UP BJP: उत्तर प्रदेश भाजपा में संगठनात्मक अनुशासन और जातीय संतुलन को लेकर मचा घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। नए प्रदेश अध्यक्ष पंकज चौधरी के एक स्वागत समारोह में शामिल होने भर से पार्टी के भीतर चल रही वह बेचैनी खुलकर सामने आ गई है, जिसे अब तक दबाने की कोशिश की जा रही थी। सवाल सिर्फ एक कार्यक्रम का नहीं है, बल्कि उस संदेश का है जो इससे प्रदेश भर के विधायकों और कार्यकर्ताओं तक गया है।
कुंदरकी से ठाकुर विधायक रामवीर सिंह द्वारा लखनऊ के एक फाइव स्टार होटल में आयोजित स्वागत समारोह में पंकज चौधरी की मौजूदगी को लेकर भाजपा के अंदर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। हाल ही में ब्राह्मण विधायकों की बैठक के बाद आनन-फानन में जारी चेतावनी और जातिगत बैठकों पर सख्त रुख अपनाने वाले प्रदेश अध्यक्ष खुद एक ठाकुर विधायक के निजी आयोजन में कैसे पहुंचे, यही सवाल अब पार्टी की गलियों में गूंज रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश संगठन के कई नेताओं का कहना है कि यह कार्यक्रम न तो क्षेत्रीय इकाई की ओर से था और न ही इसकी औपचारिक जानकारी संगठन को दी गई थी।
रामवीर सिंह पहले भी चर्चा में रहे हैं। मुस्लिम बहुल सीट से रिकॉर्ड वोटों से उनकी जीत पर विपक्ष ने सवाल उठाए थे और सियासी विश्लेषक भी नतीजों से चौंके थे। इसके बाद मानसून सत्र के दौरान ठाकुर विधायकों की लखनऊ बैठक ने योगी आदित्यनाथ के समर्थन और शक्ति प्रदर्शन की नई बहस को जन्म दिया। अब उसी कड़ी में पंकज चौधरी का इस स्वागत समारोह में जाना, पार्टी के भीतर योगी बनाम अन्य की पुरानी चर्चा को फिर हवा दे रहा है।
भाजपा के कई ब्राह्मण विधायक दबी जुबान में यह पूछ रहे हैं कि यदि पार्टी जातिगत राजनीति के खिलाफ है तो फिर संदेश इतना विरोधाभासी क्यों है। एक पूर्वी उत्तर प्रदेश के विधायक का कहना है कि ब्राह्मणों को सरकार और संगठन में सिर्फ प्रतीकात्मक हिस्सेदारी मिली है, जबकि असली ताकत और प्रशासनिक पकड़ एक वर्ग विशेष के हाथ में सिमटी दिखती है। यह असंतोष सिर्फ बयानबाजी तक सीमित नहीं है, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव में इसके संकेत मिल चुके हैं और 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले यह पार्टी के लिए बड़ा खतरा बन सकता है।
आगरा में हाल ही में दिए गए बयान में पंकज चौधरी ने दोहराया कि जातिगत बैठकें बर्दाश्त नहीं की जाएंगी, लेकिन उनके कदम और बयान के बीच का फासला पार्टी के भीतर बेचैनी बढ़ा रहा है। संगठन के जानकार मानते हैं कि नए प्रदेश अध्यक्ष के सामने एक साथ कई मोर्चे खुले हैं। केशव मौर्य को अध्यक्ष न बनाए जाने से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समर्थक खेमा भले संतुष्ट दिखे, लेकिन इससे पार्टी के अंदर संतुलन साधना और मुश्किल हो गया है।
भाजपा के लिए चुनौती सिर्फ विपक्ष से नहीं, बल्कि अपनी ही पंक्तियों में बढ़ती खींचतान से है। जिस तरह से स्वागत समारोह जैसे आयोजन संगठनात्मक अनुशासन पर सवाल खड़े कर रहे हैं, उससे साफ है कि सब कुछ पटरी पर लाना पंकज चौधरी के लिए आसान नहीं होने वाला। यदि यह असंतोष समय रहते नहीं संभाला गया, तो आने वाले चुनावों में इसका असर और गहराता नजर आ सकता है।
















