सुरसंड विधानसभा सीट (Surasand Vidhansabha) बिहार की सबसे पुरानी और ऐतिहासिक सीटों में से एक है। सीतामढ़ी जिले की इस सीट का राजनीतिक इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है। 1952 से लेकर 1990 तक कांग्रेस का यहां एकछत्र राज रहा और लगातार सात बार उसके उम्मीदवार विधायक बने। लेकिन 1995 के बाद समीकरण बदले और कांग्रेस का किला ढह गया। उसके बाद से इस सीट पर कभी राजद तो कभी जेडीयू जीत हासिल करती रही है। भाजपा आज तक इस सीट पर जीत का स्वाद नहीं चख पाई है। वर्तमान में यहां जेडीयू के दिलीप राय विधायक हैं, जिन्होंने 2020 के चुनाव में राजद के सैय्यद अबू दोजाना को पराजित किया।
चुनावी इतिहास
सुरसंड का चुनावी इतिहास बताता है कि यहां की सियासत लगातार करवट लेती रही है। 1995 में कांग्रेस का गढ़ तब टूटा जब जनता दल के नगेंद्र प्रसाद यादव ने कांग्रेस प्रत्याशी रविंद्र प्रसाद साही को हरा दिया। इसके बाद कांग्रेस धीरे-धीरे हाशिए पर चली गई। 2010 के चुनाव में जेडीयू के शाहिद अली खान ने जीत दर्ज की और राजद उम्मीदवार जयनंदन प्रसाद यादव को मात दी। लेकिन 2015 में राजद ने जोरदार वापसी की और सैय्यद अबू दोजाना ने निर्दलीय अमित कुमार को 23 हजार से ज्यादा वोटों से हराकर जीत हासिल की।
क्या बथनाहा विधानसभा सीट पर लगातार चौथी बार खिलेगा कमल? 2010 से है भाजपा के कब्जे में
हालांकि, 2020 में तस्वीर फिर बदल गई। इस बार जेडीयू के दिलीप राय ने मैदान मारा और 67,193 (38.63%) वोट पाकर जीत हासिल की। राजद के सैय्यद अबू दोजाना को 58,317 (33.53%) वोट मिले और वे दूसरे स्थान पर रहे। लोजपा के अमित चौधरी तीसरे नंबर पर रहे। 2020 के चुनाव में यहां कुल 57.65% मतदान हुआ।
2015 में हुए चुनाव में राजद उम्मीदवार अबू दोजाना ने 52,857 (34%) वोट लेकर जीत दर्ज की थी, जबकि निर्दलीय अमित कुमार को 29,623 वोट मिले थे। वहीं, 2010 के चुनाव में जेडीयू के शाहिद अली खान ने 38,542 वोट हासिल किए थे और मात्र एक हजार से अधिक वोटों के अंतर से आरजेडी के जयनंदन प्रसाद यादव को परास्त किया था।
जातीय समीकरण
सुरसंड विधानसभा की राजनीति पर जातीय समीकरण का गहरा असर है। यहां यादव और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 22.4% है, जबकि यादव वोटरों का भी दबदबा है। इसके अलावा ब्राह्मण और राजपूत मतदाता भी चुनावी परिणामों को प्रभावित करते हैं। अनुसूचित जाति मतदाता करीब 9.66% और अनुसूचित जनजाति मात्र 0.11% हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, इस क्षेत्र में ग्रामीण मतदाताओं की संख्या 96.72% है जबकि शहरी मतदाता केवल 3.29% हैं।
इतिहास गवाह है कि सुरसंड की सियासत हर बार बदलते राजनीतिक समीकरणों की कहानी कहती है। कभी कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली यह सीट अब जेडीयू और राजद के बीच सीधी टक्कर का मैदान बन गई है। आने वाले विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ा सवाल यही रहेगा कि क्या दिलीप राय अपनी जीत दोहरा पाएंगे या फिर राजद के अबू दोजाना इस सीट पर वापसी करेंगे।






















