“मौजूदा संवैधानिक संकट कई तरह के सवालों को जन्म देती है, की आज के दौर में जब लोकतांत्रिक व्यवस्था को पूरी तरह से मान्यता प्राप्त है तो ऐसे में कौन सी अदृश्य परिस्तिथियां हैं, जो अफ्रीकी देशों के भविष्य और वर्तमान को अधिनायकवादी गिरफ्त में बार-बार धकेलती हैं.”
पिछले तीन वर्षों में पश्चिम अफ्रीकी देशों माली, गिनी और बुर्किना फासो में राजनीतिक तख्तापलट हुआ है. इन सभी देशों में सैन्य सरकारों की मौजूदगी अभी भी बनी हुई है. इन तख्तापलट की जड़े विभिन्न कारणों से जुडी हुई हैं, जिनमे क्षेत्रीय अस्थिरता, कमजोर निर्वाचित नेता और ख़राब शासन व्यवस्था अहम् है. कुछ पश्चिम अफ्रीकी राज्य इस बात का भी सबूत पेश करते हैं कि भविष्य में तख्तापलट हो इसकी सम्भावना कम है , और संभव है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित हो सके. पश्चिम अफ्रीकी देश हाल के कुछ वर्षों में हुए सैन्य विद्रोहों से त्रस्त हैं और इन देशों की जनता हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता के चलते अनेक समस्याओं का सामना करने के लिए बाध्य है. पिछले तीन वर्षों में, सैनिकों ने माली (अगस्त 2020 और मई 2021), गिनी (सितंबर 2021) और बुर्किना फासो (जनवरी और सितंबर 2022) के राष्ट्रपतियों बलपूर्वक हटाया है. इस क्षेत्र में मौजूदा संवैधानिक संकट कई तरह के सवालों को जन्म देती है, कि आज के दौर में जब लोकतांत्रिक व्यवस्था को पूरी तरह से मान्यता प्राप्त है तो ऐसे में कौन सी अदृश्य परिस्तिथियां हैं जो अफ्रीकी देशों के भविष्य और वर्तमान को अधिनायकवादी गिरफ्त में बार-बार धकेलती हैं. जिसका पूरा खामियाजा यहां रह रहे निर्दोष लोगों को उठाना पड़ता है. इन तीन देशों में हुई सैन्य तख्तापलट के कई आयाम हैं. यद्यपि ये घटनाएं समान कारणों और समय के साथ एक जैसी प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करती नजर आती हैं, लेकिन व्यापक स्तर पर हर देश का अपना एक अतीत है, जिसका प्रभाव अहम है. प्रत्येक तख्तापलट की जड़े प्रत्येक देश के अतीत और वर्तमान से जुड़ा हुआ है.
जबरन आरोपित सैन्य शासन
जबरन आरोपित सैन्य शासन का अफ्रीका में एक लंबा और व्यापक इतिहास रहा है. 1960 के दशक के दौरान अधिकांश अफ्रीकी राज्यों की स्वतंत्रता के तुरंत बाद से महाद्वीप के 54 देशों में तख्तापलट की संख्या हर दशक में आठ से छब्बीस के बीच रही है. प्रत्येक मामले में सैन्य नेता अपने कार्यों की अवैधता के बारे में पूरी तरह से अवगत रहे हैं. अगस्त 2020 में राष्ट्रपति इब्राहिम बाउबाकर कीता को गिरफ्तार करने के एक दिन बाद माली कमीटी फॉर साल्वेशन ऑफ़ दी पीपल ने सार्वजनिक रूप से कीता की सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और उन्हें हटाकर “लोगों के सामने सार्औवजनिक रूप से माली की जिम्रमेदारी लेने की घोषणा की. सितंबर 2021 में, कर्नल मामडी डौम्बौया ने इसी तरह के नाटकीय स्क्रिप्ट का पालन किया, जिसमें गिनी के राष्ट्रपति अल्फा कोंडे को राष्ट्रीय टेलीविजन पर यह घोषणा करते हटा दिया कि “एक सैनिक का कर्तव्य देश को बचाना है. इसी लिए देश और देश की सुरक्षा के लिए हमारे द्वारा ये कदम उठाया गया है. इसके बाद बुर्किना फासो के राष्ट्रपति रोच मार्क क्रिश्चियन काबोरे की बारी आई. गिनी के तख्तापलट के ठीक चार महीने बाद, लेफ्टिनेंट कर्नल पॉल – हेनरी दमिबा ने दावा किया कि देश में चल रहे इस्लामी उग्रवाद की गंभीरता के कारण उन्हें देशभक्ति से वशीभूत होकर तख्तापलट का आन्दोलन करना पड़ा. साथ ही उन्होंने कहा की गिनी पर शासन करने का उनका कोई ध्येय नहीं है, सुरक्षा स्थिति जैसे ही नियंत्रण में आयेगी वे अपना पद छोड़ देंगे.
माली और गिनी में जुंटा ने भी नागरिक सरकारों के लिए रास्ता बनाने का वादा किया है, लेकिन प्रस्तावित चुनाव अभी भी वर्षों दूर हैं. माली और बुर्किनाफासो के अंतरिम अधिकारियों के भीतर विभाजन के परिणामस्वरूप दो और तख्तापलट हुए हैं, जिससे यहाँ की सामाजिक और राजनितिक अस्थिरता बढ़ गई है. अगर तख्तापलट के कारणों से जुड़े आधारों की बात करते हैं तो देखते हैं कि माली, गिनी और बुर्किना फासो में राजनीतिक स्थितियां प्रत्येक देश के अशांत अतीत और वर्त्तमान से जुड़ी स्थितियों से सम्बंधित है. पिछले पांच वर्षों में, आतंकवादियों ने बुर्किना फासो के क्षेत्र में 40 प्रतिशत तक नियंत्रण हासिल कर लिया है, जिससे 2,500 स्कूल बंद हो और दस लाख से अधिक लोग आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति हो गए हैं.
क्षेत्रीय संघर्ष में माली इस समय गंभीर स्थिति का सामना कर रहा है, लेकिन फिर भी यह स्थिति 2012 की शुरुआत के दिनों इतनी जटिल नहीं हैं. इन देशों में हिंसा फ़ैलाने में, कमजोर स्थानीय प्रशासन एवं जिहादी आंदोलनो की प्रमुख भूमिका है. कमजोर स्थानीय शासन हिंसा के लिए एक मजबूत आधार बनता है और यही आधार सैन्य तख्तापलट के लिए सबसे अधिक सहायक सिद्ध होता है.
इन देशों की सुरक्षा संकट की समस्या सैन्य तख्तापलट के लिए एक “उपजाऊ जमीन” जैसी है. पश्चिम अफ्रीकी राज्यों के आर्थिक समुदाय द्वारा चल रही बातचीत को नजरअंदाज करते हुए, माली में कीटा के जनरलों ने मामलों को अपने हाथों में ले लिया, संसद को भंग कर दिया और वहां के राजनितिक व्यक्तियों को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया. गिनी और बुर्किना- फासो में शीर्षस्थ राष्ट्रपतियों ने खुद अपने अनुदारवादी कार्यो के चलते लोगो में गुस्सा भड़काया. विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार करने, विरोध प्रदर्शनों को गैरकानूनी बनाने और मीडिया की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने में, कोंडे ने कोई कसर नहीं छोड़ा, जिसने वे खुद अंतरराष्ट्रीय आलोचना का विषय बन गए. इसी तरह बुर्केनाफासो में काबोरे की सरकार ने भी वहां की जनता की अभिवयक्ति की स्वतंत्रता को कमजोर करने वाले कदम उठाये.
इसलिए यह आश्चर्यजनक नहीं है कि बुर्किनाबे समाज आम तौर पर तख्तापलट के खिलाफ नहीं रहा और ना ही सरकार के पक्ष में खड़ा हुआ. जिसका बहुत बड़ा कारण इन देशों की सरकारों द्वारा वहां की जनता के अधिकारों और सुरक्षा को नजर अंदाज करना रहा है, जिससे यहाँ के लोगों का लोकतांत्रिक संस्थानों में बहुत कम विश्वास रह गया है.
लोकतांत्रिक संस्थानों में विश्वास के लिए न केवल शीर्ष पर सक्षम और सैद्धांतिक व्यक्तियों की आवश्यकता होती है, बल्कि नागरिकों को उनके अधिकारों को लेकर आश्वस्त करने के लिए सत्ता के हस्तांतरण का एक लयबद्ध विकल्प विकसित करने की भी आवश्यकता होती है. सैन्य तख्तापलट के साथ-साथ माली, गिनी और बुर्किनाफासो के बीच एक और समानता का पता चलता है कि प्रत्येक देश के पास लोकतंत्र का अपेक्षाकृत सीमित अनुभव रहा है बल्कि इन देशों में तख्तापलट का समय लोकतांत्रिक रूप से चुने सरकारों के कार्यकाल से ज्यादा रहा है. 2020 की घटनाओं से पहले, माली ने पहले ही तीन कूप, गिनी दो और बुर्किना फासो छह देखे थे.
तख्तापलट का चक्र
हर नए तख्तापलट के साथ, यह घटना देश की राजनीतिक संस्कृति के साथ जुड़ जाती है, और आगामी राजनीतिक संकट के समय इन अनुभवों का उपयोग होता है, जिसमे किसी और कारण को जोड़ते हुए तख्तापलट को सही साबित करने की कोशिश की जाती है. उदाहरण के लिए 2012 के मालियन तख्तापलट में भाग लेने वाले लोग 2020 के तख्तापलट से जुड़े विदेशी दबावों का जवाब देने में और कुशल हो गए और सत्ता पर काबिज होना उनके लिए आसान रहा. तख्तापलट के बार – बार होने से इससे जुड़े संभावित साजिशकर्ता राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दोनों स्तरों इतने कुशल हो जाते है की उनके लिए तख्तापलट एक सामान्य राजनीतिक गतिविधी हो जाती है. गिनी की तरह माली में भी न्यायिक और संस्थागत ढांचे प्रभावी नहीं हैं. अगर ऐसा होता तो , तो अल्फा कोंडे तीसरे कार्यकाल के लिए लक्ष्य नहीं हो पाता. आखिरकार, सेना के अलावा, “कोई अन्य मध्यस्थ इन देशों में नही है जो सरकार के खिलाफ आवाज उठा सके. इस बात को ध्यान में रखते हुए, सेना द्वारा निभाई गई भूमिका यहाँ के लोगों को लगभग सकारात्मक दिखाई देती है, जिसमे तख्तापलट करके भ्रष्ट नेताओं को हटा दिया जाता है . तख्तापलट की घटना भी इन देशों की स्थिति को देखते हुए स्थायी प्रतीत होती है. जिसमें प्रशासनिक, न्यायिक और राजनितिक कमजोरियों की भूमिका अहम है.
हालांकि, ऐतिहासिक सबूत बताते हैं कि इनमे से कोई भी आधार पूरी तरह से क्रियान्वित नहीं है. तख्तापलट आमतौर पर सामाजिक और राजनीतिक संस्कृति के लिए एक विनाशकारी प्रभाव की तरह है, और यह एक जाल की तरह होता है, यह एक ऐसा चक्र है जिसमें फंसे देशों की के उदाहरण के तौर पर माली, गिनी और बुर्किना फासो का जिक्र किया जा सकता है. यह एक अनिश्चितताओं वाला समय होता है जहाँ ऐसे देशों की जनता का वर्तमान और भविष्य दांव पर लगा होता है. फिर भी, ऐसी परिस्थिति के बावजूद , पश्चिम अफ्रीकी देशों के लिए तख्तापलट चक्र से आगे बढ़कर एक स्थायी टिकाऊ, नागरिक – केंद्रित परंपरा की ओर स्पष्ट रूप से बढ़ने का प्रयास करना कोई असंभव कार्य नहीं है. पर इसके लिए एक ईमानदार राजनीतिक प्रयास का होना जरुरी है. लोकतांत्रिक सरकारें यदि पूर्ण निष्ठावान होती तो शायद इन देशों में तख्तापलट का यह चक्र ना चल रहा होता. कई मायनों में, बुर्किनाफासो, माली और गिनी के सैन्य जुंटा ने उन सरकारों से बेहतर प्रदर्शन नहीं किया है. डौम्बौया ने सरकार विरोधी विरोध प्रदर्शनों को गैरकानूनी घोषित करके और संविधान की रक्षा के लिए राष्ट्रीय मोर्चे को भंग करने का प्रयास जो प्रयास किया है इससे यह सिद्ध होता है कि सैन्य तख्तापलट महज दिखावा है, इसका देश की जनता के हित से कुछ लेना देना नहीं है. नेशनल फ्रंट फॉर द डिफेंस ऑफ द संविधान के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है या निर्वासन में भेज दिया गया है. इस घटना के तहत जुंटा को संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त के आलोचना का सामना करना पड़ा है. इस बीच, दमीबा सरकार के प्रयासों के बावजूद, जनवरी तख्तापलट के बाद से बुर्किनाफासो में सुरक्षा स्थिति में कुछ खास सुधार नहीं हुआ है. जिहादियों ने देश के बाहरी क्षेत्रों में कब्ज़ा करना जारी रखा है, जिससे बुर्किनाबे अर्थव्यवस्था को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंच रहा है. सेना की क्षमताओं को विकसित करने में प्रगति का उल्लेख किया गया है, लेकिन इस साल बुर्किना फासो के दूसरे तख्तापलट के प्रमुख के रूप में सेना के कप्तान जनरल इब्राहिम ट्राओरे के लिए बस इतनी उपलब्धि का उल्लेख करना पर्याप्त नहीं था. ट्रैरे ने दमीबा हटाकर खुद को जुंटा के शीर्ष के रूप में स्थापित किया. और फिर से अपने इस कारनामे का बचाव करते हुए उन्होंने देश की बिगडती हुई स्थिति का हवाला दिया.
2020 के तख्तापलट के बाद, पश्चिम अफ्रीकी राज्यों के आर्थिक समुदाय ने मांग की कि जिम्मेदार सैनिकों को एक नागरिक राष्ट्रपति स्थापित करना चाहिए और फरवरी 2022 तक चुनाव आयोजित करवाना चाहिए. पहली मांग को शुरू में पूर्व रक्षा मंत्री बाह एन’डॉ की पसंद के साथ सम्मानित किया गया था और तख्तापलट के नेता असीमी गोइता उपराष्ट्रपति पद के लिए तय हुए थे, जिससे चुनाव की जिम्मेदारी जल्द से जल्द पूरी की जाए. लेकिन गोइता ने एन’डॉ को अपदस्थ कर के एक साल से भी कम समय में मई 2021 में खुद को अंतरिम राष्ट्रपति के रुप में नामित कर लिया, जिसका अंदाजा किसी को नहीं था. गोइता ने 2022 के चुनावों के लिए पश्चिम अफ्रीकी राज्यों के आर्थिक समुदाय के अनुरोध का भी उल्लंघन किया है। यह घोषणा करके कि उन्होंने 2026 को प्राथमिकता दी है, फिर उन्होंने खुद अपने बयान को बदलते हुए चुनाव का समय फरवरी 2024 कर दिया. गिनी में संक्रमणकालीन अधिकारियों ने भी पश्चिम अफ्रीकी राज्यों के आर्थिक समुदाय की मार्च 2022 की तारीख के बजाय 2025 के लिए चुनावों की घोषणा की है. बुर्किना फासो में, पश्चिम अफ्रीकी राज्यों का आर्थिक समुदाय अधिक उदार रहा और इस को जुलाई 2024 में चुनाव के लिए बोला गया, जिसमें दमीबा और ट्रेरे दोनो की सहमति थी. कुल मिलाकर, यह देखते हुए कि 2012 के मालियन तख्तापलट के एक साल बाद चुनाव हुए थे और 2008 के गिनी तख्तापलट के ठीक दो साल बाद, दो साल से अधिक समय तक संक्रमण अवधि किसी भी देश के राजनीतिक भविष्य के लिए बेहद खतरनाक है.
वर्तमान घटनाओं के अलावा दशकों के केस स्टडीज ने तख्तापलट के नेताओं के अपने देश के सर्वोत्तम हित में कार्य करने के दावे हमेश संदेहास्पद ही रहे हैं जिसका देश की जनता की भलाई से कुछ लेना देना नही रहा है. इन देशों के नागरिकों को तख्तापलट के नेताओं के सत्ता से हटने से इनकार करने और अधिनायकवाद रुख के जोखिम का सामना करना पड़ता है, जैसा कि 1987 में बुर्किना फासो में ब्लेज़ कॉम्पोरे के साथ या 1984 में गिनी में लैंसाना कॉन्टे के मामले में रहा. हाल ही में संबंधित तीन देशों में से प्रत्येक ने कुछ हद तक “अच्छे” तख्तापलट का अनुभव किया है, जिसने अपेक्षाकृत कम समय में लोकतांत्रिक सरकार के गठन के लिए सहयोगात्मक रवैया रखा. उदाहरण के लिए, माली के 1991 के तख्तापलट के बाद लोकतंत्रीकरण प्रक्रियाओं को सैनिकों द्वारा गति दी गई थी, और इसलिए कई सामान्य नागरिक राजनीतिक अभिनेता के रूप में बेहद कमजोर भूमिका में रहे. राजनीतिक दलों, ट्रेड यूनियनों और अन्य नागरिक समूहों के नेतृत्व में सत्ता में हस्तांतरण ने संभवतः मजबूत जुड़ाव लाया हो लेकिन इस तरह के तख्तापलट से मालियन लोकतंत्र की नीँव बेहद खोखली हो गई है. राजनेताओं और नागरिकों के बीच की दूरी अधिनायकवाद की स्थिति को मजबूत बनाती है और इस तरह की व्यवस्था आगामी भविष्य में तख्तापलट को और आसन करने में सहायक सिद्ध होती है.
क्षेत्रीय देशों के उदाहरण
माली, गिनी और बुर्किनाफासो में तख्तापलट चक्र को तोड़ना बेहद जरुरी है साथ ही एक अन्य पश्चिम अफ्रीकी देश का इतिहास दर्शाता है कि इस चक्र को तोड़ना संभव भी है. 1980 और 1990 के दशक के दौरान नाइजीरिया की सैन्य सरकारों ने क्षेत्र की जुंटा ने लोकतंत्रीकरण को देर से क्रियान्वित करने की रणनीतियों का उपयोग किया, जैसे कि विपक्ष का दमन और चुनावों को बार-बार स्थगित करना. इसके अलावा, नाइजीरिया के पर्याप्त तेल भंडार के कारण वहाँ की सैन्य शक्ति पर अंतरराष्ट्रीय संस्थान बहुत अधिक दबाव नही बना पाए यह वहाँ की सैन्य शक्ति के लिए फायदा रहा लेकिन माली, गिनी और बुर्किना फासो के सैन्य नेताओं को ऐसी सुविधा नहीं है क्योंकि आर्थिक रूप से ये देश पूरी तरह से टूट चुके हैं. फिर भी सीविल सोसाइटी की सक्रियता ने अंततः लोकतांत्रिक शासन के लिए बहुत हद तक रास्ता बनाने की कोशिस की है. लोकतांत्रिक प्रक्रिया स्थापित करने में बहुत ढीला रुख नाइजीरिया में रहा जो की क्षेत्रीय मॉडल बन गया है और सैन्य तख्तापलट एक आम सी बात बन गई है. लेकिन नाइजीरिया के पूर्व राष्ट्रपति ओलुसेगुन ओबसांजो द्वारा स्थापित सुधार, जैसे कि उन सभी सैनिकों की सेवानिवृत्ति, जिन्होंने पहले राजनीतिक पदों पर कब्जा कर लिया था. उन्होंने सेना को चुनावी राजनीति से दूर रखा. पूर्व राष्ट्रपति द्वारा उठाया गया यह कदम नाइजीरिया में लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित करने में आधार भूत रहा. नाइजीरियाई नेतृत्वकर्ता पार्टियों, क्षेत्रों और सरकार के स्तरों के बीच सत्ता-साझाकरण की संस्कृति भी विकसित कर रहे हैं. यह परिणाम क्षेत्रीय रूप से आधारित सुरक्षा पहल को बढ़ावा देती है और राष्ट्रीय बलों पर निर्भरता को कम करती है , जिससे राज्य हिंसा का अधिक लचीले ढंग से जवाब देने में संभव हो पाए. नाइजीरिया का राजनीतिक परिदृश्य अभी भी परिपूर्णता से बहुत दूर है; फ्रीडम हाउस की 2022 की रिपोर्ट ले अनुसार देश में व्यापक भ्रष्टाचार और संकीर्ण मीडिया वातावरण मौजूद है. लेकिन पांच तख्तापलट और दशकों के सैन्य शासन से उत्पन्न अस्थिरता अब अतीत की बात प्रतीत होती है. यह एक बड़ी राजनीतिक उपलब्धि है. नाइजीरिया के लोकतांत्रिक संस्थान इस्लामी आतंकवादियों के अपने हमले के बावजूद भी उल्लेखनीय हैं, क्योंकि इतने लम्बे समय के राजनीतिक अस्थिरिता के बावजूद लोकतांत्रिककरण की बहाली कोई मामूली बात नही है. बोको हराम का हमला 2011 के आसपास से जारी है जिसमे जिसमें आतंकवादी संगठन ने हजारों लोगों की हत्या कर दी और दो मिलियन लोग विस्थापित हो गए है इसकी पूरी संभावना है. दशकों से चले आ रहे उग्रवाद को समाप्त करने में संघीय सरकार की असमर्थता के बावजूद, नाइजीरियाई लोकतंत्र माली और बुर्किनाफासो के विपरीत काफी दृढ़ रहा है. नाइजीरिया के उत्तरी पड़ोसी नाइजर के लिए भी यही कहा जा सकता है. इसी तरह से नामित सहेलियन राज्य का तख्तापलट का अपना लंबा रिकॉर्ड है – वास्तव में, नाइजर का पहले लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार से दूसरी सरकार के संक्रमण में 2021 के राष्ट्रपति चुनाव का लम्बा समय लग गया. नाइजर में राजनीतिक हिंसा में वृद्धि की पृष्ठभूमि में यह चुनाव हुआ, जो पश्चिम में माली और बुर्किना फासो और पूर्व में नाइजीरिया में फैल गया.
हालांकि, जबकि 2021 ने संघर्ष का एक रिकॉर्ड वर्ष चिह्नित किया, इसकी तुलना में 2022 में हिंसा में कमी आई है. यहां तक कि जब देश के पश्चिमी पड़ोसियों में आतंकवादी हमले निरंतर जारी हैं, नाइजर आशा की एक किरण का प्रतिनिधित्व करता है कि सैन्य सफलता और लोकतांत्रिक प्रगति साथ – साथ चल सकती है. और नाइजीरिया के तख्तापलट के बाद की राजनीतिक स्थिरता का इतिहास लम्बे समय में उम्मीद देता है की इन तीनो देशो में भी राजनीतिक स्थिरता कायम हो सकती है.
राजनीतिक पहल की आवश्यकता
पश्चिम अफ्रीका में तख्तापलट की हालिया लहर के जवाब में, अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को क्षेत्र के राज्यों के विविध राजनीतिक इतिहास के बीच मौजूद विरोधाभासों पर विचार करना चाहिए. कई कारक बताते हैं कि माली, गिनी और बुर्किना फासो में अब कूप क्यों हो रहे हैं – और भविष्य में भी जारी रह सकते हैं. लेकिन पश्चिम अफ्रीका में ऐसे देश भी शामिल हैं जो तख्तापलट चक्र से बचने या तोड़ने में सक्षम हैं. इन राज्यों की कहानियों से पता चलता है कि तख्तापलट से होने वाला नुकसान, हालांकि बहुत भयावह है पर स्थायी नहीं है. जिन परिस्थितियों में तख्तापलट होता वह बहुत ही गतिशील आयामों पर आधारित होता है. भविष्य के तख्तापलटों को रोकने और वर्तमान तख्तापलटों का जवाब देने के लिए, इस दिशा में आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता है. क्षेत्रीय और वैश्विक भागीदारों की मदद से इन देशों को नागरिकता के अधिकारों की पूर्ति नहीं होने, सामाजिक-आर्थिक हताशा और बढ़ती असुरक्षा के रूप में शासन की कमी को दूर करना के प्रयासों को बढ़ावा देने की जरुरत है.
पश्चिम अफ्रीकी राज्यों के आर्थिक समुदाय और अफ्रीकी संघ जैसे क्षेत्रीय निकायों को भी सभी प्रकार के तख्तापलटों को रोकने के लिए दृढ़ और निष्पक्ष रूप से आगे आने की आवश्यकता है. तख्तापलट करने वालों को दंडित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय उपाय वैश्विक शक्तियों द्वारा समर्थित होने चाहिए. वैश्विक अंतर-सरकारी निकायों को समान रूप से जांच करनी चाहिए – और अफ्रीकी क्षेत्रीय संगठनों को अफ्रीकी देशों में विदेशी हस्तक्षेप का विरोध करना चाहिए जो राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा देता है.
पश्चिम अफ्रीका में लोकतंत्र की बहाली के लिए स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप शासन और प्रशासन में बदलाव लाने की जरुरत है. जिससे इन देशों की जनता को भ्रस्टाचार और असुविधाओं से निपटने में सहायता प्राप्त हो सके. और देश के लोग खुद को सुरक्षित और सम्मानित महसूस करें.