झारखंड के खूंटी जिले में अंग्रेजों ने जालियांवाला बाग की घटना के बीस साल पहले नौ जनवरी 1899 को हजारों मुंडाओं का बेरहमी से नरसंहार कर दिया था। इसमें महिलाएं और बच्चे काफी संख्या में कत्ल किए गए थे। इस पहाड़ी पर बिरसा मुंडा अपने प्रमुख 12 शिष्यों सहित हजारों मुंडाओं को जल, जंगल, जमीन बचाने को लेकर संबोधित कर रहे थे। आस-पास के दर्जनों गांवों से लोग एकत्रित होकर भगवान बिरसा को सुनने गए थे। बात अभी शुरू ही हुई थी कि अंग्रेजों ने डोंबारी बुरू हो घेर लिया।
हथियार डालने के लिए अंग्रेज मुंडाओं को ललकारने लगे। लेकिन मुंडाओं ने हथियार डालने की बजाय शहीद होने का रास्ता चुना। फिर क्या था, अंग्रेजों की सैनिक टुकड़ी टूट पड़ी और हजारों को मौत के घाट उतार दिया। बिरसा मुंडा गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें आज के बिरसा मुंडा कारावास में बंद कर दिया गया। पहुंचने के साथ ही पहाड़ियों को घेर कर निहत्थे आदिवासी पर गोली बरसायी थी। इस गोली कांड में बताया जाता है कि 400 आदिवासियों की जान चली गयी थी।
डोम्बारी में 105 फिट का बनाया गया है उंचा स्तंभ
आज भी हर वर्ष 9 जनवरी की डोम्बारी में मेला का आयोजन किया जाता है, यहां पहुंच कर लोग उस वक्त की याद ताज़ा करते है। कैसे आदिवासियों पर गोलियां बरसायी गयी थी। आदिवासियों के बलिदान की याद में डोम्बारी में एक 105 फिट उचा स्तंभ बनाया गया है। लोग इसे जलीयांवाला बाग भी कहते है। जलियांवाला बाग के बारे में तो पूरा देश जानता है। लेकिन झारखंड के डोम्बारी बुरु के बारे में अधिकांश लोग नहीं जानते है।
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सबसे पहले अंग्रेजों के खिलाफ उलगुलान की गई थी
डोम्बारी बुरु स्तंभ पर श्रद्धांजलि देने पहुंचे कृष्णा मुंडा बताते है कि उन्होंने डोम्बारी के बारे उन्हें उनके पूर्वजों से जानकारी मिली थी।उसके बाद से हर वर्ष वह यहां पहुंचते है। कृष्णा ने कहा कि सभी किताबों में इस इतिहास को बताने की जरूरत है। इसके अलावा सुखराम मुंडा बताते है कि 1899 में सबसे पहले अंग्रेजों के खिलाफ उलगुलान की गई थी। इसी की रणनीति बनाने के दौरान निहत्थे आदिवासी पर गोली चलाई गई थी। आदिवासियों के खून से पहाड़ लाल हो गई थी। लेकिन इसके बाद आंदोलन रुका नही। अपने 400 साथियों के शहादत का गुस्सा बिरसा मुंडा और उसके साथियों के लिए हथियार बन गया। इसके बाद और तेजी से आंदोलन को धार दिया गया।