आरा में लोकसभा चुनाव सातवें फेज में हो रहा है। 1 जून को इसके लिए मतदान होना है। केंद्रीय मंत्री आरके सिंह की इस सीट पर हैट्रिक लगाने की कोशिश है जबकि महागठबंधन ने चौंकाते हुए इस बार उम्मीदवार बदला। सीपीआईएमएल ने पिछले चुनाव में राजू यादव को उतारा था। लेकिन इस बार सुदामा प्रसाद को प्रत्याशी बना दिया। पिछली लड़ाई राजपूत और यादव उम्मीदवारों के बीच थी। लेकिन इस बार की लड़ाई राजपूत और वैश्य के उम्मीदवार के बीच हो रही है। मुकाबला कड़ा है और पिछले बार हारे महागठबंधन ने इस बार आरके सिंह के बड़ी तैयारी की है।
आरा में आरके सिंह की स्थिति आसान नहीं है। इसके कई बार हैं। इसमें एक कारण यह है कि यहां के कुशवाहा वोटर्स की एनडीए के प्रति उदासीनता दिख रही है। राजद ने जिस तरह कुशवाहा वोटों को साधने के लिए अधिक उम्मीदवार इसी जाति से उतारे, इसका प्रभाव आरा में भी पड़ा है। इसके अलावा कुशवाहा इसलिए भी नाराज हैं क्योंकि काराकाट में पवन सिंह की उम्मीदवारी के कारण दो कुशवाहा जाति के उम्मीदवारों का खेल उलझ गया है। उपेंद्र कुशवाहा और राजाराम सिंह के बीच पवन सिंह ने त्रिकोणीय लड़ाई बना दी है। इसका प्रभाव आरा में यह पड़ रहा है कि कुशवाहा जाति का एक हिस्सा यह सोच रहा है कि अगर काराकाट में राजपूत अपनी जाति के उम्मीदवार को देंगे तो आरा में कुशवाहा वोटर्स राजपूत के लिए वोट क्यों करें?
हालांकि आरके सिंह की जीत 2014 और 2019 में बड़ी रही है। 2014 में आरके सिंह ने राजद के भगवान सिंह कुशवाहा को 1.35 लाख वोटों से हराया था। इसके बाद 2019 में आरके सिंह ने महागठबंधन के साझा उम्मीदवार राजू यादव को 1.47 लाख वोटों से हराया। इसलिए आरा की लड़ाई मुश्किल में है। इसमें ताज तो आरके सिंह को बचाना जबकि महागठबंधन की कोशिश यह है कि वो एनडीए के इस गढ़ में मामला फंसा दे।