बिहार की राजनीति में इस समय चुनावी तापमान बढ़ता ही जा रहा है। नए समीकरण बन रहे हैं, गठबंधन उलझ रहे हैं और सियासी गणित को समझने की होड़ लगी हुई है। ऐसे में एक बड़ा राजनीतिक धमाका हुआ है—पूर्व आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे ने ‘हिंद सेना’ नामक नई राजनीतिक पार्टी बना ली है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या महज छह महीने पहले पार्टी बनाकर कोई चुनावी सफलता हासिल की जा सकती है? और इसका सबसे बड़ा असर किस पर पड़ेगा—एनडीए या महागठबंधन?
शिवदीप लांडे का बिहार से ‘इश्क’ या सियासी चाल?
शिवदीप लांडे का नाम बिहार में किसी पहचान का मोहताज नहीं है। अपने कार्यकाल में वे बिहार की जनता, खासकर युवाओं के बीच लोकप्रिय रहे हैं। उन्होंने पुलिस की वर्दी उतारकर राजनीति का दामन थाम लिया है और 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया है कि वे खुद भी चुनाव लड़ेंगे। लेकिन यह कदम महज एक नया राजनीतिक प्रयोग है या फिर किसी बड़े गेम प्लान का हिस्सा?
किसका वोट काटेंगे शिवदीप लांडे?
बिहार की सियासत जातिगत समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती है, लेकिन युवा वोटर वह शक्ति है जो किसी भी चुनाव में पासा पलट सकती है। बिहार में 18 से 40 वर्ष के मतदाता कुल वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा हैं। तेजस्वी यादव की राजनीति हो, प्रशांत किशोर का जनसंपर्क अभियान या अब शिवदीप लांडे की ‘हिंद सेना’—सभी की नजरें युवा वोटरों पर टिकी हैं।
पिछले चुनाव में तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी और नौकरी के मुद्दे पर बड़ी पकड़ बनाई थी, जिससे महागठबंधन को फायदा मिला था। लेकिन अगर शिवदीप लांडे भी इन्हीं मुद्दों पर फोकस करेंगे तो साफ है कि इससे महागठबंधन का वोट बैंक प्रभावित हो सकता है। यानी सीधा फायदा एनडीए को होगा।
क्या शिवदीप लांडे बीजेपी के ‘B-Team’ हैं?
बिहार की राजनीति में जब भी कोई नया चेहरा उभरता है, उस पर विपक्ष की तरफ से शक की सुई घूमने लगती है। पहले प्रशांत किशोर पर यह आरोप लगा, और अब शिवदीप लांडे पर भी वही सवाल उठाए जा रहे हैं—क्या वे बीजेपी के इशारे पर मैदान में उतरे हैं?
क्या शिवदीप लांडे वाकई ‘किंगमेकर’ बन सकते हैं?
243 सीटों पर उम्मीदवार उतारना एक बात है, लेकिन बिहार की राजनीतिक सच्चाई यह कहती है कि नई पार्टियों को सत्ता तक पहुंचने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। क्या शिवदीप लांडे सिर्फ वोट काटने का काम करेंगे या वाकई किसी गठबंधन के लिए किंगमेकर बन सकते हैं?
अगर वे युवा और बेरोजगार वोटर्स को लुभाने में कामयाब होते हैं, तो यह तय है कि वे महागठबंधन को कमजोर करेंगे और एनडीए की स्थिति को मजबूत करेंगे। वहीं, अगर उनकी पार्टी का प्रदर्शन खराब रहता है, तो यह साफ हो जाएगा कि बिहार की जनता अब नए राजनीतिक प्रयोगों के मूड में नहीं है।
चुनाव के नजदीक आते ही शिवदीप लांडे की रणनीति, उनकी पार्टी का संगठन और उनका गठबंधन किसके साथ होगा—ये अहम सवाल बनेंगे। अभी के लिए इतना तय है कि उनकी एंट्री ने बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है, और आने वाले समय में ‘हिंद सेना’ की सियासी ताकत की असली परीक्षा होगी।