नई दिल्ली: ईरान और इजरायल के बीच जारी तनाव के बीच रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने एक सनसनीखेज दावा किया है। उनका कहना है कि कई देश ईरान को सीधे अपने परमाणु हथियार आपूर्ति करने के लिए तैयार हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिका ने रविवार, 22 जून 2025 को ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानो पर ‘ऑपरेशन मिडनाइट हैमर’ के तहत हमला किया।
अमेरिका के हमले का उद्देश्य और परिणाम
अमेरिकी जनरल डैन केन, जोइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के चेयरमैन, के अनुसार, इस ऑपरेशन में 125 सैन्य विमानों, जिसमें सात बी-2 स्टील्थ बॉम्बर शामिल हैं, का इस्तेमाल किया गया। इन हमलों का लक्ष्य ईरान के परमाणु महत्वाकांक्षाओं को कम करना बताया जा रहा है, खासकर फोर्डो जैसे संवेदनशील संवर्धन संयंत्र को निशाना बनाया गया, जो पहाड़ों में छिपा हुआ है।
हालांकि, मेदवेदेव ने दावा किया कि इन हमलों से ईरान का परमाणु बुनियादी ढांचा या तो अप्रभावित रहा या उसे मामूली नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि परमाणु सामग्री का संवर्धन और भविष्य में हथियारों का उत्पादन जारी रहेगा।
रूसी नेता की टिप्पणियाँ और आलोचना
मेदवेदेव ने अमेरिका के इस कदम को नाकाम बताते हुए सवाल उठाया, “ईरान पर रात के समय हुए इन हमलों से अमेरिका ने क्या हासिल किया?” उन्होंने 10 बिंदुओं में अपनी बात रखते हुए कहा कि ईरान का राजनीतिक शासन और मजबूत हुआ है, और देश के लोग नेतृत्व के इर्द-गिर्द एकजुट हो रहे हैं, जिसमें पहले सरकार के विरोधी भी शामिल हैं।
इसके अलावा, उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर निशाना साधते हुए कहा कि जो ट्रंप को ‘शांति के राष्ट्रपति’ के रूप में जाना जाता था, उन्होंने अब अमेरिका को एक और युद्ध में धकेल दिया है। मेदवेदेव ने ट्रंप के नोबेल शांति पुरस्कार की संभावना को भी खारिज कर दिया।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ
ब्रिटिश प्रधानमंत्री सर कीर स्टारमर ने अमेरिकी कार्रवाई को ईरान के परमाणु कार्यक्रम से उत्पन्न “गंभीर खतरे” को कम करने की कोशिश बताया और तेहरान से बातचीत की अपील की। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इसे खतरनाक बढ़ोतरी करार दिया, जबकि यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रमुख काया कालस ने सभी पक्षों से तनाव कम करने और वार्ता की मेज पर लौटने की अपील की।
ईरान-रूस के बीच बढ़ते रिश्ते
अमेरिकी हमले के बाद ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची आज मॉस्को के लिए रवाना हुए हैं, जहां वे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात करेंगे। इस मुलाकात पर दुनिया की नजरें टिकी हैं, क्योंकि सवाल उठ रहा है कि क्या रूस इस संघर्ष में प्रत्यक्ष रूप से शामिल हो सकता है? रूस ने पहले ही अमेरिका से इस टकराव से दूर रहने की सलाह दी थी, लेकिन अब स्थिति और जटिल होती जा रही है।
पृष्ठभूमि और चिंताएँ
ईरान का परमाणु कार्यक्रम लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए चिंता का विषय रहा है। 2015 का जॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (JCPOA) ईरान की परमाणु गतिविधियों को सीमित करने में मददगार रहा, लेकिन हाल के घटनाक्रमों ने इस समझौते को कमजोर कर दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि रूस या अन्य देश ईरान को परमाणु सहायता प्रदान करते हैं, तो यह क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
आगे का रास्ता
जैसा कि ईरान और इजरायल के बीच हवाई युद्ध एक सप्ताह से अधिक समय से जारी है, इस घटनाक्रम से मध्य पूर्व में अस्थिरता बढ़ने की आशंका है। क्या पुतिन और अराघची की मुलाकात इस संघर्ष को नया मोड़ देगी, या कूटनीति फिर से हावी होगी? ये सवाल अब हर किसी के दिमाग में हैं।