नई दिल्ली : भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने आज नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित एक समारोह में संस्कृत विद्वान और तुलसी पीठ के संस्थापक जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी को 58वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया। इस प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार को प्राप्त करने वाले स्वामी रामभद्राचार्य ने अपनी साहित्यिक और सामाजिक सेवाओं से समाज को समृद्ध किया है।
राष्ट्रपति मुर्मू ने इस अवसर पर स्वामी रामभद्राचार्य की प्रशंसा करते हुए कहा, “स्वामी जी ने शारीरिक चुनौतियों के बावजूद अपनी दिव्य दृष्टि और साहित्यिक योगदान से एक प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत किया है। उनके साहित्य और सामाजिक कार्यों ने समाज को नई दिशा दी है।”
स्वामी रामभद्राचार्य 22 भाषाओं में निपुण हैं और उन्होंने 240 से अधिक पुस्तकें और 50 शोध पत्र लिखे हैं, जिनमें चार महाकाव्य, तुलसीदास के रामचरितमानस और हनुमान चालीसा पर हिंदी टीकाएं, और अष्टाध्यायी पर संस्कृत में छंदबद्ध टीका शामिल हैं।
ज्ञानपीठ पुरस्कार, भारत का सबसे पुराना और सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान है, जो भारतीय भाषाओं में उत्कृष्ट साहित्यिक योगदान के लिए दिया जाता है। यह पुरस्कार 1961 में शुरू किया गया था और इसमें 21 लाख रुपये की पुरस्कार राशि के साथ-साथ वाग्देवी की प्रतिमा प्रदान की जाती है।
स्वामी रामभद्राचार्य को इससे पहले 2015 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। उनके कार्यों में संस्कृत, हिंदी, अवधी, और मैथिली जैसी भाषाओं में रचनाएं शामिल हैं, जो भारत की भाषाई विविधता को दर्शाती हैं। इस समारोह में कई गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया और स्वामी जी के योगदान की सराहना की।