केंद्र सरकार द्वारा जातीय जनगणना (Caste Census) को राष्ट्रीय जनगणना का हिस्सा बनाने की घोषणा के साथ ही एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया है, जिसे लेकर बिहार की राजनीति में खासा हलचल मच गई है। इस फैसले का एक ओर जहां नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की जदयू ने खुले दिल से स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को धन्यवाद दिया है, वहीं RJD नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने इसे समाजवाद और लालू प्रसाद यादव की वर्षों पुरानी जीत बताया है।
JDU ने दी केंद्र को बधाई, Nitish के दृष्टिकोण की हुई पुष्टि
जदयू की ओर से कहा गया कि इस फैसले से सामाजिक रूप से पिछड़े और वंचित वर्गों के लिए योजनाएं बनाने की दिशा में बड़ी प्रगति होगी। पार्टी ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में पहले ही जातीय गणना करवा कर यह साबित कर दिया था कि पारदर्शिता से आंकड़े सामने लाकर ही न्याय के साथ विकास संभव है। जदयू नेताओं का मानना है कि आज जब केंद्र ने इस नीति को अपनाया है, तो यह नीतीश कुमार की सोच की राष्ट्रीय स्वीकृति है।
तेजस्वी ने केंद्र को घेरा, कहा – हमारी लाइन पर चल रहे हैं मोदी
दूसरी ओर, तेजस्वी यादव ने केंद्र के फैसले का स्वागत करते हुए तीखे अंदाज़ में यह भी कहा कि यह उनकी और उनके पिता लालू यादव की तीन दशक पुरानी मांग की जीत है। तेजस्वी ने कहा कि जब हम बिहार में डिप्टी सीएम बने थे, तब जातीय गणना पूरी की। केंद्र ने पहले मना किया, पर अब उन्हें हमारी लाइन पर आना पड़ा। यह सामाजिक न्याय की ताकत है। तेजस्वी यादव ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि सिर्फ गणना पर्याप्त नहीं है – अब उनकी अगली लड़ाई विधानसभा और संसद सीटों के आरक्षण की होगी। उन्होंने मांग की कि जैसे अनुसूचित जातियों और जनजातियों को आरक्षित सीटें मिलती हैं, वैसे ही पिछड़े और अति पिछड़े वर्गों को भी आरक्षण मिले।
राजनीतिक लाभ की लड़ाई भी तेज
इस फैसले के बाद अब एक नई राजनीतिक खींचतान शुरू हो चुकी है – केंद्र सरकार इसे विकास की नीति बताकर पेश कर रही है, तो बिहार के दोनों प्रमुख दल इसे अपने-अपने दृष्टिकोण की जीत बता रहे हैं। दरअसल, क्रेडिट की लड़ाई बिहार में इसलिए ज्यादा असर दिखा रही है क्योंकि बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव है और जातीय जनगणना का मुद्दा न सिर्फ सामाजिक नीति निर्माण के लिए अहम है, बल्कि आने वाले चुनाव में इसका असर वोट बैंक पर भी पड़ सकता है।