झारखंड के मुख्यमंत्री की अपनी मर्यादित भाषा को लेकर अलग पहचान है। नाराजगी के बावजूद दूसरे नेताओं की तरह अमूमन सीमा नहीं लांघते। शनिवार को ही वे राज्यपाल पर भड़के मगर भाषा का ध्यान रखा। खुद के नाम माइनिंग लीज के मसले पर उनकी विधानसभा सदस्यता पर सवाल उठ रहा है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने इस बिना पर राज्यपाल को ज्ञापन देकर उनकी सदस्यता समाप्त करने का आग्रह किया था। राज्यपाल ने उसे चुनाव आयोग को भेज दिया। आयोग ने ही अगस्त में अपना मंतव्य राजभवन को भेज दिया।
राजभवन इस मामले पर अब तक निर्णय नहीं कर पाया है। जब हेमन्त सोरेन की सब्र का बांध टूटा तो उन्होंने राज्यपाल पर शनिवार को आक्रमण किया। कहा कि मैं दोषी हूं तो सजा सुनाइये। आपने कभी ऐसे आरोपी को देखा है जो खुद सजा सुनाने, फैसले का गुहार लगा रहा हो। मर्यादित तरीके से ही कहा कि यदि चुनाव आयोग ने सजा सुनाई हो, मैं सजा का पात्र हूं और संवैधानिक पद पर बैठकर फैसले ले रहा हूं तो उन फैसलों की जिम्मेदारी किस पर है। राज्यपाल सजा न सुनाकर जो भ्रम की स्थिति बनाये हुए हैं मेरे लिए किसी सजा से कम नहीं है। चुनाव आयोग या राजभवन यही बताये कि फैसला नहीं बता पा रहे हैं तो उसके पीछे की वजह क्या है।
टिप्पणी सामने आयी लिफाफे में कस के लगा है गोंद
बहरहाल इस मामले में राजभवन की खामोशी से राज्यपाल की भद पिट रही है। भाजपा के नेता यह जरूर कह रहे हैं कि राज्यपाल चुनाव आयोग के मंतव्य पर कब फैसला सुनायेंगे इसकी कोई सीमा तय नहीं है। मगर राजभवन की खामोशी के कारण जनता की नजर में इरादे पर शक की सुई घूम रही है। इस गंभीर मसले पर राज्यपाल की हल्की टिप्पणी सामने आयी लिफाफे में गोंद कस के लगा है।
अगस्त के अंतिम सप्ताह में यह पत्र राजभवन पहुंचने के पहले ही भाजपा के गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे ने टि्वट कर संदेश को सार्वजनिक किया। तो भाजपा के बड़े नेताओं के फेसबुक, टि्वटर पर इससे जुड़ी टिप्पणी की बाढ़ आ गई। झारखंड की राजनीति में तूफान मचा रहा। कई दिनों तक यहां के अखबारों में सरकार के अस्थिर होने, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की विधायकी खत्म होने की लीड स्टोरी छपती रही। देश भर में सोशल मीडिया में खबर वायरल रही।
विधायकों को एकजुट रखने की कवायद और यात्रा कराते रहे
हेमन्त सोरेन भी अपने विधायकों को एकजुट रखने की कवायद और खूंटी से रायपुर तक की यात्रा कराते रहे। जनता देखती रही। बंद लिफाफे का मजमून अब तक सार्वजनिक नहीं होने पर जनता के मन में राजभवन के प्रति शक का भाव पैदा होना अस्वाभाविक नहीं है। चुनाव आयोग का मंतव्य क्या है इसे लेकर हेमन्त सोरेन के अधिवक्ता ने चुनाव आयोग से याचना की, राजनीतिक अस्थिरता को देखते हुए यूपीए विधायकों ने राजभवन जाकर राज्यपाल से फैसले का आग्रह किया, तब राज्यपाल ने दो-तीन दिनों के भीतर निर्णय का भरोसा दिलाया। निर्णय नहीं आया तो खुद मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन राजभवन पहुंच राज्यपाल से मुलाकात की और आयोग का पत्र मांगा। झामुमो ने सूचना के अधिकार के तहत भी आवेदन किया मगर नतीजा शून्य है। ऐसे में हेमंत सोरेन का गुस्सा गैर वाजिब नहीं है।
हेमन्त सोरेन और तेजी से मजबूत होकर उभरे
जानकार मानते हैं कि इस पूरे प्रकरण में राजभवन की खामोशी से हेमन्त सोरेन और तेजी से मजबूत होकर उभरे हैं। राजभवन की खामोशी के कारण इस प्रकरण में आक्रामक रही भाजपा बैकफुट पर आ गई। जब सरकार चंद दिनों की मेहमान होती है तो मुख्यमंत्री महत्वपूर्ण फाइलों को निपटा लेना चाहते हैं। हेमन्त सोरेन ने भी मौके का फायदा उठाया। पुरानी पेंशन योजना, पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण, 1932 के खतियान आधारित स्थानीयता नीति, आदिवासी, मूलवासी के तीन दशक से जारी आंदोलन- नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज और इसी तरह के कई और जनता के बड़े वर्ग को प्रभावित करने वाले फैसले कर डाले जो शायद पूरे कार्यकाल में कर पाते।
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चुनाव आयोग के बंद लिफाफे ने राजभवन की हवा निकाल दी
इस तरह के फैसलों के बाद सरकार के प्रति जनता की संतुष्टि के स्तर को बढ़ाने वाले ”आपके अधिकार, आपकी सरकार, आपके द्वार” कार्यक्रम के दूसरे चरण को शुरू कर दिया। जब खुद को मजबूत महसूस करने लगे, लगा कि अपना सब ठीक है तो शनिवार को राज्यपाल पर आक्रमण कर बैठे। विधेयकों में त्रुटि, कानून-व्यवस्था व विवि और सरकार के काम काज को लेकर राज्यपाल के सख्त तेवर के कारण राज्यपाल और सरकार के बीच रिश्ते लगातार तीखे रहे। राजभवन आक्रामक रहा मगर हेमन्त सोरेन की विधायकी के मसले पर चुनाव आयोग के बंद लिफाफे ने राजभवन की हवा निकाल दी है। लगता है कमजोर कानूनी पक्ष फैसला सुनाने में बाधक बन गया है। भ्रष्टाचार के सवाल पर केंद्रीय एजेंसियों की सक्रियता और हेमन्त के करीबी लोगों की लगातार हो रही घेराबंदी पर विपक्ष को उम्मीद की किरण दिख रही है।