नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज मंगलवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। इस अधिनियम को लेकर देशभर में तीखी बहस छिड़ी हुई है, जिसमें विपक्षी दलों और याचिकाकर्ताओं ने इसे अल्पसंख्यक समुदाय के मौलिक अधिकारों पर हमला करार दिया है।
बता दें सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि यह अधिनियम वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा के नाम पर बनाया गया है, लेकिन वास्तव में यह एक गैर-न्यायिक और कार्यकारी प्रक्रिया के जरिए वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। सिब्बल ने कहा कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक समुदायों को अपनी संपत्तियों और मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता देता है।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को पिछले साल 8 अगस्त को लोकसभा में 288-232 के मत से पारित किया गया था। यह अधिनियम 1995 के वक्फ अधिनियम में संशोधन करता है और इसका नाम बदलकर यूनाइटेड वक्फ मैनेजमेंट, एम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट एक्ट कर दिया गया है। अधिनियम का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और समावेशिता लाना है, जिसमें वक्फ बोर्ड में महिलाओं की भागीदारी और स्कॉलरशिप जैसी कल्याणकारी योजनाएं शामिल हैं। हालांकि, विपक्षी दलों, जैसे कांग्रेस और AIMIM, ने इसे अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाने वाला कदम बताया है।
सुप्रीम कोर्ट में इससे पहले 16 और 17 अप्रैल को हुई सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस पी.वी. संजय कुमार और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया था। केंद्र ने 21 अप्रैल को कोर्ट को आश्वासन दिया था कि जब तक अगली सुनवाई नहीं हो जाती, न तो वक्फ बोर्ड या वक्फ काउंसिल में नए सदस्यों की नियुक्ति होगी और न ही किसी वक्फ संपत्ति को डिनोटिफाई किया जाएगा।
याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि इस अधिनियम में “वक्फ बाय यूज़र” की अवधारणा को हटा दिया गया है, जिसके तहत लंबे समय से धार्मिक या परोपकारी कार्यों के लिए इस्तेमाल होने वाली संपत्तियों को वक्फ माना जाता था, भले ही उनके पास औपचारिक दस्तावेज न हों। इसके अलावा, अधिनियम के सेक्शन 3C को असंवैधानिक बताते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि यह एक राजस्व अधिकारी, जैसे कलेक्टर, को बिना किसी समय सीमा या निष्पक्ष प्रक्रिया के वक्फ संपत्ति को सरकारी संपत्ति घोषित करने का अधिकार देता है।
वहीं, केंद्र सरकार और छह राज्यों—हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और असम—ने इस अधिनियम का समर्थन किया है। सरकार का कहना है कि यह संशोधन वक्फ प्रणाली में पारदर्शिता और बेहतर शासन सुनिश्चित करने के लिए लाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट में चल रही इस सुनवाई को लेकर देशभर की नज़रें टिकी हुई हैं, क्योंकि इसका फैसला न केवल वक्फ संपत्तियों के भविष्य को प्रभावित करेगा, बल्कि धार्मिक स्वायत्तता और संवैधानिक सिद्धांतों के बीच संतुलन को भी परिभाषित करेगा। अगली सुनवाई में कोर्ट इस मामले में अंतरिम राहत पर विचार कर सकता है।