Daraunda Vidhan Sabha 2025: सिवान जिले की दरौंदा विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 109) बिहार की राजनीति में एक अहम जगह रखती है। महज 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई इस सीट ने सिर्फ एक दशक में राज्य की सत्ता की राजनीति को कई बार प्रभावित किया है। दिलचस्प बात यह है कि इतने कम समय में यहां का चुनावी माहौल पटना से लेकर दिल्ली तक चर्चा का विषय बन चुका है।
चुनावी इतिहास
दरौंदा की राजनीति हमेशा से ही उतार-चढ़ाव से भरी रही है। 2010 में हुए पहले चुनाव में जेडीयू की जगमातो देवी विधायक बनीं और इस सीट के पहले प्रतिनिधि होने का सम्मान हासिल किया। उनके निधन के बाद राजनीतिक विरासत उनकी बहू कविता सिंह ने संभाली और 2015 में भाजपा के उम्मीदवार जीतेंद्र स्वामी को 13 हजार से ज्यादा वोटों से हराया। कविता सिंह ने न सिर्फ विधानसभा में, बल्कि बाद में 2019 में सीवान लोकसभा से भी जीत दर्ज कर अपनी पकड़ को और मजबूत किया।
Darauili Vidhansabha 2025: बिहार की राजनीति का वह अखाड़ा जहां बदलते समीकरण लिखते हैं जीत की कहानी
लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव ने दरौंदा की तस्वीर बदल दी। कविता सिंह के सांसद बनने के बाद यहां उपचुनाव हुए, जिसमें भाजपा के करणजीत उर्फ व्यास सिंह ने जीत हासिल कर दरौंदा की सियासी बिसात पर भाजपा की मौजूदगी दर्ज कराई। यही रफ्तार 2020 में भी कायम रही जब भाजपा के करणजीत सिंह ने सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के अमरनाथ यादव को 11,320 वोटों से मात दी। इस चुनाव में करणजीत को 71,934 वोट मिले जबकि अमरनाथ यादव को 60,614 मत प्राप्त हुए।
जातीय समीकरण
दरौंदा की राजनीति का सबसे अहम पहलू यहां का जातीय समीकरण है। ब्राह्मण और राजपूत वोटरों की संख्या यहां निर्णायक भूमिका निभाती है, जबकि यादव और मुस्लिम मतदाता भी चुनावी परिणाम को प्रभावित करने में सक्षम हैं। अनुसूचित जाति की आबादी यहां 11.78% और अनुसूचित जनजाति का अनुपात 3.22% है। पूरी तरह ग्रामीण इलाका होने के कारण यहां की राजनीति गांव-गंवई मुद्दों, जातीय गणित और स्थानीय समीकरणों पर ही टिकी रहती है।
दरौंदा विधानसभा, जो सिवान लोकसभा सीट के अंतर्गत आती है, बिहार की राजनीति में “मिनी पॉलिटिकल लेबोरेट्री” बन चुकी है। यहां हर चुनाव एक नए समीकरण की गवाही देता है और यही कारण है कि दरौंदा पर नज़रें सिर्फ सिवान या बिहार की नहीं बल्कि राष्ट्रीय राजनीति की भी रहती हैं।






















