, भले ही वह किसी भी समाज- समुदाय का क्यों न हो, उन्हें अत्यंत आदर की दृष्टि से देखता था।” श्रीयुक्तेश्वरजी ने 1936 ईस्वी में अपना नश्वर शरीर त्याग कर महासमाधि ले ली थी। स्वामी श्रीयुक्तेश्वर जी ने महान गुरु महावतार बाबाजी के आदेश से एक कालजयी पुस्तक लिखी– “होली साइंस” (हिंदी अनुवाद-“कैवल्य दर्शनम”) जिसमें वेदों और बाइबिल की तुलना करते हुए आध्यात्म की सार्वभौमिकता को अत्यंत रोचक शैली में बताया गया है।
योगानन्दजी की लिखी विश्व प्रसिद्ध पुस्तक “आटोबायोग्राफी ऑफ अ योगी”
उनकी लिखी विश्व प्रसिद्ध पुस्तक “आटोबायोग्राफी ऑफ अ योगी” (हिंदी अनुवाद “योगी कथामृत”) के प्रकाशन के 75 वर्ष हो गए। योगानन्दजी की शिक्षाओं को शुद्ध रूप में प्रस्तुत करने के लिए उनके द्वारा योगदा सत्संग पाठमाला तैयार की गई हैं जो इच्छुक व्यक्तियों को डाक द्वारा नियमित रूप से घर बैठे मिल जाती हैं। सर्वविदित है कि वाईएसएस/एसआरएफ एक विश्वव्यापी आध्यात्मिक व लोकोपकारी संस्था है जिसके द्वारा परमहंस योगानन्दजी की आत्म-साक्षात्कार प्रदायिनी क्रियायोग शिक्षाओं का प्रसार किया जाता है। योगदा सत्संग के इन पाठों और योगानन्दजी की लिखी पुस्तकों के माध्यम से वाईएसएस/एसआरएफ उनकी शिक्षाओं को शुद्ध रूप में प्रस्तुत करता है। अधिक जानकारी: www.yssofindia.org