बिहार की राजनीति में पप्पू यादव का नाम हमेशा से चर्चाओं में रहा है। खासकर जब चुनावी माहौल गरमाने लगता है, तब उनके सियासी कदमों पर सबकी निगाहें टिक जाती हैं। लेकिन इस बार कहानी कुछ अलग है। दिल्ली में हुई कांग्रेस की अहम बैठक में बिहार के बड़े नेताओं को बुलाया गया, पर पूर्णिया के निर्दलीय सांसद पप्पू यादव को आमंत्रण नहीं मिला। इससे सियासी हलकों में अटकलों का बाजार गर्म हो गया है।
बैठक से बाहर क्यों रहे पप्पू यादव?
इस बैठक में बिहार कांग्रेस के बड़े नेता शामिल हुए, लेकिन पप्पू यादव को बुलावा नहीं भेजा गया। ऐसे में सवाल उठना लाजमी था कि क्या कांग्रेस उन्हें लेकर कोई बड़ा फैसला लेने जा रही है? चर्चा तो यह भी रही कि खुद पप्पू यादव भी बैठक में बुलावे का इंतजार करते रहे, लेकिन रात तक कोई संदेश नहीं आया।
हालांकि, बैठक के बाद जब कांग्रेस नेता कृष्णा अल्लावरु से इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि “इंडिया गठबंधन के दल मिलकर इस पर फैसला लेंगे। बीजेपी के खिलाफ जो भी खड़ा रहेगा, उस पर सामूहिक चर्चा कर निर्णय लिया जाएगा।”
इस बयान से साफ है कि कांग्रेस पप्पू यादव के मुद्दे पर सीधे कोई स्टैंड नहीं ले रही है और गेंद गठबंधन के पाले में डाल रही है।
कांग्रेस के लिए ‘फायदा या खतरा’?
पप्पू यादव कांग्रेस के लिए एक उपयोगी सहयोगी हो सकते हैं, क्योंकि उन्होंने कई राज्यों में कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों के लिए प्रचार किया है। लेकिन जब बिहार की बात आती है, तो मामला उलझ जाता है।
बिहार में उलझन इसलिए है क्योंकि अगर पप्पू यादव कांग्रेस के साथ खुलकर आते हैं, तो राजद (RJD) के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। यादव वोट बैंक पर लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की मजबूत पकड़ है। ऐसे में पप्पू यादव इस वोट बैंक में सेंधमारी कर सकते हैं, जिससे महागठबंधन के अंदर दरार गहरा सकती है।
पप्पू यादव की स्थिति क्या है?
जब खुद पप्पू यादव से पूछा गया कि वह कांग्रेस में हैं या नहीं, तो उन्होंने जवाब दिया कि “यह कांग्रेस को तय करना है कि मैं पार्टी में हूं या नहीं। लेकिन जहां भी मेरी भूमिका तय होती है, मैं उसे निभाता हूं।”
इसके साथ ही उन्होंने साफ किया कि वह राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की विचारधारा के समर्थक हैं और उनका एजेंडा ही बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी दिशा तय करेगा।