[Team insider] झारखंड सरकार द्वारा जिला स्तरीय नियोजन में धनबाद, बोकारो में भोजपुरी, मगही और अंगिका को शामिल किए जाने का विरोध पिछले कई दिनों से चल रहा है। लेकिन विरोध अब भाषाई विवाद या यों कहें कि हिसंक रुप में तब्दील होता जा रहा है।
झामुमो उपाध्यक्ष के साथ मारपीट
जहां पिछले दिनों विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों द्वारा पूर्व भाजपा सांसद रविंद्र राय की गाड़ी को नुकसान पहुंचाने और उनके अंगरक्षक से मारपीट करने का मामला सामने आया था। वहीं अब झारखंड मुक्ति मोर्चा के जिला उपाध्यक्ष निर्मल राजवार के साथ भी मारपीट की घटना सामने आई है। पार्टी के स्थापना दिवस कार्यक्रम के बाद जिला उपाध्यक्ष निर्मल राजवार लौट रहे थे उस समय के उसके साथ मारपीट की गई, जिसके बाद उन्हें जान से मारने की धमकी दी फिलहाल निर्मल रजवार को अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनका इलाज चल रहा है।
भाषा के लिए स्पष्ट नीति बनाए सरकार
वहीं भाषाई विवाद को लेकर विपक्ष के भाजपा के विधायक दल के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा कि इसके पीछे अलग कारण है। यह लड़ाई डुमरी और टुंडी में हो रही है और वहां हीं क्यों हो रही है, यह समझने की बात है। उन्होंने कहा कि भाषा के बारे में सरकार को एक स्पष्ट नीति तय करनी चाहिए। अभी तक सरकार ने कोई नीति नहीं बनाई है। उन्होंने कहा कि झारखंड प्रदेश विविधताओं से भरा हुआ है। ट्राइबल में 32 जनजाति है। सबकी भाषा अलग अलग है। उसी प्रकार से हर क्षेत्र में ढेर सारी भाषाएं हैं। भाषा की विविधिताएं हैं। उन्होंने कहा कि जनता पिस रही है। अगर हेमंत सोरेन उनसे बात करेंगे कि क्या नीति होनी चाहिए। तो वह बता देंगे कि क्या नीति बनानी चाहिए।
इस मामले में संजीदा है मुख्यमंत्री
राजेश ठाकुर ने कहा कि मंत्री जगन्नाथ महतो ने अपनी भावनाओं से अवगत कराया है। पार्टी के भी सभी विधायकों ने अपनी भावनाओं से अवगत करा दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार जब भी कोई निर्णय लेती है तो सभी विषयों को ध्यान में रखती हैं। जो लोग आंदोलन कर रहे हैं, उनकी भावनाओं को भी समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री संजीदा है और सभी विषयों पर चर्चा करके ही उचित निर्णय लेंगे।
राजनीतिक पार्टियां की दे रहें हैं अपनी-अपनी राय
धनबाद और बोकारो में भाषाई विवाद फिलहाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब यह मामला बोकारो धनबाद से निकलकर गिरिडीह जिले तक पहुंच गया है। इस विवाद में सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी अपनी अलग-अलग राय दे रहे हैं। सबसे खास बात यह है कि कई जिले ऐसे हैं जहां भोजपुरी, मगही अंगिका जैसी भाषाएं प्रमुखता से बोली जाती है। ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि सुबे के मुख्यमंत्री इस पर क्या हल निकालते हैं।