उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी अपने सहयोगियों के साथ आक्रामक है। लेकिन उसकी नजर विपक्ष में उन्हें टक्कर दे रहे अखिलेश यादव के सहयोगी पर भी है। अखिलेश के इस सहयोगी की भाजपा में वैल्यु इतनी अधिक है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उन्हें अपने साथ मिलाने को बेकरार हैं। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि जिस पार्टी के समर्थन के लिए भाजपा लालायित है, उसे पिछले दो चुनावों में एक फीसदी वोट भी नहीं मिले हैं।
अमित शाह के बुलावे पर नहीं आए जयंत
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पश्चिमी उत्तरप्रदेश भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है। यहां भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने के लिए हर बड़ा नेता लगा हुआ है। पिछले दिनों अमित शाह भी पहुंचे। जाटों के साथ बैठक की। राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी को भी इस बैठक में बुलाया। लेकिन जयंत नहीं आए। जयंत इस चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ हैं। जयंत के नहीं आने पर भी अमित शाह उनसे नाराज नहीं हैं। बल्कि यह कह रहे हैं कि चुनाव के नतीजों तक ही अखिलेश और जयंत का साथ है।
रालोद को 2017 में 0.55 प्रतिशत वोट मिले थे
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भाजपा की जयंत और उनकी पार्टी को लेकर बेकरारी बड़ी है लेकिन आंकड़ों में हकीकत कुछ और है। जयंत चौधरी उस राष्ट्रीय लोक दल के सर्वेसर्वा हैं, जो पिछले दो चुनावों में एक प्रतिशत वोट भी नहीं हासिल कर सकी। तब राष्ट्रीय लोक दल को सिर्फ 0.55 प्रतिशत वोट मिले। 2017 के विधानसभा चुनाव में वोट शेयर के मामले में राष्ट्रीय लोक दल छठे नंबर पर रही। राष्ट्रीय लोक दल से अधिक वोट शेयर निर्दलीय उम्मीदवारों का रहा। 2017 में पार्टी सिर्फ छपरौली विधानसभा सीट जीत सकी थी। जबकि पार्टी ने कुल 277 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इनमें से 266 सीटें ऐसी रही, जहां राष्ट्रीय लोक दल की जमानत जब्त हो गई।
2014 में आठ में से छह सीटों पर जमानत जब्त
वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो, राष्ट्रीय लोक दल का बुरा दौर वहीं से शुरू हुआ। तब पार्टी आठ सीटों पर चुनाव लड़ी और सभी सीटें हार गई। जनता दल से 1996 में अलग होकर पार्टी बनाने वाले राष्ट्रीय लोक दल के संस्थापक अजित चौधरी और उनके बेटे जयंत चौधरी भी चुनाव हार गए। यही नहीं, आठ में से छह उम्मीदवारों की जमानत भी नहीं बच सकी।
2019 में भी नहीं मिली कोई सीट
राष्ट्रीय लोक दल का बुरा दौर 2019 के लोकसभा चुनाव में भी जारी रहा। भाजपा से टकराने को अखिलेश यादव ने बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के साथ महागठबंधन बनाया। तीनों पार्टियों को मिलाकर 39.23 प्रतिशत वोट मिले। इसमें बसपा को सबसे अधिक 19.43 प्रतिशत वोट मिले। जबकि सपा का वोट शेयर 18.11 प्रतिशत रहा। वहीं राष्ट्रीय लोकदल को सिर्फ 1.69 प्रतिशत वोट मिले। सीट 2019 के लोकसभा चुनाव में भी नहीं मिली।