नई दिल्ली : पटियाला हाउस कोर्ट ने 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के प्रमुख आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा की ओर से दायर याचिका पर सख्त रुख अपनाया है। राणा ने अपनी याचिका में परिवार से बात करने की अनुमति मांगी थी, जिसके जवाब में विशेष न्यायाधीश चंदर जीत सिंह ने तिहाड़ जेल प्रशासन और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को नोटिस जारी कर 4 जून तक स्थिति रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई 4 जून को होगी।
पाकिस्तानी मूल के कनाडाई नागरिक तहव्वुर राणा इस समय तिहाड़ जेल में न्यायिक हिरासत में हैं। राणा को 26/11 मुंबई हमलों के मुख्य साजिशकर्ता डेविड कोलमैन हेडली का करीबी सहयोगी माना जाता है। हेडली, जिसे दाऊद गिलानी के नाम से भी जाना जाता है, ने लश्कर-ए-तैयबा के इशारे पर मुंबई हमलों की योजना में अहम भूमिका निभाई थी। राणा को अप्रैल 2025 में अमेरिका से भारत प्रत्यर्पित किया गया था, जब अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने उनकी प्रत्यर्पण के खिलाफ याचिका को खारिज कर दिया।
राणा पर आरोप है कि उन्होंने लश्कर-ए-तैयबा, हरकत-उल-जिहादी इस्लामी और अन्य पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों के साथ मिलकर 26/11 हमलों की साजिश रची। 26 नवंबर 2008 को 10 पाकिस्तानी आतंकवादियों ने समुद्री रास्ते से मुंबई में प्रवेश किया था और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, ताजमहल पैलेस होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल और नरीमन हाउस (यहूदी केंद्र) सहित कई स्थानों पर हमले किए थे। इन हमलों में 166 लोगों की जान गई थी, जिनमें 6 अमेरिकी नागरिक भी शामिल थे।
प्रधान जांच आयोग (HLEC) की रिपोर्ट, जो 2008 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा गठित की गई थी, ने मुंबई हमलों को “युद्ध जैसी स्थिति” करार देते हुए कहा था कि यह हमला मुंबई पुलिस की क्षमता से बाहर था। आयोग ने सुरक्षा एजेंसियों की खामियों को उजागर करते हुए भविष्य में ऐसे हमलों को रोकने के लिए कई सुझाव दिए थे।
राणा के प्रत्यर्पण को भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत माना जा रहा है। अमेरिका ने भी इस कदम का स्वागत करते हुए कहा था कि यह 166 लोगों के लिए “लंबे समय से मांगे गए न्याय” की दिशा में एक कदम है। राणा को भारत लाने के लिए एक बहु-एजेंसी टीम ने अमेरिका में काम किया था, और अब NIA इस मामले की जांच को तेजी से आगे बढ़ा रही है।
तहव्वुर राणा के मामले में कोर्ट का यह ताजा कदम एक बार फिर 26/11 हमलों के पीड़ितों के लिए न्याय की उम्मीद जगा रहा है। इस मामले पर सभी की नजरें टिकी हैं, क्योंकि यह न केवल भारत बल्कि वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।