बिहार की लोक गायिका शारदा सिन्हा का आज जन्मदिन है। वे 72 साल की हो गईं हैं। शारदा सिन्हा किसी पहचान की मोहताज नहीं है। हर साल छठ घाटों पर शारदा सिन्हा की आवाज गूंजती रहती है। बिहार की कोकिला कहे जाने वाली गायिका शारदा सिन्हा को पद्मश्री, पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया है। हालांकि, इस साल वे अपना जन्मदिन नहीं मनाएंगी, उसके पीछे का कारण उनके पति की मौत है।
बता दें कि शारदा सिन्हा के पति डॉ. ब्रिज भूषण सिन्हा का 22 सितंबर को निधन हो गया था। उनकी उम्र 80 साल की थी। घर में ही गिर जाने की वजह से उनके सिर में चोट आई थी। चोट से ब्रेन हेमरेज कर गया था। इसके बाद उन्हें पटना के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां वो वेंटिलेटर पर थे। 22 सितंबर को उनका निधन हो गया। डॉ. ब्रिज भूषण सिन्हा शिक्षा विभाग में रिजनल डिप्टी डायरेक्टर के पद से रिटायर हुए थे।
शारदा सिन्हा को बचपन से ही संगीत के प्रति काफी रुचि रही। संगीत के प्रति उनकी लगन देखकर पिता ने भारतीय नृत्य कला केंद्र में प्रवेश दिला दिया था। संगीत सीखने के साथ उन्होंने स्नातक भी कर ली। इसके बाद राजनीतिशास्त्र के प्राध्यापक डॉ. बृजकिशोर सिन्हा के साथ उनकी शादी हो गई। उन्होंने कई इंटरव्यू में बताया कि उनकी सासू मां उनकी गायिकी के खिलाफ थीं। वह नहीं चाहती थीं कि उनकी बहु कहीं पर गाने जाएं। गांव की ठाकुरबाड़ी में भी वह उन्हें नहीं गाने देती थीं। हालांकि कुछ वक्त बाद उनकी सास मान गई थीं और साल 1971 में उनके संगीतमय जीवन में बड़ा बदलाव आया।
उन्होंने बताया है कि 1971 में एचएमवी ने प्रतिभा खोज प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। पति के साथ आडिशन देने लखनऊ गईं, लेकिन वहां भी बाधा खड़ी थी। ट्रेन पहुंचने में देर तो हुई ही, आडिशन वाले जगह पर धक्का-मुक्की भी काफी थी। आडिशन दिया लेकिन एचएमवी के रिकार्डिंग मैनेजर जहीर अहमद ने किसी को सेलेक्ट नहीं किया। फिर पति ने पूरे विश्वास से जहीर अहमद से दोबारा टेस्ट लेने का आग्रह किया। उन्होंने गाया, यौ दुलरुआ भैया… यह संयोग था कि इसी क्रम में एचएमवी के एक बड़े अधिकारी वहां पहुंचे। आवाज सुनते ही उन्होंने कहा कि, इनके गाने रिकार्ड करिए। गाने रिकार्ड हुए तो फिर पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा। उनके गाने गांव-गांव, घर-घर में गूंजने लगे।