रांची: झारखंड की राजनीति में शुक्रवार को एक बड़ा बदलाव देखने को मिला। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी ने पार्टी से नाता तोड़कर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) में शामिल होने का ऐलान कर दिया। साहिबगंज के ऐतिहासिक भोगनाडीह में आयोजित एक समारोह में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खुद ताला मरांडी को पार्टी की सदस्यता दिलाई।
इस्तीफे के पीछे वैचारिक मतभेद
ताला मरांडी ने भाजपा से इस्तीफा देते हुए अपने पत्र में वैचारिक मतभेदों और व्यक्तिगत कारणों को वजह बताया। उन्होंने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को लिखे पत्र में कहा, “यह फैसला मैंने लंबे विचार-विमर्श के बाद लिया है। इसमें किसी तरह की दुर्भावना नहीं है।” मरांडी ने यह भी कहा कि वह अब झामुमो के साथ मिलकर झारखंड के विकास और जनजातीय समुदायों के हितों के लिए काम करेंगे।
44 साल बाद झामुमो में वापसी
ताला मरांडी का राजनीतिक सफर 1980 के दशक में झामुमो से ही शुरू हुआ था। इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हुए और फिर 2003 में भाजपा में चले गए। भाजपा के टिकट पर उन्होंने बोरियो विधानसभा सीट से 2005 और 2014 में जीत हासिल की। 2016 में उन्हें भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन कुछ महीनों बाद ही उन्होंने यह पद छोड़ दिया था। अब 44 साल बाद उनकी झामुमो में वापसी को एक भावनात्मक और रणनीतिक कदम के तौर पर देखा जा रहा है।
भाजपा के लिए झटका, झामुमो को मजबूती
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ताला मरांडी का भाजपा छोड़ना पार्टी के लिए एक बड़ा नुकसान साबित हो सकता है, खासकर तब जब राज्य में आगामी चुनावों की तैयारियां जोरों पर हैं। मरांडी संथाल परगना क्षेत्र में एक प्रभावशाली नेता माने जाते हैं, जहां झामुमो का पहले से ही मजबूत आधार है। दूसरी ओर, झामुमो के लिए यह एक रणनीतिक जीत है, क्योंकि मरांडी के अनुभव और प्रभाव से पार्टी को संथाल क्षेत्र में और मजबूती मिलने की उम्मीद है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का स्वागत
ताला मरांडी को पार्टी में शामिल करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा, “ताला जी का झामुमो में वापस आना हमारे लिए गर्व की बात है। वह एक अनुभवी नेता हैं और उनके साथ मिलकर हम झारखंड के विकास को नई दिशा देंगे।” इस मौके पर ताला मरांडी ने भी कहा कि वह अपने पुराने घर में लौटकर खुश हैं और अब उनका पूरा ध्यान जनजातीय समुदायों के उत्थान और राज्य की तरक्की पर होगा।
क्या होगा सियासी असर?
ताला मरांडी का यह कदम संथाल परगना की राजनीति को नए सिरे से प्रभावित कर सकता है। यह क्षेत्र झामुमो का गढ़ माना जाता है, लेकिन भाजपा ने पिछले कुछ सालों में यहां अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है। मरांडी का झामुमो में जाना न सिर्फ भाजपा की रणनीति को झटका दे सकता है, बल्कि झामुमो को चुनावों से पहले एक नई ऊर्जा भी दे सकता है।