नई दिल्ली। बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर चल रही कानूनी जंग पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बड़ा फैसला सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि अब आधार कार्ड को मतदाता पहचान के लिए 12वें वैध दस्तावेज के रूप में मान्यता दी जाएगी। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार केवल निवास का प्रमाण है, इसे नागरिकता साबित करने का आधार नहीं माना जाएगा।
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सुनवाई के दौरान निर्वाचन आयोग ने अदालत को जानकारी दी कि बिहार में पंजीकृत 7.24 करोड़ मतदाताओं में से 99.6 प्रतिशत पहले ही अपने आवश्यक दस्तावेज जमा कर चुके हैं। आयोग ने कहा कि अब तक केवल 65 लाख लोगों के मामलों में आधार को वैध दस्तावेज मानने की अनुमति दी गई थी, लेकिन इस फैसले के बाद यह दायरा और बढ़ गया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अब तक किसी भी याचिकाकर्ता ने यह साबित नहीं किया कि बड़ी संख्या में लोगों को गलत तरीके से मतदाता सूची से बाहर किया गया है।
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इस आदेश के बाद राजनीतिक और चुनावी विश्लेषण के स्तर पर हलचल तेज हो गई है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर चुनाव विश्लेषक योगेंद्र यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए लिखा कि “दो महीने लंबी कानूनी लड़ाई के बाद वोटबंदी की साजिश (SIR) पर विराम लग गया है। आज का आदेश केवल बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश में करोड़ों लोगों के मताधिकार की रक्षा करता है।”
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि आधार कार्ड को अन्य 11 दस्तावेजों की तरह मान्यता दी जाए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इसकी प्रामाणिकता की जांच संभव है, लेकिन इसे नागरिकता प्रमाणपत्र नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि यह आदेश अवैध प्रवासियों को मतदाता सूची में शामिल करने का रास्ता नहीं खोलता।






















