सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले हो रहे वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन को लेकर दायर याचिकाओं पर अहम सुनवाई की। शीर्ष अदालत ने निर्वाचन आयोग से स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि उसे मतदाता सूची में नागरिकता की जांच करनी थी, तो यह प्रक्रिया पहले शुरू की जानी चाहिए थी। कोर्ट ने कहा कि चुनाव अब नजदीक हैं और अब इस तरह का कदम उठाना समय की दृष्टि से उचित नहीं लगता।
सुनवाई के दौरान जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने निर्वाचन आयोग से सवाल किया कि वह आधार कार्ड को दस्तावेज के रूप में क्यों नहीं मान रहा और नागरिकता की जांच की ज़िम्मेदारी क्यों उठा रहा है, जो कि मुख्य रूप से केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है।
बिहार में बीजेपी 109 सीटों पर लड़ेगी चुनाव.. क्या बोले दिलीप जायसवाल
चुनाव आयोग की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी, के. के. वेणुगोपाल और मनिंदर सिंह ने तर्क दिया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार मतदाता बनने के लिए नागरिकता की पुष्टि आवश्यक है। आयोग ने यह भी कहा कि केवल आधार कार्ड से किसी व्यक्ति की नागरिकता साबित नहीं होती है। कोर्ट ने यह भी याद दिलाया कि इस प्रकार की व्यापक मतदाता सूची पुनरीक्षण की प्रक्रिया पिछली बार वर्ष 2003 में की गई थी। अब जब बिहार में विधानसभा चुनावों में कुछ ही महीने बाकी हैं, तो चुनाव आयोग का यह कदम देर से उठाया गया प्रतीत होता है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत मतदाता सूची के पुनरीक्षण की अनुमति अवश्य दी जा सकती है, लेकिन मौजूदा प्रक्रिया में पारदर्शिता और वैधानिकता को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि करीब 7.9 करोड़ नागरिक इस पुनरीक्षण प्रक्रिया के अंतर्गत आएंगे, परंतु मतदाता पहचान पत्र और आधार जैसे मूल दस्तावेजों पर भी विचार नहीं किया जा रहा है।
बेटे इराज और पत्नी को लेकर पटना लौटे तेजस्वी यादव.. चुनाव आयोग पर खूब बरसे
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि निर्वाचन आयोग द्वारा किया जा रहा कार्य संविधान के दायरे में है, लेकिन उसके कदमों के समय और प्रक्रिया पर सवाल उठते हैं। कोर्ट ने फिलहाल सुनवाई स्थगित करते हुए चुनाव आयोग से और स्पष्टीकरण मांगा है।