बिहार के भूजल की गुणवत्ता को लेकर केंद्रीय भूजल आयोग की ताजा रिपोर्ट 2024 ने चिंताजनक स्थिति उजागर की है। राज्य के 38 में से 33 जिलों में आयरन की मात्रा मानक से अधिक पाई गई है, जो पहले सिर्फ 12 जिलों तक सीमित थी। इसके अलावा, आर्सेनिक और फ्लोराइड प्रभावित जिलों की संख्या में भी इजाफा हुआ है।
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यह रिपोर्ट बिहार में पेयजल संकट को गहराने वाली है। जिन इलाकों में भूजल में आयरन, आर्सेनिक, फ्लोराइड और यहां तक कि यूरेनियम तक पाया गया है, वहां स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग (PHED) को अब इन इलाकों में सुरक्षित पेयजल की व्यवस्था करनी होगी।
आयरन युक्त पानी से बीमारियों का खतरा
बिहार उन छह राज्यों में शामिल है जहां आयरन की अधिकता सबसे ज्यादा पाई गई है। इनमें छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल भी शामिल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार के 33 जिलों में भूजल में 1 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक आयरन पाया गया है।
आयरन की अधिकता के कारण गैस्ट्रिक समस्याएं, त्वचा संबंधी बीमारियां, बाल झड़ना और लीवर डैमेज जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसके अलावा, कई क्षेत्रों में पानी पीला या लाल रंग का हो सकता है, जिससे पीने योग्य पानी की समस्या और बढ़ जाती है।
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इन जिलों का पानी हो सकता है खतरनाक
रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के ये 33 जिले आयरन से प्रभावित हैं:
अररिया, बांका, बेगूसराय, भभुआ, भागलपुर, भोजपुर, बक्सर, पूर्वी चंपारण, गया, गोपालगंज, जमुई, कटिहार, खगड़िया, किशनगंज, लखीसराय, मधेपुरा, मधुबनी, मुंगेर, मुजफ्फरपुर, नालंदा, नवादा, पटना, रोहतास, सहरसा, समस्तीपुर, सारण, शेखपुरा, शिवहर, सीतामढ़ी, सीवान, सुपौल, वैशाली और पश्चिमी चंपारण।
आर्सेनिक और फ्लोराइड का भी कहर
- सीवान, वैशाली, बक्सर, जहानाबाद और लखीसराय के भूजल में खारापन अधिक पाया गया है।
- बांका, गया, जमुई, नालंदा, नवादा और शेखपुरा में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा दर्ज की गई है, जो हड्डियों और दांतों की बीमारियों का कारण बन सकता है।
- कई जिलों में यूरेनियम की मौजूदगी भी दर्ज की गई है। सीवान जिले में भूजल में 30 पीपीबी से अधिक यूरेनियम पाया गया है, जो कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है।