Tarari Vidhan Sabha 2025: बिहार के भोजपुर जिले की तरारी विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 196) एक बार फिर 2025 के विधानसभा चुनाव में सियासी सरगर्मी का केंद्र बन गई है। आरा लोकसभा के अंतर्गत आने वाली यह सीट दक्षिण बिहार की उन कुछ चुनिंदा सीटों में से है, जहां जातीय समीकरण और विचारधारा, दोनों बराबर असर डालते हैं। 1951 में जब इसे तरारी-पीरो के रूप में स्थापित किया गया था, तब शायद किसी ने नहीं सोचा होगा कि आने वाले दशकों में यह सीट बिहार की वाम राजनीति और एनडीए के बीच वैचारिक जंग का मैदान बनेगी।
चुनावी इतिहास
2008 के परिसीमन के बाद जब इसे पुनः तरारी नाम से बहाल किया गया, तब से यहां की सियासत ने कई करवटें ली हैं। 2010 के पहले विधानसभा चुनाव में जेडीयू के नरेंद्र कुमार पांडे ने राजद के आबिद रिजवी को मात देकर एनडीए की मजबूत शुरुआत की थी। लेकिन 2015 में तस्वीर पूरी तरह बदल गई, जब सीपीआई(एमएल)(लिबरेशन) के सुदामा प्रसाद ने बेहद कांटे की टक्कर में लोजपा उम्मीदवार गीता पांडे को मात्र 272 वोटों से हराकर इस सीट पर वाम राजनीति की वापसी करा दी।
Agiaon Vidhan Sabha 2025: जातीय समीकरण और माले की पकड़ से बढ़ी राजनीतिक सरगर्मी
इसके बाद 2020 में सुदामा प्रसाद ने राजद-नेतृत्व वाले महागठबंधन की ओर से चुनाव लड़कर लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की। उन्होंने इस बार 11,015 मतों से जीत हासिल की और भाजपा उम्मीदवार को बेहद पीछे छोड़ दिया। यह दौर तरारी में वाम दलों की वैचारिक पकड़ का प्रतीक बन गया। लेकिन जब 2024 में सुदामा प्रसाद आरा से सांसद चुने गए, तो सीट खाली हुई और उपचुनाव में भाजपा ने युवा चेहरा विशाल प्रशांत को मैदान में उतारा। भाजपा का यह दांव काम कर गया — विशाल प्रशांत ने सीपीआई(एमएल)(लिबरेशन) के राजू यादव को 10,612 वोटों से हराकर सीट पर कमल खिलाया।
यह जीत सिर्फ चुनावी आंकड़ों की नहीं, बल्कि तरारी की सियासी हवा बदलने का संकेत थी। क्योंकि लोकसभा चुनाव में यही इलाका वाम मोर्चे के पक्ष में था, जहां सीपीआई(एमएल) भाजपा से 5,773 वोट आगे रही थी। उपचुनाव में भाजपा की जीत ने यह साबित किया कि यहां जातीय समीकरणों के साथ-साथ संगठन की पैठ और उम्मीदवार की छवि भी निर्णायक भूमिका निभाती है।
जातीय समीकरण
अगर जातीय समीकरण पर नजर डालें तो तरारी विधानसभा क्षेत्र में भूमिहार समुदाय का वोट बैंक निर्णायक है, जिसकी संख्या करीब 65,000 बताई जाती है। ब्राह्मणों की आबादी करीब 30,000, राजपूत 20,000, यादव 30,000, मुस्लिम 20,000, बनिया 25,000 और कुशवाहा 15,000 हैं। वहीं पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों की संख्या लगभग 45 से 50 हजार के बीच है। इस सामाजिक समीकरण के कारण यहां की राजनीति में हर दल को एक सटीक संतुलन साधना पड़ता है।
2025 के विधानसभा चुनाव में तरारी का रण और भी दिलचस्प होने वाला है। एक तरफ भाजपा की युवा जोश से भरी टीम विशाल प्रशांत के नेतृत्व में मजबूत दावेदारी पेश कर रही है, तो दूसरी ओर वामदल अपने जनाधार और विचारधारा की मजबूती के सहारे मैदान में उतरने की तैयारी में है। भूमिहार मतदाताओं की एकजुटता, पिछड़ों का झुकाव और मुस्लिम-यादव समीकरण – ये तीनों कारक इस बार भी चुनावी परिणाम की दिशा तय करेंगे।






















