बिहार की राजनीति में उबाल है। चुनावी बयार फिर से तेज़ हो गई है और इसी बीच महागठबंधन की हालिया बैठक ने सियासी ज़मीन को गर्म कर दिया है।
पटना के RJD कार्यालय में हुई महागठबंधन की अहम बैठक ने एक बात तो साफ कर दी है—2025 के विधानसभा चुनाव की कमान अब पूरी तरह से तेजस्वी यादव के हाथों में सौंप दी गई है। लेकिन क्या यह सब इतना सीधा-सपाट है? या फिर पर्दे के पीछे चल रही राजनीति कहीं और इशारा कर रही है?
तेजस्वी यादव: सिर्फ चेयरमैन नहीं, पूरे खेल के कप्तान
तेजस्वी यादव को कोऑर्डिनेशन कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है। यह सिर्फ एक पद नहीं, बल्कि पूरे महागठबंधन की चुनावी रणनीति, सीट बंटवारे और न्यूनतम साझा कार्यक्रम (कॉमन मिनिमम प्रोग्राम) के निर्णय की सुप्रीम बॉडी को लीड करने का जिम्मा है। कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने साफ कहा—“जो भी फ़ैसले होंगे, तेजस्वी की कमेटी ही लेगी।”
यानी तेजस्वी अब नेता प्रतिपक्ष भर नहीं हैं—वो अब पूरे महागठबंधन के अनौपचारिक सेनापति बन गए हैं।
कांग्रेस का स्टैंड: अब ‘कड़क’ नहीं, ‘कोऑर्डिनेटेड’ है
काफी अटकलों के बाद अब यह साफ हो गया है कि कांग्रेस बिहार में अपने लिए कोई अलग राह नहीं तलाश रही, बल्कि महागठबंधन के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहती है। अलका लांबा, कांग्रेस की महिला अध्यक्ष, से लेकर पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता तेजस्वी के साथ एक मंच पर दिखे।
लेकिन कांग्रेस के भीतर यह भी स्पष्ट है कि इस बार सीटों के बंटवारे में बड़े भाई की भूमिका में RJD है—और कांग्रेस को कुछ ‘सेक्रिफाइस’ करना ही होगा।
महिला वोट बैंक की होड़: माई-बहन योजना बनाम महिला संवाद
इस चुनाव में ‘आधी आबादी’ को लुभाने की जंग जबरदस्त होगी। तेजस्वी यादव ने अपने झारखंड समकक्ष की तर्ज पर ₹2500 प्रतिमाह की माई-बहन योजना की घोषणा कर साफ कर दिया है कि महिलाओं के वोट के लिए अब शब्द नहीं, योजनाएं बोलेंगी। उधर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी ‘महिला संवाद’ कार्यक्रम के ज़रिए उसी वर्ग को साधने की कोशिश में जुटे हैं। सवाल ये है—किसका असर ज़्यादा होगा?
कुर्बानी और कुशलता: क्या तेजस्वी सभी को समेट पाएंगे?
महागठबंधन में अब सिर्फ RJD, कांग्रेस या वाम दल ही नहीं हैं—मुकेश सहनी के बाद पशुपति पारस की RLJP की भी संभावित एंट्री की चर्चाएं हैं। मतलब, कुनबा बड़ा हो रहा है, लेकिन सीटें तो वही 243 हैं।
तेजस्वी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है—किसे कितना दिया जाए, कौन कितने में मान जाए? क्योंकि कोई भी पार्टी अगर बिदक गई, तो गठबंधन की ताक़त, कमजोरी में बदल सकती है।
मुख्यमंत्री चेहरा तय नहीं, पर संकेत साफ हैं
हालांकि तेजस्वी को ‘सीएम फेस’ घोषित नहीं किया गया है, लेकिन संकेत पूरे हैं। जैसे यूपीए में सोनिया गांधी चेयरपर्सन बनीं और डॉ. मनमोहन सिंह पीएम बने—यहां भी वैसा ही सियासी स्क्रिप्ट तैयार हो रहा है। लेकिन तेजस्वी ने अब तक खुद को सिर्फ “इंतज़ार कीजिए, मज़ा लीजिए” तक सीमित रखा है।