नई दिल्ली,: भारत द्वारा हाल ही में सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को निलंबित करने के फैसले पर किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन (BKU) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत ने कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने इस फैसले को गलत करार देते हुए कहा कि संधि को जारी रखना चाहिए, क्योंकि पानी किसानों की सबसे बड़ी जरूरत है।
नरेश टिकैत ने कहा, “यह गलत फैसला है। संधि जारी रहनी चाहिए थी। हम इसके खिलाफ हैं। हम किसान हैं और हर किसान को पानी की जरूरत है।” टिकैत का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब भारत और पाकिस्तान के बीच पानी के बंटवारे को लेकर तनाव चरम पर है।
सिंधु जल संधि, जिसे 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षरित किया गया था, एक ऐतिहासिक जल-बंटवारा समझौता है। इसके तहत सिंधु नदी प्रणाली के पानी का 30% हिस्सा भारत को और 70% हिस्सा पाकिस्तान को आवंटित किया गया था। हालांकि, 23 अप्रैल 2025 को भारत ने इस संधि को निलंबित कर दिया, जिसे नई दिल्ली ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद लिया गया एक सख्त कदम बताया। भारत ने 2023 में भी इस संधि को पुनर्विचार करने की नोटिस दी थी, जिसमें पाकिस्तान पर संधि के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था।
इस संधि को लेकर लंबे समय से दोनों देशों के बीच मतभेद रहे हैं। खास तौर पर भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रातले जैसी जलविद्युत परियोजनाओं को लेकर पाकिस्तान ने आपत्ति जताई है। पाकिस्तान का दावा है कि ये परियोजनाएं संधि की शर्तों का उल्लंघन करती हैं और इससे उसके हिस्से का पानी प्रभावित हो सकता है। वहीं, भारत का कहना है कि वह संधि के तहत अपने अधिकारों का उपयोग कर रहा है।
नरेश टिकैत का बयान भारत के उन लाखों किसानों की चिंता को लेकर है, जो सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि संधि का निलंबन दोनों देशों के किसानों और आम लोगों के लिए गंभीर परिणाम ला सकता है, खासकर पाकिस्तान में, जो पहले से ही पानी की भारी कमी से जूझ रहा है।
सिंधु जल संधि को विश्व के सबसे सफल जल-बंटवारा समझौतों में से एक माना जाता था, जो चार युद्धों और दोनों देशों के बीच लंबे तनाव के बावजूद 64 साल तक कायम रहा। लेकिन अब इसके निलंबन से भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक नया तनाव उत्पन्न हो गया है। इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरें भी टिकी हुई हैं।