नई दिल्ली : भारत में वक्फ (संशोधन) कानून 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई ने न केवल देश के मुस्लिम समुदाय, बल्कि पड़ोसी देशों पाकिस्तान और बांग्लादेश को भी सतर्क कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से ‘वक्फ बाय यूजर’ के मुद्दे पर सात दिन में जवाब मांगा है, लेकिन फिलहाल कानून पर कोई रोक नहीं लगाई। अगली सुनवाई 5 मई को होगी, जिसे लेकर तरह-तरह की आशंकाएं जताई जा रही हैं। आखिर इस कानून से जुड़ा ऐसा क्या है, जो इसे लेकर इतना हंगामा मचा है?
सुप्रीम कोर्ट का रुख और ‘वक्फ बाय यूजर’ का मसला
मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि 110-120 फाइलों को पढ़ना संभव नहीं है, इसलिए केवल पांच मुख्य बिंदुओं पर सुनवाई होगी। कोर्ट ने ‘वक्फ बाय यूजर’ के सिद्धांत पर विशेष जोर दिया, जिसके तहत कोई संपत्ति मस्जिद या कब्रिस्तान जैसे धार्मिक उद्देश्यों के लिए लगातार उपयोग होने पर वक्फ मानी जाती थी, भले ही उसे औपचारिक रूप से वक्फ घोषित न किया गया हो। नए कानून में इस प्रावधान को हटा दिया गया है और वक्फ के लिए यह शर्त जोड़ी गई है कि व्यक्ति को कम से कम पांच साल से इस्लाम का पालन करने वाला होना चाहिए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि अगली सुनवाई तक वक्फ बोर्ड या वक्फ परिषद में कोई नियुक्ति नहीं होगी और न ही ‘वक्फ बाय यूजर’ या कलेक्टर के जरिए संपत्तियों में कोई बदलाव किया जाएगा।
मुस्लिम समुदाय और विपक्ष की आपत्तियां
कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी, और कई मुस्लिम संगठनों ने इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। इनका कहना है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 25 (धार्मिक स्वतंत्रता), और 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार) का उल्लंघन करता है। नए कानून में वक्फ बोर्ड और सेंट्रल वक्फ काउंसिल में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने, वक्फ आयुक्त की जगह कलेक्टर को सर्वे का अधिकार देने, और वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसलों को हाईकोर्ट में चुनौती देने की व्यवस्था पर सबसे ज्यादा विवाद है। मुस्लिम संगठनों को डर है कि कलेक्टर के हाथ में सर्वे का अधिकार आने से सरकारी जमीनों को वक्फ से बाहर किया जा सकता है। साथ ही, गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति से वक्फ बोर्ड में बहुमत गैर-मुस्लिमों का हो सकता है, जो पहले केवल मुस्लिम सदस्यों तक सीमित था।
सरकार का दावा: पारदर्शिता और जवाबदेही
केंद्र सरकार और अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू का कहना है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए है। सरकार का तर्क है कि डिजिटलीकरण, ऑडिटिंग, और कलेक्टर की निगरानी से वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोका जाएगा। सरकार का यह भी कहना है कि इससे मुस्लिम महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए बेहतर योजनाएं लागू की जा सकेंगी।
पाकिस्तान और बांग्लादेश में क्यों है बेचैनी?
वक्फ कानून को लेकर भारत के पड़ोसी देशों में भी तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। बांग्लादेश की जमात-ए-इस्लामी और इस्लामी छात्रशिबिर ने इस कानून की निंदा की है, जबकि बांग्लादेश की खिलाफत मजलिस पार्टी ने 23 अप्रैल को ढाका में भारतीय दूतावास तक मार्च की घोषणा की है। पार्टी के नेता मौलाना ममुनुल हक ने आरोप लगाया कि यह कानून मुस्लिमों के धार्मिक अधिकारों का हनन करता है। पाकिस्तानी अखबार ‘द डॉन’ ने इसे मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने वाला कानून बताया, जबकि विश्लेषक डॉ. कमर चीमा ने इसे ‘हिंदू बहुसंख्यकवाद’ का प्रतीक करार दिया। इन देशों का मानना है कि यह कानून भारत में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ है, जिसका असर क्षेत्रीय स्तर पर भी पड़ सकता है।
वक्फ बोर्ड की संपत्तियां: कितनी और कहां?
वक्फ बोर्ड के पास भारत में करीब 8.7 लाख संपत्तियां हैं, जो 9.4 लाख एकड़ जमीन में फैली हैं। इनकी अनुमानित कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपये है। सेना और रेलवे के बाद वक्फ बोर्ड देश का तीसरा सबसे बड़ा जमीन मालिक है। वक्फ संपत्ति को न बेचा जा सकता है, न खरीदा जा सकता है, और न ही इसका हस्तांतरण हो सकता है।
5 मई को क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई 5 मई को होगी, जिसमें केंद्र सरकार के जवाब और पांच मुख्य याचिकाओं पर चर्चा होगी। मुस्लिम संगठनों, खासकर जमीयत उलेमा-ए-हिंद के नेता मौलाना महमूद मदनी, ने शांतिपूर्ण विरोध की अपील की है, लेकिन सड़कों पर तनाव बढ़ने की आशंका जताई है। कई लोग इसे धार्मिक स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई मान रहे हैं, जबकि सरकार इसे प्रशासनिक सुधार का कदम बता रही है। इस सुनवाई का नतीजा न केवल भारत के मुस्लिम समुदाय, बल्कि क्षेत्रीय राजनीति और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों पर भी असर डाल सकता है।