Tejashwi Yadav Vs NDA: पटना की राजनीति में सियासी तराजू इन दिनों काफी ‘भारी’ होता जा रहा है—कम से कम सोशल मीडिया के अखाड़े में तो यही नज़ारा है। बिहार विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान जहां सदन में गरमागरम बहसें चल रही हैं, वहीं ट्विटर (अब X) पर लालू यादव ने एक ऐसा राजनीतिक चित्र पेश किया है जिसने सत्ता पक्ष के माथे पर बल डाल दिया है।
आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने अपने पुत्र और पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को केंद्र में रख एक पोस्टर साझा किया है, जिसमें उनका पलड़ा सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, अमित शाह, विजय सिन्हा और सम्राट चौधरी जैसे एनडीए के दिग्गजों पर भारी दिखाया गया है। पोस्टर में नीतीश कुमार के मुंह से एक चर्चित डायलॉग निकलता है—”नहीं न झुक रहा है जी…”—जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है।
इस पोस्टर के जरिए आरजेडी ने यह जताने की कोशिश की है कि 17 महीने तक सरकार में रहे तेजस्वी की छवि, कार्यशैली और राजनीतिक परिपक्वता अब उन्हें विपक्ष का नहीं, बल्कि एक गंभीर विकल्प का चेहरा बना रही है। लालू ने दावा किया कि तेजस्वी की “विनम्रता से लेकर तार्किकता” तक की खूबियों ने एनडीए को असहज कर दिया है।
यह दावा महज एक पोस्टर या शब्दों का खेल नहीं रह गया है। हाल के विधानसभा सत्र में तेजस्वी ने जिस आक्रामक लेकिन संयमित अंदाज में सरकार को घेरा, उसने उन्हें एक नये राजनीतिक तेवर वाला नेता बना दिया है। उनकी भाषण शैली, तर्क और विपक्षी नेताओं को एकजुट रखने की रणनीति चर्चा का विषय बनी हुई है।
लालू यादव ने अपने दूसरे ट्वीट में ‘SIR’ शब्द के जरिये लोकतंत्र की चिंता जाहिर की। इस पोस्ट में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की एक तस्वीर साझा की है, जिसके साथ संविधान की तस्वीर भी है। इसमें यह संदेश दिया गया है कि सरकारें अब मतदाताओं को नहीं, बल्कि मतदाता सरकार को चुनते हैं—सीधा आरोप है कि संविधान को कमजोर किया जा रहा है।
आरजेडी अब खुलकर तेजस्वी के 17 महीनों के डिप्टी सीएम कार्यकाल को अपने चुनावी अभियान की रीढ़ बना रही है। चाहे वह सरकारी नौकरियों की बहाली हो या युवाओं को जोड़ने की कोशिश—हर नीति को अब ‘तेजस्वी ब्रांड’ से जोड़ा जा रहा है। पोस्टर, वीडियो और सोशल मीडिया के जरिए पार्टी यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि अगर 17 महीने में इतनी सक्रियता दिखाई गई, तो पांच साल में क्या हो सकता है।
भारतीय राजनीति में पोस्टर और प्रतीकों की एक गहरी भूमिका रही है। यह पोस्टर भी उसी कड़ी में एक नया अध्याय जोड़ता है। यह सिर्फ एक व्यंग्य या विरोध नहीं, बल्कि भावनाओं को राजनीतिक संदेश में ढालने की कला का उदाहरण है।
ऐसे में सवाल यह है कि क्या तेजस्वी वाकई उस तराजू पर भारी हो रहे हैं, जहां पांच बड़े नामों का वजन है? या फिर यह सिर्फ चुनावी रणनीति का एक हिस्सा है जो ध्यान आकर्षित करने के लिए गढ़ा गया है?