रेप केस को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के चौंकाने वाले फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि किसी लड़की के स्तनों को पकड़ना या उसके पायजामे की डोरी तोड़ना बलात्कार के प्रयास के आरोप के लिए पर्याप्त नहीं है। इस विवादास्पद फैसले पर जबरदस्त आक्रोश फैल गया, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में हाईकोर्ट के फैसले पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि “हमें यह देखकर दुख हो रहा है कि इस फैसले में संवेदनशीलता की भारी कमी है। यह कोई जल्दबाजी में लिया गया फैसला नहीं था, बल्कि इसे चार महीने तक सुरक्षित रखने के बाद सुनाया गया। कानून में इसकी कोई जगह नहीं है और यह न्यायिक संवेदना के खिलाफ है।”
शीर्ष न्यायालय ने विशेष रूप से फैसले के पैरा 21, 24 और 26 का जिक्र करते हुए कहा कि यह टिप्पणियां न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हैं और मानवीय संवेदनाओं से कोसों दूर हैं। इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को स्थगित कर दिया।
हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ ‘वी द वुमन ऑफ इंडिया’ नामक संगठन ने आपत्ति जताई थी। संगठन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए इस मामले पर सुनवाई की।
सोमवार को जस्टिस बी. आर. गवाई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी। साथ ही, केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से इस मामले में जवाब मांगा है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश ने खड़ा किया विवाद
इस पूरे मामले की जड़ में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा का फैसला है। उन्होंने दो आरोपियों की पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि अभियोजन पक्ष द्वारा लगाए गए आरोप बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में नहीं आते।
हाईकोर्ट की एकल पीठ ने तर्क दिया कि स्तन पकड़ना, पायजामे का नाड़ा तोड़ना और पीड़िता को पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार का प्रयास) और पोक्सो अधिनियम की धारा 18 के तहत मुकदमे के लिए पर्याप्त आधार नहीं बनते।