One Nation One Election : भारतीय राजनीति में एक बार फिर “वन नेशन, वन इलेक्शन” यानी एक देश, एक चुनाव का मुद्दा चर्चा के केंद्र में है। बिहार भाजपा के संगठन महामंत्री भीखू भाई दलसानिया ने इस विचार को देशहित में बताया और जोर देकर कहा कि “राजनीतिक दल बाद में, देश पहले” की भावना से सोचना चाहिए।
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पटना विश्वविद्यालय के बी.एन. कॉलेज में आयोजित परिचर्चा में दलसानिया ने कहा कि बार-बार चुनाव होने से देश का विकास बाधित होता है, सरकारी कार्य रुक जाते हैं, और प्रशासनिक मशीनरी चुनावी प्रक्रिया में उलझी रहती है। उन्होंने इस मुद्दे को सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय हित से जुड़ा बताया।
वन नेशन, वन इलेक्शन अभियान के राज्य संयोजक और पूर्व विधान पार्षद डॉ. रणवीर नंदन ने चुनावी खर्चों को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने बताया कि 1952 से 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होते थे, जिससे प्रशासनिक स्थिरता बनी रहती थी। लेकिन बाद में यह परंपरा टूट गई और बार-बार चुनाव कराने से देश की बड़ी आर्थिक राशि खर्च हो रही है, जिसे अगर विकास कार्यों में लगाया जाए तो भारत आत्मनिर्भर बनने की दिशा में तेजी से बढ़ सकता है।
कार्यक्रम में मौजूद वरिष्ठ भाजपा नेता अनिल शर्मा ने इस बात पर जोर दिया कि देश में चुनावी प्रणाली में सुधार की जरूरत है। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि किसी राज्य में सरकार गिरती है, तो नए चुनाव पूरे कार्यकाल के लिए नहीं, बल्कि केवल बचे हुए कार्यकाल के लिए ही कराए जाएं। इसके अलावा, उन्होंने दल-बदल कानून में संशोधन की भी मांग की, जिससे अनावश्यक राजनीतिक अस्थिरता रोकी जा सके।
डॉ. मोहन सिंह ने कहा कि भारत में चुनाव की परंपरा बहुत पुरानी नहीं है। प्राचीन काल में शासन सर्वानुमति से चलता था और चुनाव की जरूरत नहीं होती थी। उन्होंने तर्क दिया कि बार-बार चुनाव कराने की परंपरा को बदलना जरूरी है, ताकि देश की ऊर्जा और संसाधनों का सदुपयोग हो सके।
बी.एन. कॉलेज के प्राचार्य डॉ. राजकिशोर प्रसाद ने “वन नेशन, वन इलेक्शन” को 2047 तक आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य की ओर एक महत्वपूर्ण कदम बताया। उन्होंने ऑनलाइन चुनाव प्रणाली को अपनाने का सुझाव दिया, जिससे चुनाव खर्चों में कटौती की जा सके। किया। इस मौके पर पटना विश्वविद्यालय गृह विज्ञान विषय की विभाग अध्यक्ष प्रो. सुहेली मेहता, श्याम पटेल, राहुल कुमार सहित कई लोगों ने अपने विचार व्यक्त किए।