खुद के नाम माइनिंग लीज लेने के मामले में मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को राज्यपाल के इरादे पर शक है। इंटेंशन पर शक की वजह चुनाव आयोग से सेकेंड ओपिनियन मांगे जाने के राज्यपाल के एक्ट को लेकर है। और मुख्यमंत्री ने चुनाव आयोग से यह कहकर यह जाहिर किया कि बिना मेरा पक्ष सुने राज्यपाल को सेकेंड ओपिनियन न दे। इस संबंध में मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के अधिवक्ता वैभव तोमर ने 31 अक्टूबर को ही चुनाव आयोग को पत्र लिखा था मगर हेमन्त सोरेन की पार्टी झामुमो ने सोमवार की सुबह इसे सार्वजनिक किया। खुद के नाम माइनिंग लीज यानी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में विधानसभा से अपनी सदस्यता को लेकर चुनाव आयोग को हेमन्त सोरेन की ओर से यह दूसरा पत्र है।
झारखंड में फट सकता है एकाध एटम बम
27 अक्टूबर को ही छत्तीसगढ़ के रायपुर में एक चैनल के साथ साक्षात्कार में राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि उन्होंने चुनाव आयोग से हेमन्त सोरेन के मामले में सेकेंड ओपिनियन मांगा है। दलील यह भी कि बदले की भावना से काम किया है इसे लेकर कोई उंगली न उठाये इसलिए सेकेंड ओपिनियन ले रहे हैं। यह भी कह दिया कि झारखंड में एकाद एटम बम फट सकता है। चुनाव आयोग के मंतव्य के दो माह तक राज्यपाल की खामोशी के बाद इस एटम बम वाले वक्तव्य पर बवाल मचा रहा।
खूब हुआ राजनीतिक ड्रामा
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने कह दिया था कि राज्यपाल भाजपा नेता के रूप में बयान दे रहे हैं। तो झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टा चार्य ने कहा कि एक ही मसले पर आयोग अलग राय कैसे दे सकेगा। दूसरा मंतव्य भाजपा मुख्यालय से मांगा जा रहा है। 25 अगस्त को जब चुनाव आयोग के विशेष दूत ने मंतव्य राजभवन में पहुंचाया। मीडिया रिपोर्टों में हेमन्त सोरेन की सदस्यता खत्म हो चुकी थी। खूब राजनीतिक ड्रामा हुआ। राज्यपाल के एटम बम वाले बयान पर यूपीए नेताओं ने कड़ी आपत्ति जताई, विरोध किया। मगर चार-पांच दिनों के बाद ही हेमन्त सोरेन को ईडी के समन के रूप में विस्फोट हो गया।
राज्यपाल को बाइपास कर दिया गया
ये ऐसी गतिविधियां रहीं जिससे हेमन्त और उनकी पार्टी को राज्यपाल के इरादे पर शक रहा। उसका प्रकारांतर से इजहार इस रूप में भी हुआ कि सदन में विश्वास मत हासिल करने का मौका हो या 1932 के खतियान आधारित स्थानीयता और ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण के लिए 11 नवंबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने का, राज्यपाल को बाइपास कर दिया गया। मॉनसून सत्र के विस्तार के रूप में इसे स्वीकृति दी गई। जबकि विधानसभा का मॉनसून सत्र 29 जुलाई से 4 अगस्त तक आहूत था। संभव था राज्यपाल विशेष सत्र में अड़ंगा डाल सकते थे, आपत्ति कर सकते थे। हालांकि दो बार विशेष परिस्थिति में सदन के सत्र का विस्तार, संसदीय इतिहास में अभूतपूर्व मौका होगा। मगर इश्क और जंग की तरह राजनीति में सब जायज है।
मामले में दुबारा मंतव्य मांगा है, दिया था
बहरहाल चुनाव आयोग से सेकेंड ओपिनियन के मसले पर हेमन्त के अधिवक्ता के पत्र को लेकर झामुमो माउथपीस और पार्टी के वरिष्ठ नेता सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं कि ”मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के अधिवक्ता वैभव तोमर ने भारत निर्वाचन आयोग को केस 3(G)/2022 मामले में 31 अक्टूबर 2022 को फिर पत्र भेजकर राज्यपाल, द्वारा आयोग से मांगे गए दूसरे मंतव्य के पत्र की कॉपी उपलब्ध कराने की मांग की है। अधिवक्ता ने पत्र में झारखंड के राज्यपाल द्वारा इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया को 27 अक्टूबर के दिन छत्तीसगढ़ के रायपुर में दिए बयान जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्होंने भारत निर्वाचन आयोग से उपरोक्त मामले में दुबारा मंतव्य मांगा है, दिया था।
अधिवक्ता ने पत्र में यह भी लिखा है कि उनके मुवक्किल को निर्वाचन आयोग से इस बारे में कोई जानकरी नहीं मिली है। साथ ही अधिवक्ता ने लिखा है कि भारत के संविधान के अंतर्गत गठित निर्वाचन आयोग एक स्वतंत्र संस्थान है और उनके मुवक्किल की बात को निष्पक्ष और प्रभावी ढंग से सुने बिना माननीय राज्यपाल द्वारा आयोग से मांगे गए दूसरे मंतव्य पर राय न दें।” इसके पहले भी हेमन्त के अधिवक्ता चुनाव आयोग से, यूपीए के सदस्य राज्यपाल से, खुद हेमन्त सोरेन राज्यपाल से मिलकर और आरटीआई के माध्यम से चुनाव आयोग के मंतव्य की मांग की जा चुकी है।
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ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में खूब हो चुका है खेला
दरअसल ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में खूब खेला हो चुका है। चुनाव आयोग का मंतव्य यानी बंद लिफाफे का मजमून आज तक आधिकारिक रूप से सार्वजनिक नहीं हुआ है। मंतव्य क्या है इसके लिए हेमन्त सोरेन के अधिवक्ता चुनाव आयोग को पत्र लिख चुके, यूपीए का शिष्टमंडल राजभवन जाकर राज्यपाल से मिला, खुल मुख्यमंत्री राज्यपाल से जाकर मिले, सूचना के अधिकार के तहत भी जानकारी मांगी कई। सूचना नहीं मिली।
चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि यह आरटीआई के दायरे में नहीं आता। इसके बावजूद हेमन्त सोरेन के अधिवक्ता के दूसरे पत्र का निहितार्थ समझा जा सकता है। विभिन्न मसलों और विधेयकों पर आपत्ति को लेकर राजभवन और हेमन्त सरकार में पहले से टकराव की नौबत है। ईडी, चुनाव आयोग, आयकर और सीबीआई को लेकर यूपीए पहले से आक्रामक है। विरोधियों को परेशान करने के लिए इन्हें भाजपा का टूल बताया जा रहा है। अब राज्यपाल को एक्सपोज करने में झामुमो जुटा है।