बिहार की राजनीति में सुपौल विधानसभा Supaul Vidhansabha (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 43) का महत्व इसलिए खास है क्योंकि यह सीट न केवल ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रखती है बल्कि यहां का चुनावी समीकरण हमेशा से पूरे इलाके की राजनीति को दिशा देता आया है। सुपौल वैदिक काल से ही मिथिलांचल का हिस्सा रहा है और यहां बहने वाली कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है। इस प्राकृतिक चुनौती और जातीय समीकरणों के बीच सुपौल विधानसभा ने कई दिग्गज नेताओं को जन्म दिया है।
चुनावी इतिहास
सुपौल सीट पर पहली बार 1951 में आम चुनाव हुए और कांग्रेस के लहतों चौधरी यहां के पहले विधायक बने। 1967 से 1972 तक कांग्रेस ने लगातार इस सीट पर कब्जा बनाए रखा। लेकिन 1990 से इस सीट पर राजनीति का चेहरा बदल गया और जदयू के दिग्गज नेता बिजेंद्र प्रसाद यादव ने यहां अपना दबदबा कायम कर लिया। वे लगातार छह बार इस सीट से चुनाव जीतते रहे और विपक्षी दलों के लिए उन्हें हराना हमेशा मुश्किल साबित हुआ।
Pipra Vidhansabha : जातीय समीकरण के बीच मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना है
2010 में भी बिजेंद्र प्रसाद यादव ने आरजेडी उम्मीदवार रविंद्र कुमार रमण को हराकर अपनी पकड़ मजबूत की। 2015 के चुनाव में जब जदयू ने महागठबंधन का हिस्सा बनकर भाजपा से अलग चुनाव लड़ा तो भी उन्होंने भाजपा के किशोर कुमार को हराकर सीट पर कब्जा बनाए रखा। इस चुनाव में जदयू को 82,295 वोट मिले, जबकि भाजपा 44,898 वोटों पर सिमट गई। यह नतीजा उस समय के राजनीतिक समीकरणों का बड़ा संकेत था।
2020 में एक बार फिर सुपौल ने अपने पुराने नेता पर भरोसा जताया। जदयू प्रत्याशी बिजेंद्र प्रसाद यादव ने कांग्रेस उम्मीदवार मिनतुल्लाह रहमानी को 28,099 वोटों के अंतर से हराया। इस चुनाव में जदयू को 85,921 वोट मिले, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार को 58,075 वोट हासिल हुए। लगातार तीन दशकों से ज्यादा समय तक जीत हासिल करना इस बात को साबित करता है कि सुपौल की राजनीति में बिजेंद्र प्रसाद यादव का कद कितना मजबूत है।
जातिगत समीकरण
अगर जातीय समीकरणों पर नजर डालें तो सुपौल सीट पर मुस्लिम और यादव मतदाता सबसे अहम भूमिका निभाते हैं। पासवान समाज के वोट भी निर्णायक स्थिति में हैं। यही कारण है कि सभी राजनीतिक दल इस त्रिकोणीय समीकरण को साधने की कोशिश करते हैं। यहां कुल 2,45,712 मतदाता हैं, जिनमें 1,27,942 पुरुष और 1,17,762 महिलाएं शामिल हैं। महिला मतदाताओं की मजबूत उपस्थिति यहां के चुनावी नतीजों में संतुलन का काम करती है।
‘MY’ समीकरण साधने की तैयारी में RJD-Congress
भविष्य की राजनीति की बात करें तो 2025 का चुनाव सुपौल में दिलचस्प होने वाला है। जदयू की ओर से फिर से बिजेंद्र प्रसाद यादव के मैदान में उतरने की संभावना है, वहीं कांग्रेस और राजद अपने-अपने उम्मीदवारों के जरिए यादव-मुस्लिम समीकरण साधने की तैयारी करेंगे। भाजपा की चुनौती यह होगी कि वह अपनी पैठ कैसे मजबूत करे क्योंकि 2015 और 2020 में यहां उसका प्रदर्शन कमजोर रहा है।
सुपौल विधानसभा सीट का इतिहास बताता है कि यहां की राजनीति जातीय समीकरण और विकास दोनों पर टिकी है। कोसी नदी की बाढ़, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दे चुनाव में हमेशा असर डालते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या 2025 में सुपौल अपने पुराने भरोसे को बनाए रखेगा या फिर कोई नया राजनीतिक समीकरण यहां तस्वीर बदल देगा।






















