वाशिंगटन: अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की एक ताजा रिपोर्ट ने भारत और चीन को ड्रग तस्करी को बढ़ावा देने वाले देशों की सूची में शामिल कर सनसनी मचा दी है। 25 मार्च 2025 को जारी इस वार्षिक खतरा आकलन रिपोर्ट में दोनों देशों को “स्टेट एक्टर्स” करार दिया गया है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ड्रग तस्करों को संसाधन और समर्थन मुहैया करा रहे हैं। यह रिपोर्ट डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के शुरू होने के दो महीने बाद आई है और इसे तुलसी गबार्ड ने जारी किया, जो हाल ही में ट्रंप प्रशासन की ओर से भारत की पहली आधिकारिक यात्रा पर आई थीं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन और भारत जैसे देश गैर-सरकारी समूहों को ड्रग तस्करी के लिए रसायन और उपकरण उपलब्ध कराने में मदद कर रहे हैं। पहली बार भारत को फेंटेनाइल जैसे ओपिओइड के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले रसायनों की आपूर्ति के मामले में चीन के बराबर खड़ा किया गया है। पिछले साल की रिपोर्ट में भारत को मेक्सिकन ड्रग समूहों के लिए “कुछ हद तक” स्रोत देश बताया गया था, जबकि चीन को मुख्य आपूर्तिकर्ता माना गया था। इस बार दोनों को एक साथ “स्टेट एक्टर” कहकर सरकारों की संलिप्तता का संकेत दिया गया है, चाहे वह जानबूझकर हो या अनजाने में।
ट्रंप ने फेंटेनाइल संकट को अपनी प्राथमिकता बनाया है, जिसका असर उनकी विदेश नीति पर भी दिख रहा है। इस साल फरवरी में उन्होंने चीन पर फेंटेनाइल तस्करी के खिलाफ नाकाफी कार्रवाई का हवाला देकर 10% अतिरिक्त टैरिफ लगाया, जबकि कनाडा और मेक्सिको पर सीमा सुरक्षा में ढिलाई के लिए 25% शुल्क थोपा। भारत, जो अमेरिका के साथ मुक्त व्यापार समझौते की कोशिश में है, इन शुल्कों से बचने की जुगत में लगा है, जो 2 अप्रैल से लागू होंगे।
रिपोर्ट में बताया गया कि चीन फेंटेनाइल के प्रीकर्सर रसायनों और ड्रग उपकरणों का सबसे बड़ा स्रोत है, उसके बाद भारत का नंबर आता है। मेक्सिको के रासायनिक दलाल गलत लेबलिंग और अनियमित रसायनों की खरीद से अंतरराष्ट्रीय नियमों को चकमा दे रहे हैं। फेंटेनाइल और अन्य सिंथेटिक ओपिओइड अमेरिका में सबसे खतरनाक ड्रग्स बने हुए हैं, जिनसे अक्टूबर 2024 तक 12 महीनों में 52,000 से ज्यादा मौतें हुईं।
अमेरिकी ड्रग प्रवर्तन प्रशासन (डीईए) की 2024 की रिपोर्ट में भारत को प्रीकर्सर रसायनों का उभरता स्रोत बताया गया था। इस साल जनवरी में दो भारतीय कंपनियों पर अमेरिका और मेक्सिको में फेंटेनाइल के लिए रसायन सप्लाई करने का आरोप लगा, और तीन महीने बाद एक अन्य भारतीय फर्म के अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया। इस रिपोर्ट ने भारत के लिए नए सवाल खड़े कर दिए हैं।