केंद्र सरकार द्वारा जाति आधारित जनगणना को राष्ट्रीय जनगणना का हिस्सा बनाए जाने की घोषणा के बाद देश की राजनीति में एक बार फिर सामाजिक न्याय की बहस तेज हो गई है। इस फैसले पर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे “सामाजिक न्याय आंदोलन की ऐतिहासिक जीत” बताया।
तेजस्वी ने इसे सीधे तौर पर लालू यादव और समाजवादी विचारधारा की वैचारिक विजय करार दिया। उन्होंने कहा कि “यह हमारी तीन दशक पुरानी मांग थी, जिसे सत्ता में रहने वालों ने पहले खारिज कर दिया था। लेकिन अब हालात ऐसे बन गए हैं कि केंद्र को हमारे ही एजेंडे पर काम करना पड़ रहा है।”
तेजस्वी यादव ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह फैसला केवल आंकड़ों का मुद्दा नहीं है, बल्कि राजनीतिक दबाव और जनआंदोलन का परिणाम है। उन्होंने याद दिलाया कि कुछ साल पहले जब बिहार सरकार ने राज्य स्तर पर जातिगत सर्वे कराया था, तब केंद्र सरकार ने इस पर सहमति नहीं दी थी।
तेजस्वी ने कहा कि “हम प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक गए, लेकिन हमारी मांग को अनसुना किया गया। अब जब हमारे कदमों की आहट दिल्ली तक पहुंच गई है, तो उन्हें भी झुकना पड़ा” ।
अब आरक्षण की बारी: ‘पिछड़ों के लिए भी तय हों सीटें’
तेजस्वी ने यह भी साफ किया कि उनकी पार्टी अब केवल जातिगत गिनती तक सीमित नहीं रहेगी। उन्होंने कहा कि “जैसे दलित और आदिवासी भाई-बहनों के लिए आरक्षित सीटें तय हैं, वैसे ही पिछड़ों और अति पिछड़ों को भी उनका हक मिलना चाहिए।”