Vibhutipur Vidhan Sabha 2025: बिहार की राजनीति में विभूतिपुर विधानसभा सीट (संख्या-138) हमेशा से चर्चा का केंद्र रही है। समस्तीपुर जिले में स्थित यह सीट न केवल राजनीतिक दृष्टि से अहम है, बल्कि जातीय समीकरणों के लिहाज से भी निर्णायक मानी जाती है। विभूतिपुर प्रखंड जिले का दूसरा सबसे बड़ा प्रखंड है, जिसमें 29 पंचायतें आती हैं। यहां का राजनीतिक इतिहास बताता है कि यह क्षेत्र लंबे समय तक वामदल का गढ़ रहा है और आज भी सीपीआईएम की पकड़ मजबूत मानी जाती है।
चुनावी इतिहास
पिछले चार दशकों का चुनावी इतिहास देखें तो माकपा के रामदेव वर्मा का नाम इस सीट से सबसे ज्यादा जुड़ा रहा है। 1980 से लेकर 2000 तक उन्होंने लगातार कांग्रेस और अन्य दलों के उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर दी और कई बार जीत हासिल की। हालांकि 1985 में कांग्रेस के चंद्रबली ठाकुर ने उन्हें हराकर यहां कांग्रेस को मजबूत उपस्थिति दिलाई थी। इसके बाद 2010 और 2015 में जदयू के राम बालक सिंह ने माकपा को शिकस्त दी और सत्ता पर कब्जा जमाया। लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में सीपीआईएम के अजय कुमार ने बाजी मारते हुए जदयू के राम बालक सिंह को 40,496 वोटों के बड़े अंतर से पराजित किया। इस जीत ने एक बार फिर से साबित किया कि विभूतिपुर में वामपंथ की जड़ें अब भी गहरी हैं।
जातीय समीकरण
विभूतिपुर सीट का चुनाव पूरी तरह जातीय समीकरणों पर टिका माना जाता है। यहां यादव, भूमिहार और राजपूत मतदाता भी बड़ी संख्या में हैं, लेकिन कुशवाहा वोटरों की भूमिका सबसे अहम है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कुशवाहा जाति के मतदाता संगठित रूप से वोट करते हैं और जिसे भी उनका समर्थन मिल जाए, उसकी जीत लगभग तय मानी जाती है। यही वजह है कि हर चुनाव में उम्मीदवारों की रणनीति इन्हीं वोटरों को साधने पर केंद्रित रहती है।
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2011 की जनगणना के अनुसार विभूतिपुर विधानसभा क्षेत्र की आबादी 3,98,181 है, जिसमें अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी 17.7 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की 0.04 फीसदी है। 2019 की मतदाता सूची के मुताबिक यहां कुल 2,57,381 मतदाता दर्ज हैं। 2015 में यहां 60.43% मतदान हुआ था, जो बताता है कि जनता इस सीट पर हमेशा से सक्रिय रूप से मतदान में हिस्सा लेती है।
विभूतिपुर विधानसभा न केवल वाम और जदयू के बीच टकराव का गवाह रहा है, बल्कि यह क्षेत्र इस बात का भी प्रतीक है कि जातीय समीकरण कैसे किसी भी उम्मीदवार की जीत-हार का फैसला कर सकते हैं। आने वाले चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सीपीआईएम यहां अपनी पकड़ बनाए रख पाती है या फिर जदयू एक बार फिर वापसी करने में सफल होगा।






















