बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है और एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के भीतर सीट बंटवारे को लेकर राजनीतिक चर्चा तेज हो गई है। राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने सोमवार को मीडिया से बातचीत करते हुए स्पष्ट कहा कि सीट शेयरिंग में सम्मान और एकजुटता दोनों ज़रूरी हैं। उन्होंने कहा कि जनता के बीच यह संदेश जाना चाहिए कि एनडीए में शामिल दलों और उनके नेताओं को सम्मान मिला है। अगर घटक दल एक स्वर में नहीं बोलेंगे तो नुकसान तय है।
सीटों का गणित और जीत की रणनीति
कुशवाहा ने शाहाबाद और मगध क्षेत्रों को लेकर विशेष चिंता जताई। उन्होंने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में इन क्षेत्रों की सभी सीटें महागठबंधन के खाते में गई थीं, जिसका एक बड़ा कारण एनडीए में भीतरघात और समन्वय की कमी थी। उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि अगर एनडीए फिर से एकजुट नहीं हुआ, तो वही कहानी दोहराई जाएगी। एकजुटता ही जीत की कुंजी है।
कुशवाहा का यह बयान सीट बंटवारे की वर्तमान प्रक्रिया के भीतर छिपे तनाव को साफ तौर पर उजागर करता है। उनके अनुसार, सीटों की संख्या उतनी मायने नहीं रखती जितना कि गठबंधन में सम्मान और सहभागिता का भाव।
मुजफ्फरपुर की हालिया ‘संवैधानिक अधिकार परिसीमन सुधार महारैली’ के बाद कुशवाहा ने फिर जोर देकर कहा कि जनसंख्या के आधार पर सीटों का पुनर्निर्धारण (परिसीमन) जरूरी है। उनका दावा है कि उत्तर भारत में एक सांसद लगभग 31 लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि दक्षिण भारत में यह संख्या केवल 21 लाख है। इसका सीधा असर विकास योजनाओं की राशि, सांसद निधि और राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर पड़ता है।