[Team insider] राजधानी रांची के ऐतिहासिक पहाड़ी मंदिर में शिवरात्रि के दिन बड़ी संख्या में श्राद्धालुओं की भीड़ लगती है, जहां अपनी अर्जी लेकर बाबा भोलेनाथ के पास आते है और श्राद्धा से पूजा अर्चना करते हैं। लेकिन भगवान शिव का यह प्राचीनतम मंदिर कई ऐतिहासिक तथ्यों को संजोए हुए है। पहाड़ी मंदिर के पहाड़ी बाबा तीन सौ फीट की ऊंचाई पर विराजमान है।
नाग देवता का स्थान 50 हजार वर्ष पुराना
मंदिर 26 एकड़ में फैला हुआ है। यहां श्रद्धालु लगभल 450 सीढ़ी चढ़ कर पहाड़ी बाबा का दर्शन करते है। वहीं पहाड़ी स्थित नाग देवता का स्थान 50 हजार वर्ष पुराना बताया जाता है। पहाड़ी मंदिर 117 वर्ष पुराना है। इस मंदिर की कुछ अनूठी परंपराएं हैं। इतिहास के पन्नें उलट कर देखे तो यहां आदिवासी सबसे पहले नाग देव की पूजा करते हैं। वहीं पत्थरों पर नाग और नागिन के पद चिन्ह भी मौजूद है। इसके बाद पहाड़ी बाबा का दर्शन करते हैं।
इस पहाड़ पर एक नागोबा भी है
आदिवासी समुदायों के लिए नाग महत्वपूर्ण है। इस पहाड़ पर एक नागोबा भी है। जहां आदिवासी समुदाय के लोग पहले नाथ बाबा के दर्शन कर पहाड़ी बाबा को पूछते हैं। वहीं अन्य समुदाय के लोग पहले पहाड़ी बाबा पर जलाभिषेक करने के बाद नाग की पूजा करते हैं। वर्ष 1905 के आसपास ही पहाड़ के चोटी पर भगवान शिव का मंदिर का निर्माण किया गया था।
धार्मिक आस्था के साथ-साथ देशभक्तों के बलिदान भी जुड़ा है
यह धार्मिक आस्था के साथ-साथ देशभक्तों के बलिदान के लिए भी जाना जाता है। यह देश का अकेला ऐसा मंदिर है, जहां 15 अगस्त और 26 जनवरी को राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है यह परंपरा 15 अगस्त 1947 से चली आ रही है। हर साल गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पूजा समिति की ओर से मंदिर की चोटी पर तिरंगा झंडा फहराया जाने की परंपरा ऐतिहासिक है।
पहाड़ी मंदिर में लगा हुआ है एक पत्थर
पहाड़ी मंदिर के चोटी पर तिरंगा फहराने की कहानी काफी रोचक है। इतिहासकार बताते हैं कि आजादी के बाद रांची में पहला तिरंगा यहीं पर फहराया गया था। जिसे रांची के स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण चंद्र दास ने फहराया था। पहाड़ी मंदिर में एक पत्थर लगा हुआ है जिसमें 14, 15 अगस्त 1947 की आधी रात को देश की आजादी का मैसेज लिखा हुआ है।
अंग्रेज स्वतंत्रता सेनानियों को इस पहाड़ी पर लाकर देते थे फांसी
आजादी से पहले अंग्रेज क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों को इस पहाड़ी पर लाकर फांसी देते थे। इसलिए इसे फांसी टोंगरी भी कहा जाता था। इसीलिए जब देश आजाद हुआ तब सबसे पहले इस स्थान पर तिरंगा फहराया गया। इसके बाद अब हर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर यहां तिरंगा फहराने की परंपरा है। इतिहासकार बताते हैं कि आजादी के बाद रांची में पहला तिरंगा यहीं पर फहराया गया था। जिसे रांची के स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण चंद्र दास ने फहराया था।
विश्व का सबसे ऊंचा झंडा फ़हराने का है रिकॉर्ड
2016 में पहाड़ी मंदिर में विश्व का सबसे ऊंचा झंडा फ़हराया गया था, तिरंगा जमीन से 493 फीट की ऊंचाई पर और पहाड़ी मंदिर पर से 293 फीट लंबे पुल पर लगाया गया था। हालांकि जगह-जगह पहाड़ी दरकने के वजह से इसे हटा दिया गया था। पहाड़ी मंदिर पर 493 फीट ऊंचे फ्लैग पोल स्थापित किया गया, जिस पर 23 जनवरी 2016 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के अवसर पर 30. 17 मीटर लंबे और 20.12 मीटर चौड़ा तिरंगा झंडा फहराया गया था।