मुर्शिदाबाद : वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में भड़की हिंसा के बाद हालात अब धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं। लेकिन इस बीच तृणमूल कांग्रेस (TMC) के भीतर से आत्ममंथन की आवाजें उठने लगी हैं। फरक्का से पार्टी विधायक मनिरुल इस्लाम और भारतपुर से विधायक हुमायून कबीर ने सार्वजनिक तौर पर पार्टी के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए हैं। उनका कहना है कि TMC के कई सांसद और विधायक अब जमीन से कट चुके हैं और जनता की नाराजगी की उन्हें भनक तक नहीं थी।
विधायक मनिरुल इस्लाम ने हिंसा के बाद अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता जताई। उन्होंने बताया कि 11 अप्रैल को उनके धूलियन स्थित पुराने घर पर प्रदर्शनकारियों ने हमला किया, CCTV कैमरे तोड़ दिए और गेट क्षतिग्रस्त करने की कोशिश की गई। सुरक्षा एजेंसियों की सलाह पर वह अपने परिवार को लेकर रतनपुर में एक सुरक्षित आवास पर चले गए। “मैंने जानबूझकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी ताकि माहौल और न बिगड़े,” उन्होंने कहा। “बाद में सांसद खलीलुर रहमान के साथ जब वापस लौटे, तो लोगों ने विरोध किया।”
“लोग गुमराह हुए, हमें बात करनी होगी”
मनिरुल ने माना कि जनता में असंतोष है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि बहुत से लोग वक्फ अधिनियम को सही तरीके से समझ नहीं पाए हैं। “हम युवाओं से बात कर रहे हैं, समझा रहे हैं कि यह अधिनियम क्या है। उन्हें यह भी बता रहे हैं कि सिर्फ मुस्लिम सांसदों ने नहीं, बल्कि कई हिंदू सांसदों ने भी इस बिल का विरोध किया है,” उन्होंने कहा।
सांसद का आरोप “यह साजिश थी”
टीएमसी सांसद खलीलुर रहमान ने हिंसा को “पूर्व नियोजित साजिश” करार दिया। उन्होंने बताया कि उनके कार्यालय पर पथराव किया गया और उन्हें गालियां दी गईं। अब उनकी प्राथमिकता इलाके में शांति बहाल करना है।
शांति समितियों का गठन, मृतकों के परिजनों से मिलकर जताया दुख
समसेरगंज के विधायक अमीरुल इस्लाम भी लगातार सक्रिय हैं। उन्होंने जाफराबाद में उन परिवारों से मुलाकात की जिनके सदस्य हिंसा की भेंट चढ़ गए थे। 11 अप्रैल को हुई हिंसा में चंदन दास और उनके पिता हरगोबिंद दास की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी, जबकि एजाज अहमद की मौत पुलिस फायरिंग में हुई थी। अमीरुल ने बताया कि क्षेत्र में शांति समितियां बनाई जा रही हैं ताकि लोगों का भरोसा फिर से बहाल हो सके।
पार्टी के भीतर से आई तीखी आलोचना
इस पूरी स्थिति पर सबसे तीखा बयान भारतपुर से TMC विधायक हुमायून कबीर का रहा। उन्होंने अपनी ही पार्टी के नेताओं पर जनता से कट जाने का आरोप लगाते हुए कहा, “जनप्रतिनिधियों को अंदाजा ही नहीं था कि यह सब क्यों हो रहा है। वे सिर्फ दीदी के नाम पर चुनाव जीतते हैं, मगर जमीन पर उनकी पकड़ अब नहीं रही।”